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बजट अनुमान आंकड़े आईने की तरह हैं, सरकारों को जादूगरी से परहेज करना चाहिए

खरी-खरी            Jan 06, 2019


राकेश दुबे।
अगले महीने देश में बजटों के महीने होंगे राज्य और केंद्र सरकारें अपने बजट पेश करेंगी। ये बजट पारित भी होंगे। हर साल ऐसा ही होता आया है। “अनुमान” “बजट” के साथ नत्थी शब्द है। केंद्र के अनुमान और सहायता पर राज्यों के अनुमान तैयार होते हैं।

२०१९-२० के लिए केंद्र ने क्या अनुमान लगाए गए हैं और २०१८-१२९ के लिए संशोधित अनुमान क्या हैं। शोध के साथ जानकारी का विषय भी है। ये अनुमान सरकारों के चेहरे-मोहरे के साथ उसके जनोन्मुखी होने के आईने भी होते हैं।

उदाहरण के लिए २०१७-१८ के वास्तविक आंकड़े फरवरी २०१९ में २०१८-१९ के बजट और संशोधित अनुमानों तथा २०१९-२० के बजट अनुमानों के साथ उपलब्ध होंगे।

इसलिए मौजूदा वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान के आंकड़ों और अगले वित्त वर्ष के बजट अनुमान के आंकड़ों पर चर्चा होगी और पिछले साल के वास्तविक आंकड़ों को नजरअंदाज कर दिया जाएगा।

यह एक गलती है। पिछले साल के वास्तविक आंकड़ों को नजरअंदाज करना और उनका मूल बजट अनुमानों और संशोधित अनुमानों के आंकड़ों के साथ अंतर का विश्लेषण नहीं करने से बजट विश्लेषण की गुणवत्ता कमजोर हो सकती है।

और इसी कारण वास्तविक आंकड़ों विश्लेषण नहीं हो पाता है, क्योंकि उन्हें एक साल बीतने के बाद ही तुलनात्मक प्रारूप में पेश किया जाता है।

मौजूदा वर्ष और आने वाले साल पर ध्यान केंद्रित करने की तत्परता और प्राथमिकता इतनी अधिक होती है कि राज्य और केंद्र का सार्वजनिक वित्त विश्लेषण प्रभावित होता है।

महालेखा नियंत्रक (सीजीए) द्वारा उपलब्ध कराए गए २०१७ -१८ के संभावित वास्तविक आंकड़ों के विश्लेषण से कुछ दिलचस्प रुझानों का खुलासा होता है और पता चलता है कि सरकारों ने पिछले साल राजस्व और खर्च को कैसे संभाला था।

केंद्र सरकार के आंकड़ों का विश्लेष्ण करें तो वर्ष २०१७ -१८ में सरकार का राजकोषीय घाटा संशोधित अनुमान और वास्तविक आंकड़ों में सकल घरेलू उत्पाद का ३.५ प्रतिशत रहा। राजस्व घाटा भी दोनों अनुमानों के तहत जीडीपी का २.६ प्रतिशत था।

इस दौरान राजस्व और खर्च में भारी अंतर देखने को मिलता है। राजस्व लक्ष्य से कम दिख रहा है जिसकी भरपाई खर्च में कटौती से की गई है। २०१७ के संशोधित अनुमानों में केंद्र के कर राजस्व के १२.६९ लाख करोड़ रुपये रहने का लक्ष्य रखा गया था जो २०१६-१७ के वास्तविक आंकड़ों से १५ प्रतिशत अधिक है।

इसके विपरीत सीजीए के आंकड़ों के २०१७ -१८ के वास्तविक आंकड़ों में यह १२.४३ लाख करोड़ रुपये रहा जो संशोधित अनुमानों से करीब २६८०० करोड़ रुपये कम है। दूसरे शब्दों में कहें तो २०१७-१८ में वास्तविक आंकड़ों के मुताबिक केंद्र का कर राजस्व २०१६-१७ के वास्तविक आंकड़ों से १३ प्रतिशत ही अधिक रहेगा।

गैर कर राजस्व में अंतर ज्यादा बड़ा है। सीजीए के वास्तविक आंकड़ों के मुताबिक २०१७ -१८ में गैर कर राजस्व १.९२ लाख करोड़ रुपये है जो पिछले साल के संशोधित अनुमानों से ४३४५० करोड़ रुपये या १८ प्रतिशत कम है।


इससे कुछ सवाल खड़े होते हैं। पहला यह कि राजस्व संग्रह के अंतिम आंकड़ों में इतना अंतर कैसे आया? वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने १ फरवरी, २०१८ को गैर ऋण राजस्व प्राप्तियों के बारे में कुछ निश्चित आंकड़े दिए। लेकिन साल का लेखाजोखा बंद करने के समय राजस्व प्राप्तियों में करीब आठ फीसदी की गिरावट दिख रही है।

क्या यह संसद में पेश संशोधित अनुमान के आंकड़ों का मजाक नहीं है? दूसरा और अंतिम सवाल आशंका के साथ यह है कि अगर २०१७ -१८ के वास्तविक आंकड़ों के जारी होने पर संशोधित अनुमान के आंकड़ों में भारी फेरबदल किया जा सकता है तो फिर १ फरवरी को पेश होने वाले अंतरिम बजट के संशोधित अनुमानों को कितनी गंभीरता से लेना चाहिए? राज्यों में भी केंद्र की परिपाटी का पालन होता है। वास्तविक आंकड़े आईने की तरह हैं, सरकारों को इस जादूगरी से परहेज करना चाहिए।

 



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