Breaking News

जीएसटी,नोटबंदी इतने जरूरी और अच्छे कि करोड़ लोगों को बेरोजगार कर दिया जाए?

खरी-खरी            Jun 08, 2018


संजय कुमार सिंह।
इन दिनों व्हाट्सऐप्प पर एक खबर घूम रही है जिसके जरिए लोगों को यह बताने और यकीन दिलाने की कोशिश की जा रही है कि भारतीय कॉरपोरेट की परिसंपत्तियों की सबसे बड़ी बिक्री चल रही है।

इसके अलावा तथाकथित सूटेड बूटेड सरकार ने वास्तव में बैंकों से आसान कर्ज लेने वाले कॉरपोरेट के पिछवाड़े पर लात लगाई है। इसमें यह भी कहा गया है कि कॉरपोरेट ने ये कर्ज कांग्रेस के जमाने में अपने लिए परिसंपत्तियां खरीदने के लिए ली थीं।

इसके साथ हिन्दू की एक खबर का लिंक भी है जो खबर 8 मई 2016 को प्रकाशित हुई थी। अंग्रेजी में व्हाट्सऐप्प की फैलाई जा रही खबर में इस तथ्य को गोल कर दिया गया है और एक बड़ी व लंबी खबर के खास अंशों का उल्लेख करते हुए अंत में पूछा गया है, “क्या आपने 60 वर्षों में सुना कि भारतीय प्रोमोटर अपनी कंपनी बैंक के के कर्जे चुकाने के लिए बेचें?

अब आप जानते हैं कि कोड़े कौन चला रहा है।” व्हाट्सऐप्प की यह खबर इतनी लंबी है कि कोई लिंक देखने नहीं जाएगा। लिंक देखने से दो बातें स्पष्ट होंगी – एक तो खबर पुरानी है। नोटबंदी और जीएसटी से पहले की। इसके जरिए तब बताया गया था कि देश की आर्थिक हालत खराब है इस कारण कॉरपोरेट अपनी संपत्ति बेच रहे हैं।

इस समय जब नीरव मोदी के करोड़ों लेकर भाग जाने की चर्चा और विजय माल्या तथा ललित मोदी के मामले में कुछ ठोस नहीं किए जाने का आरोप है तो इस खबर के जरिए यह बताने की कोशिश की जा रही है कि सरकार बैंक के कर्ज वसूलने के मामले में सख्त है और कॉरपोरेट पर कोड़े फटकार रही है।

लिंक देखने से दूसरी बात यह मालूम चलेगी कि यह खबर है और उसके साथ विचार हिन्दू जैसे अखबार के तो हो नहीं सकते और सारा खेल हिन्दू की खबर के साथ संघी विचार घुसेड़ने का है। भोले भक्त मान लेते हैं इसलिए यह धंधा चल रहा है। चल क्या रहा है वे बिना समझे खबर या पोस्ट फार्वार्ड किए जा रहे हैं।

http://www.thehindu.com/.../what.../article24108540.ece

http://www.thehindu.com/.../the.../article8573163.ece

समझने वाली बात है कि हजारों लाखों करोड़ में कोई अपने लिए पलंग, गाड़ी या झूला तो खरीदेगा नहीं। कारखाना लगाएगा, कारोबार करेगा। कारोबार लगाने के बाद कोई नहीं चाहता कि वह किस्तें न लौटाए और कर्ज की राशि खा जाए।

बैंक कर्ज की राशि किस्तों में देती है और काम होते जाने यानी मशीन खरीदने या प्लांट की इमारत बनने के बाद छोटी किस्तों में पैसे देती है। ऐसे में कोई कोई अपना काम छोड़कर मलबा या पुरानी मशीन बेचकर बैंक के पैसे मारना चाहेगा? सच यही है कि बाजार की हालत खराब हो, आगे जरूरत पर भी कर्ज न मिले तो घाटा होता है और कारोबारी किस्ते नहीं चुका पाता है और स्थिति लंबे समय तक खराब बनी रही तो उत्पादन बिक्री बंद हो जाते हैं और कंपनी की परिसंपत्ति बेचने की नौबत आती है।

ऐसे में बैंकों का या किसी भी समझादार की कोशिश यही होनी चाहिए कि कारखाना या उद्योग चलता रहे। इसके लिए नियम कानून में ढील देकर और पैसे दिए जाते हैं क्योंकि कई लोगों की नौकरी का सवाल होता है। यह किसी भी सरकार को करना चाहिए। पर वर्तमान सरकार ने उद्योग धंधे के खिलाफ हालात बनाए।

उद्योग धंधे चौपट हुए तो फर्जी तौर पर समर्थक यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कारखाने कर्ज की वसूली पर जोर देने के कारण बंद हो रहे हैं। कर्ज वसूली ऐसी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि कारखाने और उद्योग बंद हो जाएं। बेचने की नौबत आ जाए। आ गई हैं इसीलिए रोजगार नहीं है।

अब हिन्दू में ही आज प्रकाशित एक खबर को देखते हैं। इसके अनुसार तमिलनाडु में औद्योगिक माहौल दुरुस्त होने के दावों के उलट राज्य में करीब 50,000 माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज बंद हो चुके हैं और यह सिर्फ एक साल का आंकड़ा है। बंद होने के ढेर सारे कारण है। राज्य विधानसभा में गुरूवार को एमएसएमई विभाग द्वारा पेश एक सरकारी नीति नोट के मुताबिक राज्य में पंजीकृत माइक्रो, स्मॉल और मीडियम औद्योगिक इकाइयों की संख्या 2017-18 में 18.45 प्रतिशत कम हुई है। 2016-17 में राज्य में 2,67,310 एमएसएमई का पंजीकरण हुआ था और 2017-18 में इनकी संख्या घटकर 2,17,981 रह गई। इसका मतलब हुआ एक साल में 49,329 औद्योगिक इकाइयों ने अपना काम-धंधा बंद कर दिया।

कहने की जरूरत नहीं है कि इतनी इकाइयां बंद हुईं तो इनमें काम करने वाले बेरोजगार हुए होंगे। इसी अवधि में एमएसएमई में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या पांच लाख से ज्यादा कम हुई है। अखबार के मुताबिक, 2016-17 में यह संख्या 18,97,619 थी जो 2017-18 में घटकर 13,78,544 रह गई। और यह एमएसएमई का आंकड़ा है।

इसमें पकौड़े तलने और दूसरे कई काम नहीं आते हैं जो जीएसटी से परेशान हैं या बंद हो गए हैं। उनकी तो गिनती ही नहीं है। उनका कहीं पंजीकरण ही नहीं होता है। पांच लाख लोग सिर्फ तमिलनाडु के एमएसएमई में काम करने वाले बेरोजगार हुए हैं।

देश भर में इनका आंकड़ा क्या होगा और इनमें जीएसटी पीड़ित पकौड़े तलने वालों को शामिल कर लिया जाए तो आंकड़ा करोड़ में होगा। जीएसटी और नोटबंदी जरूरी और अच्छे होंगे पर क्या इतने अच्छे हैं कि करोड़ लोगों को बेरोजगार कर दिया जाए?

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

 



इस खबर को शेयर करें


Comments