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यह चुनाव प्रायश्चित का, माफी मांगने का, गलती सुधरवाने का!

खरी-खरी            Mar 11, 2019


हरि शंकर व्यास।
देशव्यापी आग्रह बने कि तब हमने नरेंद्र मोदी को जीताने के लिए एक वोट दिय़ा था और अब बतौर प्रायश्चित हम दस वोट खिलाफ डलवाने का संकल्प लेते है। सब मिलकर सिर्फ और सिर्फ 'मिच्छामी दुक्कड़म्' करें। आडवाणी से माफी जो मैने मोदी को उनके ‘ब्रीलियंट इवेंट मैनेजर’ बताने पर कटाक्ष किया था.. समझे, समझाएं और 2014 के पाप का प्राय़श्चित करते हुए हर दिन, हर मंच से जनता में यह जनजागरण बनवाएं कि ‘ब्रीलियंट इवेंट मैनेजर’ के ‘ब्रीलियंट फर्जिकल स्ट्राइक’, ‘ब्रीलियंट विश्व नेता’, ‘ब्रीलियंट अकेला नेता’ की हर इवेंट पूरी तरह फर्जी है!

मेरे लिए, नया इंडिया अखबार के लिए, उन सभी देशभक्तों के लिए कल घोषित आम चुनाव प्रायश्चित पर्व है। पर्यूषण पर्व है। तभी मैं आज से मतदान की आखिरी तारीख के 70 दिन तक प्रायश्चित करूंगा। इस पाप पर प्रायश्चित कि मैंने, नया इंडिया ने 12 मई 2014 से पहले नरेंद्र मोदी की संभावनाओं पर बहुत आशावाद बनाया। मतलब हम सबने गलत आस पाली कि अच्छे दिन आएंगे। भारत भ्रष्टाचार मुक्त होगा। आंतकवाद खत्म होगा। देश की सुरक्षा-चौकसी चाक चौबंद होगी। जीना आसान बनेगा। हां, मैंने इसी कॉलम में 20 जनवरी 2014 को लिखा था –नरेंद्र मोदी ने आज के भाषण में दिखाया है विकास का भव्य-दिव्य सपना। रविवार के उनके भाषण में फोकस सपनों पर था तो एक्शन पर भी था। उन्होंने कहा हमें एक्ट नहीं चाहिए एक्शन चाहिए। हमें बिल (विधेयक) नहीं चाहिए, बल्कि विल, राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए!’


और हां, मैंने ही नरेंद्र मोदी का सबसे पहले इंटरव्यू करके, इसी कॉलम में उस अनुभव पर 31 मार्च को लिखा था- उनके नंबर एक दावेदार बनने की बात के औचित्य में कल मेरे उनसे इंटरव्यू को ईटीवी की सभी चैनलों पर शाम 8.30 बजे देंखें। अगले दिन सुबह नया इंडिया में पूरा इंटरव्यू जस का तस प्रकाशित होगा। वह पठनीय है और यह समझ बनाने वाला है कि नरेंद्र मोदी की क्या दृष्टि है, क्या विजन है और आरएसएस के एक खांटी प्रचारक के इस मुकाम पर पहुंचने के क्या मायने हैं?’

सो, हरिशंकर व्यास, इस कॉलम, इस अखबार, इसके स्तंभकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक सभी का पाप है कि अपने आशावाद में हमने नरेंद्र मोदी की तुताड़ी बजाई। मैंने ही सबसे पहले तड़ीपार दशा में दिल्ली में रह रहे अमित शाह का सेंट्रल हॉल से इंटरव्यू प्रसारित किया। मैं ही था, जिसने भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह से इंटरव्यू कर चुनाव से बहुत पहले नरेंद्र मोदी के प्रचार प्रमुख, अमित शाह के यूपी प्रभारी जैसी अनुकूलताएं वाली बातें की तो डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने रामदेव के साथ घूम घूम कर मोदी से सपने बनवाए।

उफ! हमारा पाप। मेरे निजी पाप की कीमत मैं पांच साल से भुगत रहा हूं। मतलब नया इंडिया देश का अकेला अखबार है, जो मोदी सरकार की डीएवीपी की विज्ञापन लिस्ट से साढ़े चार साल से आउट है। आपने देखा होगा कि हर अखबार कई-कई पेज मोदी के विज्ञापनों से भरा होता है। लेकिन नया इंडिया में एक नहीं। न मोदी सरकार का और न केजरीवाल सरकार का। यह कीमत है सचाई बूझ सच लिखने की!

