एनबीएसए बताये पत्रकार की निष्पक्षता क्या होती है, स्वनियमन जरूरी है

खरी-खरी, मीडिया            Oct 30, 2017


संजय कुमार सिंह।
कोई भी आजादी अगर निरंकुश हो जाए तो उद्देश्य से भटक जाएगी। देश में मीडिया वैसे ही अपने उद्देश्य से भटका हुआ है और पैसे कमाने में लग गया है। जब मीडिया संस्थान ही मीडिया के कायदे कानूनों का पालन नहीं कर रहे हैं तो उनमें नौकरी करने वाले या उनके जरिए जीवन-यापन करने वाले लोगों से आदर्शों की अपेक्षा बेमानी है।

मीडिया का काम ही ऐसा है कि इसमें बाहरी हस्तक्षेप मीडिया का उद्देश्य भटका देगा और अभी यही हो रहा है। इसलिए, कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया में बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है। हालात ऐसे नहीं हैं कि मीडिया को स्वतंत्र या निरंकुश होने के लिए छोड़ दिया जाए। ऐसे में स्वनियमन को स्वीकार करना मीडिया के हित में है। पहली जरूरत है। लेकिन मीडिया इस पर भी गंभीर नहीं है। पत्रकार साथी अनिल चमड़िया और गजेन्द्र सिंह भाटी ने जनमीडिया के अक्तूबर अंक में इसी पर कवर स्टोरी की है। उसी संदर्भ में स्वनियमन और उसकी दशा-दिशा पर थोड़ी चर्चा यहां भी।

आपको याद होगा कि न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीएसए) के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति आरवी रविचंद्रण ने 31 अगस्त 2017 को आदेश दिया था कि ज़ी न्यूज 8 सितंबर 2017 को रात नौ बजे एनबीएसए के आदेश का प्रसारण करे। आदेश बहुत साफ और बहुप्रचारित रहा। इसलिए उसके विस्तार में नहीं जाकर यही कहूंगा कि इस आदेश का पालन नहीं हुआ। मामला इतना ही नहीं है। आदेश का पालन नहीं होने के बाद एनबीएसए ने क्या कार्रवाई की इसकी जानकारी सार्वजनिक तौर पर नहीं दी गईं।

वैसे तो यह मामला स्वनियमन को नहीं मानने का है और ऐसी स्थिति में मीडिया के मामले में भी वही कार्रवाई होगी जो दूसरे मामलों में होती है। पर दूसरे मामलों में जैसा अक्सर होता है, कार्रवाई तभी होती है जब "कोई" चाहता है। यह "कोई" अक्सर हमारा आपका विरोधी होता है और हम कुछ नहीं कर पाते हैं उसकी साजिश सफल हो जाती है। तब भी जब वह अपराधी होता है। अंग्रेजों का बनाया हमारा कानून ऐसा है कि लाखों रुपए सावधि जमा में रखने वाला जमानतदार न मिले तो कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी जेल में रहना होगा और ऐसे हजारों लोग जेल में हैं भी। हालांकि वह अलग मुद्दा है।

सिर्फ पत्रकारों की बात करूं तो किसी को कभी भी उठाया जा सकता है और परेशान किया जा सकता है। सिर्फ इसलिए कि हम-आप स्वनिय़मन को नहीं मान रहे हैं। नहीं मानने वालों के खिलाफ नहीं बोल रहे हैं। इसकी जरूरत के प्रति जागरूक नहीं है। वरना पत्रकारों के मामले में कोई बोल भी न पाये।

कहने की जरूरत नहीं है कि विनय वर्मा के मामले में यही हुआ है वरना कोई मतलब नहीं है कि कंपनी लॉ बोर्ड के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया मांगी जाए तो जवाब के रूप में वकील का नोटिस आए और खबर न छापने की धमकी दी जाए और किसी का सेक्स सीडी होने के आरोप में, बगैर नाम के एफआईआर पर किसी पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया जाए।

