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हे विपक्ष! तुम्हारे सामर्थ्यवान होने में लोकतंत्र की सामर्थ्य छुपी है

खरी-खरी            Aug 09, 2019


योगेश कुल्मी।
जब देश की नब्ज़ पर हाथ ही न हो तो काहे की राजनीति ?

जब जनता की चाहतों का अनुमान ही न हो तो काहे की राजनीति ?

जब लाभ-हानि का, कक्षा 5 का सीदासट्ट सवाल भी हल न कर सको तो काहे की राजनीति ?

बीते दिनों की मट्टीपलीद देखकर भी आने वाले कल को न भांप सको तो काहे की राजनीति ?

विजय के प्रयास छोड़ दिये, ठीक है, लेकिन हार को आगे बढ़कर गले लगा लो तो काहे की राजनीति ?

स्वयं मजे में हो, आजीवन रहोगे, ठीक है ; लेकिन हज्जारों नेताओं-आम कार्यकर्ताओं के भविष्य चौपट कर दो तो काहे की राजनीति ?

आपके मुंह पर किसी की बोलने की मजाल नहीं, ठीक है, लेकिन इतने भर से आप लाखों जमीनी कार्यकर्ताओं को जनता के बीच अपमानित होने के लिए छोड़ दो तो काहे की राजनीति ?

जनभावनाएं नहीं समझ सके, कोई बात नहीं; लेकिन अब जब पता ही चल गईं और तब भी उनका सम्मान न कर सको तो काहे की राजनीति ?

हे विपक्ष ! तुम्हारे सामर्थ्यवान होने में लोकतंत्र की सामर्थ्य छुपी है, भारतवर्ष की सामर्थ्य छुपी है, अपना तो छोड़ो लेकिन उनका भी लिहाज न रखो तो काहे की राजनीति ?

 



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