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साइबर अपराध की नजरअंदाजी का बड़ा खामियाजा भुगतना होगा

खरी-खरी            Apr 19, 2018


राकेश दुबे।
हमारे देश में साइबर अपराध जमानती है। आम आदमी की बिसात क्या सरकार को भी पिछले दिनों साइबर संकट से गुजरना पड़ा। यह अलग बात है कि राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (एनसीएससी) ने सरकारी वेबसाइटों के बंद होने के पीछे साइबर हमलों की रिपोर्टों को अब खारिज किया जा रहा है।

तर्क है कि हार्डवेयर में गड़बड़ी होने के कारण साइटें बंद हो गई थीं। लेकिन, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और एनसीएससी दोनों के ही बयानों में विरोधाभास है। अब किसकी बात को सही मानें और किसको गलत?ऐसा पहली बार नहीं है, जब सरकारी वेबसाइट हैकिंग का शिकार हुई हों, बल्कि इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है जब पाकिस्तान और चीन के हैकरों ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार की वेबसाइटों में सेंध लगाने की कोशिश की और उसमें कामयाब भी हुए।

सूचना और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री केजे अल्फोंस ने खुद लोकसभा में एक सवाल के जवाब में स्वीकारा था कि अप्रैल, 2017 से जनवरी, 2018 के बीच बाईस हजार दो सौ सात वेबसाइटें हैक की गर्इं। इनमें एक सौ चौदह सरकारी वेबसाइट थीं।

हमारे देश में लाखों वेबसाइट शुरू हो रही हैं हर दिन इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है , तो दूसरी ओर वेबसाइट हैकिंग की घटनाएं भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। तमाम सरकारी वादों और दावों के बाद भी देश में साइबर सुरक्षा का ऐसा मजबूत नेटवर्क नहीं बना है, जो इन घटनाओं को रोक सके। यदि दूसरे देशों द्वारा वेबसाइटों की हैकिंग की जाती है, तो किस नीति और कानून के तहत उन्हें सजा के दायरे में लाया जाएगा।

देश में साइबर अपराध के मामलों में ‘सूचना तकनीक कानून 2000 ’ और ‘सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं। साइबर अपराध के कुछ मामलों में आइटी डिपार्टमेंट की तरफ से जारी किए गए आइटी नियम 2011 के तहत भी कार्रवाई की जाती है।

आइटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66 , आइपीसी की 379 और 406 के तहत अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल या पांच लाख रुपए तक जुर्माना हो सकता है। बावजूद इसके साइबर अपराधों में कोई कमी नहीं आई है।

देश में हजारों मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें या तो लोग दर्ज नहीं करवाते हैं या स्थानीय पुलिस दर्ज नहीं करती। वरना इस तरह के मामलों की संख्या और भी ज्यादा होती।

अगर अब भी सरकार, साइबर सिक्योरिटी को लेकर कोई ठोस पहल या कदम नहीं उठाती, तो देश को इसके गंभीर नतीजे भुगतना पड़ेंगे।

वर्ष 2000 का ‘इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (आइटी एक्ट)’ साइबर सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा सशक्त था, लेकिन साल 2008 के संशोधन ने इस कानून को बिल्कुल अपाहिज बना दिया है। कानून में संशोधनों ने ज्यादातर साइबर अपराधों को जमानती बना दिया है।

इसका नतीजा यह हुआ कि अगर कोई अपराधी जमानत पर बाहर आता है, तो वह सबूतों को नष्ट कर देता है। सबूतों के अभाव में साइबर अपराधी बरी हो जाते हैं।

 



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