अगर यही चलता रहेगा तो पत्रकार मामले की जांच कैसे करेगा। वह भी तब जब प्रधानमंत्री कहते रहते हैं कि उनकी सरकार में किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। शहजादा और शाहजादा के अंतर साफ दिख रहा है और बोलती बंद है, फिर भी।

असल में, प्रधानमंत्री ने अपनी व्यवस्था की है। हमें अपनी व्यवस्था करनी पड़ेगी और यह साधारण नहीं है। हम-आप नहीं कर सकते हैं। चुटकी बजाकर भी नहीं हो सकता है। जब ज़ी न्यूज स्वनियमन नहीं मानेगा तो सोचना पड़ेगा। और ज़ी न्यूज ऐसा करने वाला पहला या अकेला चैनल नहीं है। इससे पहले इंडिया टीवी भी ऐसा कर चुका है।

आप जानते हैं कि इंडिया टीवी रजत शर्मा का चैनल है और उनकी भाजपा से करीबी जग जाहिर है। 2008 में एक फर्जी इंटरव्यू दिखाने के मामले में 6 अप्रैल 2009 को इंडिया टीवी को भी माफी मांगने का आदेश दिया गया था। तब भी एनबीएसए ने अपने फैसले या आदेश की कॉपी मीडिया को मुहैया कराने का आदेश दिया था। पर रजत शर्मा ने उस आदेश को नहीं माना और एनबीएसए की सदस्यता छोड़ दी।

बात यहीं खत्म नहीं होती है। एनबीएसए की वार्षिक रिपोर्ट में (2009-10) में इसका विवरण नहीं है। ना ही सार्वजनिक तौर पर यह जानकारी उपलब्ध है कि रजत शर्मा ने एनबीएसए की सदस्यता छोड़ दी। इसी का असर है कि वे दोबारा (एक बार एनबीएसए का आदेश नहीं मानने के बावजूद) एनबीए के चेयरमैन और सदस्य चुन लिए गए। यह सब जानकारी कायदे से एनबीए के वेबसाइट पर होनी चाहिए पर नहीं है।

कहने का मतलब यह है कि एनबीएसए भी लुंज-पुंज तरीके से चल रहा है। जाहिर है यह विषहीन, दंतहीन भुजंग है। पर क्यों? यह अधिकार क्यों नहीं मांगता। अधिकार के बिना आदेश पालन नहीं होते तो शर्म क्यों करना? क्यों नहीं वास्तविक स्थिति बताता है? कम से कम वेबसाइट पर तो विवरण होना ही चाहिए, रिकार्ड तो ठीक हो। मीडिया ट्रायल का विरोध करने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि मीडिया से संबंधित सही और पूरी जानकारी तो सार्वजनिक हों।

यह काम एनबीएसए नहीं करेगा तो कौन करेगा? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पारदर्शिता और ईमानदारी की बात करते हुए सत्ता में आए थे। उनसे इसकी बहाली की मांग क्यों नहीं की जानी चाहिए?
एनबीएसए अपने वेबसाइट से ही ईमानदार पत्रकारिता क्यों नहीं शुरू करता है। ऐसे और भी उपाय हैं। मेरे ख्याल से एनबीएसए को खुलकर बताना चाहिए कि वह आत्म निय़मन के प्रति गंभीर है और सरकार उसका साथ नहीं दे रही है, अधिकार नहीं दे रही है इसलिए नियमन नहीं हो पा रहा है औऱ सरकार मनमानी कर रही है। लेकिन उसके लिए अधिकार मांगने होंगे।

मोर्चा खोलना होगा। जब भक्त लोग सोशल मीडिया पर रोज बता रहे हैं कि पत्रकार को निष्पक्ष होना चाहिए तो एनबीएएसए का काम है कि वह भक्तों को बताए कि पत्रकार की निष्पक्षता क्या होती है। और हो जाए तो क्या होगा।

जन मीडिया की कवर स्टोरी, टीवी चैनलों के मालिकों के आत्म नियमन का सच 14 पन्नों में छपी है। अभी मैं दो ही पेज की चर्चा कर पाया हूं। बाकी फिर कभी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 


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