यह प्रमाण है इस बात का कि भारत के लोकतंत्र में सच्ची बात दुश्मन, देशद्रोही, सत्ता द्रोही, हिंदूद्रोही बनाती है। मैंने तीन साल पहले अखबारों को मारने की प्रधानमंत्री दफ्तर की रीति-नीति पर सीरिज लिखी लेकिन अखबारों की आईएनएस संस्था हो या संपादकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड इन्हें पता रहा कि कैसे कभी इंडियन एक्सप्रेस, कभी पत्रिका के विज्ञापन बंद होते हैं और फिर खुलते हैं।

मगर किसी में कभी हिम्मत नहीं हुई कि पूछे कि यह क्या हो रहा है? अकेला नया इंडिया अखबार (बाद में टेलिग्राफ, द हिंदू भी चपेटे में) है, जिसके अप्रैल 2015 में अरुण जेटली के कहने पर पीएमओ ने विज्ञापन बंद करवाए तो अपन ने कहीं नाक नहीं रगड़ी और रूख रहा ठेंगे पर रखने का।

बहरहाल, माफ करें सभी वे सुधीजन, जिनके सामने भी पिछले 55 महीने के सच का अनुभव दिल-दिमाग में यह प्रायश्चित भाव बनवाए हुए होगा होगा कि हमने कैसी गलती की? किस नरेंद्र मोदी को चुना? तभी मुझे पढ़ने, चाहने वाले पाठकों से, डॉ. वेदप्रताप वैदिक, अरूण शौरी आदि उन असंख्य सुधीजनों से भी आग्रह प्रायश्चित करने का है, जो जनता की बेसुधी से त्रास में हैं। जिन्होंने भी जाने-अनजाने नरेंद्र मोदी के बहकावे में उनको वोट देने का पाप किया।

वे अब सब लिख कर, लिखे को सोशल मीडिया में डाल कर, जनता के बीच घूम-घूम कर मतदान तक पिछले 55 महीने में फैले झूठ का सार तत्व प्रसारित कर प्रायश्चित करें। देशव्यापी आग्रह बने कि तब हमने नरेंद्र मोदी को जिताने के लिए एक वोट दिय़ा था और अब बतौर प्रायश्चित हम दस वोट खिलाफ डलवाने का संकल्प करते हैं। सब मिल कर सिर्फ और सिर्फ 'मिच्छामी दुक्कड़म्' करें। दुक्कड़म् मतलब गलतियों को बताते हुए क्षमा याकि 'मिच्छामी' का आग्रह करें ताकि देश की, सवा सौ करोड़ लोगों की, हिंदू धर्मावलंबियों की आत्मशुद्धि हो।

मतलब अगले सत्तर दिन माफी मांगने, प्रायश्चित के साथ संकल्प के हो। संकल्प 55 महीने में कलुषित हुई राष्ट्र आत्मा को झूठ से मुक्त कराने का। भारत को झूठ मुक्त बनवाने का। पाखंड, ढोंग, नौटंकी रहित भारत बनाने का। राष्ट्र-राज्य के चरित्र से अहंकार और रावणी संस्कार बाहर निकलवाने का। गधे से प्रेरणा लेने वाले शासन और हार्वर्ड के अर्थशास्त्रियों को दुत्कारने वाले मूर्खों से मुक्त बनवाने का।

हां, मेरा पाप था जो मई 2014 से पहले मैंने सपने में कल्पना नहीं की कि सवा सौ करोड़ लोगों का प्रधानमंत्री कभी कहेगा कि मैं गधे से भी प्रेरणा पाता हूं। मेरे लिए चुनाव के वक्त कही गई बातें जुमला हैं। रोजगार का अर्थ पकौड़े की गुमटी है।

विदेश नीति का अर्थ विदेश यात्राएं, विदेशी नेताओं के साथ फोटो शूट है। पाकिस्तान व चीन से रिश्ते सुधारने का अर्थ नवाज शरीफ के घर जा कर पकौड़े खाना है तो चीन के राष्ट्रपति के यहां बार-बार जा कर नाक रगड़ना है। पाकिस्तान की ठुकाई का अर्थ बार-बार लगातार फर्जीकल स्ट्राइक का हल्ला है तो जम्मू-कश्मीर में समस्या का समाधान कभी इंसानियत के डायलॉग हैं तो कभी मेहबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाना है।

