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विदेशी शोधों का अब भारत के नारियल तेल पर हमला

खरी-खरी            Sep 20, 2018


राकेश दुबे।
पता नहीं क्यों हम भारतीय विदेशी शोध पर आँख बंद करके यकीन कर लेते हैं और हमारी सरकारें भी। न तो नागरिक और न ही सरकार अपने परम्परागत ज्ञान, निर्माण विधि और उत्पाद को विदेशी कुप्रचार से बचा पाए हैं और न इस दिशा में कोई प्रयास ही कर रहे हैं।

कुछ समय पूर्व भ्रामक और फर्जी दावों के कई मामले सामने आये इनमे विटामिन-डी की कमी की भरपाई के लिए दवा प्रोमोट करने का घोटाला सामने आया। अब नारियल तेल को लेकर ऐसा ही मामला गर्म किया जा रहा है।

सदियों से दक्षिण भारत में नारियल का तेल खूब इस्तेमाल होता है,वहां अधिकतर खाना इसी तेल में तैयार होता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर कैरिन मिशेल्स ने नारियल तेल को जहर करार दे दिया है।

उनका कहना है कि खाने में इस्तेमाल होने वाली सबसे बुरी वस्तुओं में से एक नारियल का तेल है। उनके अनुसार इस तेल में सेचुरेटेड फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है और यह हमारी धमनियों में खून का प्रवाह रोक सकती है।

प्रोफेसर कैरिन कहते हैं कि नारियल तेल में 80 प्रतिशत से अधिक सेचुरेटेड फैट होता है। इसके बाद नारियल के तेल के फायदे और नुकसान को लेकर देश और दुनिया में ब‍हस छिड़ गयी है।

दक्षिण भारत के लोगों में इस शोध पर खासी प्रतिक्रिया हुई है। दक्षिण भारतीयों का दावा है कि वे लोग वर्षों से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं और उनकी सेहत पर इसका कोई नुकसान नहीं हुआ है।

केरल में इसका सर्वाधिक इस्तेमाल होता है और केरल में लोगों की औसत आयु दर देश के अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक हैं। भारत में ही नहीं, कई अन्‍य देशों के लोगों ने भी प्रोफेसर के इस दावे को गलत बताया है।

भारत की तरह फिलीपींस और थाइलैंड में भी सदियों से इस तेल का इस्तेमाल होता आया है।
अभी तक धारणा रही है कि नारियल के तेल में सेचुरेटेड फैट की काफी कम मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। तलने में भी नारियल तेल अच्छा माना जाता है।

पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिली वाली जानकारी के अनुसार, नारियल तेल शरीर में आसानी से नहीं जमता, जितना कि अन्य तेल शरीर में ठहरते हैं। लोग तो इसका इस्तेमाल वजन कम करने तक के लिए करते हैं| इसके पक्ष में वैज्ञानिक तर्क भी सामने हैं।

अगर यह तेल वाकई जहर होता, तो दक्षिण भारत और इन देशों के लोगों को तो जीवित ही नहीं बचना चाहिए था। यहां तो खाने का लगभग हर सामान नारियल के तेल में तैयार किया जाता है।

नारियल के तेल में फैटी एसिड के साथ ही विटामिन-ई भी होता है, जो इसे त्वचा के लिए बेहद उपयोगी बनाता है। इस तेल से रूखी त्वचा भी मुलायम बन जाती है।

दरअसल,खाद्य तेलों को लेकर पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भ्रम का माहौल बना दिया है। अगर आप बाजार जाएं, तो आप दर्जनों तरह के तेल दुकानों में सजे पायेंगे और हरेक का दावा होगा कि उनका तेल दिल के लिए औरों से बेहतर है।

पश्चिम के देश अपने यहां इस्तेमाल किये जाने वाले ऑलिव ऑयल पर फिदा हैं और हम उनसे बहुत जल्द प्रभावित भी हो जाते हैं। इस अन्धानुकरण के जाल से निकलना होगा।

सरकार और नागरिक दोनों को देश के परपरागत ज्ञान और खान-पान की श्रंखला को बचाना होगा।

लेखक प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं

 



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