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बड़े फैसलों के दिन और सियासत

खरी-खरी            Sep 27, 2018



राकेश दुबे।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ३ बड़े मसले कल सुलझा दिए। आज एक और बड़े फैसले का इंतजार हो रहा है। राजनीति हर फैसले की व्याख्या अपनी सुविधा के अनुसार करती है। इस बार सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला कर फैसले की घड़ी को ही पारदर्शी करने का फैसला दे दिया है।

अब तक हम कोर्ट के फैसलों को पढ़कर ही जानते आए हैं, अब पूरी प्रक्रिया अर्थात सर्वोच्च न्यायालयमें अहम मामलों की सुनवाई हम कैमरे के माध्यम से सीधे देख सकेंगे। इस बाबत सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला दिया है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि इस प्रक्रिया की शुरुआत सर्वोच्च न्यायालय से होगी। न्यायालय ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग से अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी और यह जनहित में होगा।

देश में समय-समय पर समाज के भीतर से ऐसी मांग उठती रही है कि न्यायालय की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाए, जिससे जनता को पता चल सके कि वकील किस तरह से अपना पक्ष रख रहे हैं। कोई कुछ भी कहे यह एक बड़ा फैसला है।

वैसे से कल सर्वोच्च न्यायलय ने पहला फैसला प्रमोशन में आरक्षण को लेकर दिया। शीर्ष न्यायालय ने सीधे तौर पर प्रमोशन में आरक्षण को खारिज न करते हुए इसे राज्यों पर छोड़ दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर राज्य सरकारें चाहें तो वे प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं।

हालांकि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की यह अर्जी खारिज कर दी कि एससी-एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए। इस पर सियासी दलों की आदत के अनुसार अपनी अपनी और अपने पक्ष की प्रतिक्रियाएं भी आने लगी।

एक पूर्व सीएम ने कहा है कि फैसला स्वागतयोग्य है क्योंकि कोर्ट ने कोई पाबंदी नहीं लगाई है। ऐसे में सरकारें प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। इस पर सियासत शुरू हो गई है। उन राज्यों में जहाँ चुनाव होना है वहां यह फैसला तलवार की धार की तरह काम करेगा। “उगलत लीलत पीर घनेरी जैसी हालत हो गई है, माई के लालों जैसे जुमलों की।”

आरक्षण के फैसले की खबर आए अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि सर्वोच्च न्यायालय ने बहुचर्चित आधार मामले पर बड़ा फैसला दे दिया। न्यायालय ने आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। न्यायालयने यह भी आदेश दिया कि आधार कहां जरूरी है और कहां नहीं।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि स्कूलों में दाखिले के लिए आधार को अनिवार्य बनाना जरूरी नहीं है। कोई भी मोबाइल कंपनी आधार कार्ड की डिमांड नहीं कर सकती है। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि आधार कार्ड की ड्यूप्लिकेसी संभव नहीं है और इससे गरीबों को ताकत मिली है।

फैसले में कहा गया, 'शिक्षा हमें अंगूठे से दस्तखत पर लाती है और तकनीक हमें अंगूठे के निशान पर ले जा रही है।' वैसे आधार पर देश में काफी समय से बहस चल रही थी। अब इस फैसले से आधार पर सियासी दंगल शुरू हो गया है।

कांग्रेस इसे सरकार के मुंह पर तमाचा कह रही है जबकि उच्चतम न्यायालय ने आधार को संवैधानिक वैधता देने के साथ इसके वित्त विधेयक के रूप में पारित कराए जाने को भी सही ठहराते हुए कांग्रेस को निराश कर दिया है। सरकार का दावा है की आधार के चलते सरकार कल्याणकारी योजनाओं में हर साल ९०००० करोड़ रुपये की लीकेज रोकने में कामयाब रही है।आधार की आलोचना करने वालों के लिए एक जवाब है –“आप प्रौद्योगिकी का प्रतिरोध नहीं कर सकते और न ही इसे नजरअंदाज कर सकते हैं।”

 



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