तकनीक के खेल में सरकारें,जिसकी लाठी होगी उसी की भैंस होगी

खरी-खरी, मीडिया            Mar 24, 2018


रजनीश जैन।
एक सामान्य सिद्धांत है। जब तक मूर्ख और बेरोजगार बहुतायत में हैं समझदारों की दूकान चलती रहेगी। यही बुनियादी सिद्धांत फेसबुक पर भी लागू होता है। सीधी बात है शिकारी आएगा, जाल फैलाएगा, दाना डालेगा दाना चुगना नहीं चाहिए। अपनी मौलिकता बरकरार रखिए तो कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी जैसे डाटा चोर आपके सहयोगी ही हैं। वे डाटा चुरा सकते हैं बना नहीं सकते। कृतियां उर्वर दिमाग में उपजती हैं,कारखानों में बनाई नहीं जा सकतीं। कारखाने बस उनकी प्रतिकृतियां बना सकते हैं। फेसबुक पर विचारों की चोरी करके विचारक की ही मदद करोगे।

कोई पार्टी अपने हित के विचारों को इकट्ठा करा के उनका सुनियोजित सउदेश्य इस्तेमाल करती है तो इसमें बुरा क्या है। एक ही विचार के नेता,प्रचारक, कार्यकर्ताओं से ही तो राजनैतिक दल बनता है। इस विचारप्रवाह को तकनीक ने इतनी द्रूत गति दे दी है कि उसे पकड़ कर प्रतिकार करने के लिए उसकी रफ्तार से ही प्रतिस्पर्धी को दौड़ना होगा। इसमें नया क्या है। यह तो सदैव से होता आया है। तकनीक की इस लड़ाई में जो हारेगा वह शासित होगा जो जीतेगा वो शासक।

कल तक जो सुविधा डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के पास थी अब हिलेरी क्लिंटन और राहुल गांधी के पास भी होगी। पीछे मुड़कर देखेंगे तो पाऐंगे कि कांग्रेस ने जिन संसाधनों से 60 साल राज किया वह भी संचार की नई तकनीक ही थी जिस पर एकाधिकार के कारण विपक्ष दबता, कुढ़ता और फड़फड़ाता रहा। फोटोग्राफरों और रेडियो रिकार्डिस्टों की फौज पर गांधियों नेहरूओं का कब्जा था। तभी तो बापू और जवाहर की हर तरह की तस्वीरें, वीडयो मौजूद हैं लेकिन भगत सिंह और चंद्रशेखर की सिर्फ दो—दो तस्वीरें हैं।

जयप्रकाश नारायण ,राममनोहर लोहिया के भाषणों के वीडियो ढूंढकर देखिए। हाथ मलते रह जाऐंगे। जार्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी का कोई ऐसा भाषण ढूंढिए जो उन्होंने सन् 80 के पहले दिया हो ...दूरदर्शन और आकाशवाणी के आर्काइव में एक तो होगा नहीं और होगा तो नष्ट करा दिया गया होगा। जबकि इन नेताओं ने अपने राजनैतिक जीवन के उसी कालखंड में सर्वश्रेष्ठ विचार धाराप्रवाह भाषण करते ही दिए थे।

तो साफ है कि जिसकी लाठी उसी की भैंस होगी। संचार तकनीक पर जिसका कब्जा वही सत्ता का मालिक बन बैठता है। जब निजी चैनल नहीं आए थे तब विपक्ष को चुनाव प्रचार के लिए कुछ मिनटों का टाइमस्लाट मिलता था। लेकिन सत्तापक्ष के हक में दूरदर्शन 24×7 वृंदगान करता रहता था। तब जन्मदिन और पुण्यतिथियां सिर्फ नेहरू और गांधियों की हुआ करती थीं। शेष कब पैदा हुए थे कब मरे यह अवाम् को नहीं बताया जाता था।

संचार तकनीक अपने नित नये रूप बदल कर सामने आती है। कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन के हाथ से सत्ता गई ही इसलिए थी कि उसे गुजरात के अप्रवासी भारतीयों के कमांड में पहुंच चुकी नई तकनीक के असर का इल्म नहीं था। होता तो समय पर उसकी काट कर ली जाती। ... सोशल मीडिया के बहाने उठी इस बात के बीच में आप ईवीएम तकनीक को मत भूलिए।

यह तकरीबन वही तकनीक है जिससे एसटीडी पीसीओ के मानीटर बनते थे और आज भी पेट्रोल पंपों के मीटर चलते हैं। जब इन दोनों तकनीकों को आईसी ,चिप और रिमोट के सहारे हैक किया जाता है तो वोट काउंटर मशीन में ऐसा क्या अजूबा है जिसे हैक नहीं किया जा सकता। लेकिन कोई तब तक मानेगा क्यों जब तक कि तकनीक का लाभार्थी वह खुद हो।

ईवीएम का विकल्प तो सिर्फ बैलट पेपर ही है। लेकिन संचार तकनीक और सोशल मीडिया को रोकना किसी के बूते का नहीं। यह वही कहानी है जिसमें रेडियो, फिल्म, कंप्यूटर, टेलीविजन , सैटेलाइट चैनल आने पर हर बार समाज के एक वर्ग ने आशंका जाहिर की थी कि इससे सांस्कृतिक पतन होगा, रोजगार खत्म हो जाऐगा...वगैरह।

पर हुआ इसका उल्टा। धार्मिक त्यौहारों और मान्यताओं ने इन तकनीकों के सहारे और गहरी जड़ें जमा लीं। रोजगार के नए अवसर और इदारे खुल गये। ... यह तथ्य भी समझ लीजिए कि तकनीक हार्डवेयर है, आदमी के मस्तिष्क से उपजे विचार साफ्टवेयर हैं। हार्डवेयर पर वैसा ही साफ्टवेयर चलेगा जो उसमें डाला जाऐगा। टेलीविजन पर आप चाहें तो जय संतोषी माता सीरियल चलाएं या नीली फिल्म देखें तय अंततः आदमी ही करता है।

तो जो लोग फेसबुक को डिलीट करने की वकालत कर रहे हैं वे जड़बुद्धि और दकियानूसी हैं। यह भी कि यदि कांग्रेस ने कैंब्रिज एनालिटिका की सेवाएं ली हैं तो उसने भी लड़ाई में वही हथियार प्राप्त कर लिया है जिससे वह पराजित हुई थी।

अब आप चाहें तो कांग्रेस को गांधी के आंदोलनों में साधनों की पवित्रता के उद्धरण देकर सिद्धांत छोड़ने के लिए कोसते रहिए।

दैनिक भास्कर के फ्रंट पेज की बाटमन्यूज पढ़िए, इस खबर का छिपा एजेंडा यही है! याद कीजिए गांधी का चरखा, विदेशी वस्त्रों की होली ,दांडीयात्रा और नमक कानून तोड़ना क्या था ?

वह भी दरअसल अपनी बात को करोड़ों भारतीयों तक पहुंचाने के संकेतक थे। यानि गांधी भी संचार के टूल्स का कुशलता से इस्तेमाल कर रहे थे।... कोसने वाले भी जान लें कि वे भी गायत्री मंत्र , वेदों की ऋचाएं और शिवतांडव स्त्रोत को डिजीटल और आनलाइन ही सुन रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।



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