प्रायश्चित करते हुए सोचना है, बताना है कि सच क्या है और झूठ क्या है? नोट रखें इस बात को कि सच पचपन महीने में जीया हुआ अनुभव है और झूठ चौबीस घंटे वाला वह प्रलाप है जो अथाह प्रचार, भोंपू मीडिया और मोदी के भाषणों की लफ्फाजी व उसमें बजती तालियां हैं। मुझे याद आ रही है चार अप्रैल 2014 की एक बात। उस बात का इसी कॉलम में मैंने विश्लेषण किया था। तब लिखी इन लाइनों पर गौर करें- आडवाणी ने मोदी को एक ‘ब्रीलियंट इवेंट मैनेजर’ बताया है।

ऐसा क्यों किया? एक कारण उनकी हताशा का है। दूसरे शायद यह उनका नरेंद्र मोदी की सफलता के पीछे के कारणों की विवेचना भी हो सकती है। आडवाणी अपने को नेता मानते हैं और अपने साथ भाजपा में कइयों को वे सफल राजनेता मानते हैं। उनके अनुसार शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह आदि की सफलताएं मामूली नहीं हैं।

मगर उनका नाम राष्ट्रीय स्तर पर नहीं हुआ तो वे इसके पीछे यह मान रहे हैं कि बतौर इवेंट मैनेजर नरेंद्र मोदी ने अपने कामों को जिस अंदाज में आयोजित करके पेश किया वैसा दूसरे मुख्यमंत्री या नेता नहीं कर पाए।

अपना मानना है कि बात यदि इतनी आसान होती और राजनीति या सवा अरब लोगों को घटना केंद्रित आयोजनों से लुभाया जा सकता तो अपने मुंबइया कलाकार और इवेंट कंपनियां अब तक न जाने क्या कर डालतीं। इसलिए आडवाणी का कहना उनकी इस लाचारी को झलकाता है कि वे मोदी की सफलता के लिए कैसे उनकी लीडरशीप का लोहा मानें!...बावजूद इसके यह सोच नरेंद्र मोदी के लिए सवाल खड़े करती हैं।....नरेंद्र मोदी मौलिकता, विचार, लीडरशीप क्वालिटी और राजकाज की समझ के बिना हैं। (7 अप्रैल 2014)

देखिए, मैं तब भी बेबाक विश्लेषण करता था। (यह भी नोट रखें कि शपथ पर नवाज शरीफ को बुलाने के दिन, फिर कुछ दिन बाद जेटली के चिदंबरम के साथ बैठ कर सरदेसाई की मोदी मतलब वाली किताब के विमोचन के साथ ही मैंने पतन के चेहरे जेटली व मोदीशाही के असली मायने को बूझना, लिखना शुरू कर दिया था।)

बावजूद इसके अप्रैल 2014 में मैंने आडवाणी पर कटाक्ष किया था, मोदी को उनसे उच्चतर आंका। उस नाते 55 महीने के बाद भारत राष्ट्र-राज्य के लोकतांत्रिक प्रायश्चित पर्व के पहले दिन मैं पहली माफी आडवाणी से यह लिखते हुए मांगना चाहूंगा कि आप कितने सही थे और मैं कितना गलत। आडवाणी ने तब यह भी कहा था - मोदी की वाजपेयी से तुलना नहीं कर सकते।.. अटलजी अपने आप में एक क्लास थे। वाजपेयी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनका पूरा जीवन बिना दाग के गुजरा!

सोचें 55 महीने बाद कितनी तरह के दाग आज नरेंद्र मोदी पर हैं, जबकि अपने 55 महीने के बाद वाजपेयी किस गरिमा, कैसे शाइनिंग चेहरे के साथ चुनाव में फिर उतरे थे। वहीं आज नरेंद्र मोदी जवानों के खून, चुनाव को पानीपत की तीसरी लड़ाई बना कर राफेल, नीरव मोदी जैसे कैसे-कैसे दागों के साथ उतरे हैं! तभी संकट गंभीर है। नरेंद्र मोदी अगले पचास दिनों में अपने को ‘ब्रीलियंट इवेंट मैनेजर’ साबित करते हुए भारत को ‘ब्रीलियंट पानीपती जंग’ में बदल देश को आधा गद्दार बना देने वाले हैं।

तभी हम सबका कर्तव्य है कि समझें, समझाएं और 2014 के पाप का प्रायश्चित करते हुए हर दिन, हर मंच से जनता में यह जनजागरण बनवाएं कि ‘ब्रीलियंट इवेंट मैनेजर’ के ‘ब्रीलियंट फर्जिकल स्ट्राइक’, ‘ब्रीलियंट विश्व नेता’, ‘ब्रीलियंट अकेला नेता’ की हर इवेंट पूरी तरह फर्जी है।

लेखक नया इंडिया के संपादक हैं।

 



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