सपाक्स!आपकी इसी गलती का इंतजार था राजनीतिक दलों को

खरी-खरी            Jun 18, 2018


वीरेंद्र शर्मा।
"सपाक्स समाज प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा।" यह समाचार देख कर बहुत हैरानी भी हुई और दुख भी।

सतारूढ सरकारों के द्वारा आरक्षित वर्गों के प्रति सद्भाव और सपाक्स के प्रति दुर्भाव की प्रतिक्रिया स्वरुप सपाक्स समाज संगठन का जन्म हुआ था।

उद्देश्य था, सरकार के द्वारा किए जा रहे भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एकजुट होकर काम करना और अपने दबाव और प्रभाव के इस्तेमाल से सामाजिक न्याय की स्थापना करना। पिछले दो सालों का इतिहास गवाह है कि सपाक्स अपने उद्देश्य में सफल भी हुआ।

विधानसभा उपचुनावों से लेकर नगरीय निकाय के चुनाव तक सपाक्स के असंतोष का खामियाजा सरकार को उठाना पड़ा। तेजी के साथ एकजुट होते हुए यह ताकत बढ़ाते सपाक्स अपने उद्देश्य में सफल होता नजर आ रहे था कि न जाने अचानक किस की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जागीं और चुनाव लड़ने का निर्णय हो गया।

शायद सपाक्स यह भूल गया कि उसका उद्देश्य राजनीति के इस दलदल में लथपथ होना नहीं बल्कि अपनी भावी पीढ़ी को एक सामाजिक न्याय की व्यवस्था के तहत सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार दिलाना है।

अभी तो घोषणा की है, जरा राजनीति के मैदान में उतर कर देखिए, सपाक्स का कोई भी सदस्य जब चुनाव लड़ेगा तो वह चुनाव जीतने के लिए येन-केन-प्रकारेण वह सारे साम-दाम-दंड-भेद अपनाएगा जो वर्तमान राजनीति में प्रासंगिक हैं।

आपको क्या लगता है कि वर्षों से भाजपा या कांग्रेस की मानसिकता वाला वोटर,भले ही वह सपाक्स समाज का क्यों ना हो आप को जिताने और आप के समर्थन में आपके पीछे हो लेगा? जब आप चुनाव के मैदान में उतर ही जाओगे तो क्या उन वोटों को नजरअंदाज कर पाओगे जो कई विधानसभा क्षेत्र में बहुसंख्यक रूप से आरक्षित वर्गों के होंगे?

वस्तुतः यह निर्णय सपाक्स समाज के हितों से ज्यादा राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति ज्यादा लगता है और सपाक्स को यह विचार करना होगा कि सपाक्स एक दबाव समूह बनकर उस के माध्यम से अपने उद्देश्य की पूर्ति करें या फिर खादी की जमात में शामिल होने के सपने के साथ सत्ता सुख उठाने का भाव रखें।
सादर

लेखक सहारा समय मध्यप्रदेश के स्टेट ब्यूरो हैं

 



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