तीन तलाक की परंपरा भाजपा के लिए बुरी नहीं है,इतनी जल्दी तो मैगी भी नहीं बनती

खरी-खरी, मीडिया            Jul 27, 2017


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।

नीतीश को कब पता चला कि लालू भ्रष्ट हैं?
बिहार में बहार है, भ्रष्टाचार है, हत्याचार है, दरार है, तकरार है, नए गठबंधन का आविष्कार है, पर नीतीश कुमार है।

इस्तीफा देने के पहले नीतीश कुमार ने दूसरी कंपनी की ऑफर लेटर पा लिया था।

सोशल मीडिया के अनुसार अब अंतरराष्ट्रीय बेवफा का खिताब सोनम गुप्ता से छीनकर नीतीश कुमार को दे दिया गया है। सोनम गुप्ता तो बेचारी यूं ही बदनाम है। पता नहीं, कौन सी सोनम गुप्ता बेवफा थी, थी भी या नहीं, लेकिन यह सच है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और हैं। इसी तरह राजनीति करते रहे तो शायद आगे भी बने रहेंगे। आज सुबह-सुबह नीतीश कुमार ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित कर दिया। दूूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट करके नीतीश कुमार के फैसले का स्वागत किया। ट्विटर पर यह ट्रेंड चल पड़ा कि नीतीश कुमार ही असली सोनम गुप्ता है।

एक और हैशटैग चल पड़ा ‘नीतीश घर वापसी’। नीतीश पहले बीजेपी के साथ थे, फिर अलग हुए और अब वापस घर आए हैं। राजनीति के विशेषज्ञ बिहार की राजनीति पर जोरदार टिप्पणियां लिख रहे हैं। अधिकांश उन्हें कोस रहे है और नीतीश नाम के विपरीत आचरण करने वाला व्यक्ति करार दे रहे हैं। पिछले 12 साल में मुख्यमंत्री की 6 बार शपथ लेने वाले अनोखे मुख्यमंत्री बने हैं। सिद्धांतों की बात पर नरेन्द्र मोदी और बीजेपी से छिटक गए थे और अब सिद्धांतों की बात पर वापस आ गए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने सिद्धांतवादी राजनीति करके राष्ट्रीय नेता बनने की संभावनाएं खो दी और अब मोदी के एक क्षत्रप बनकर रह गए हैं।

बीजेपी के नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की बोलती बंद है। नीतीश को हमेशा गरियाने वाले मोदी अब उनके अधीन ‘उप’ बने हुए है। ट्विटर पर लिख रहे है कि विकास हमारे एजेंडा में सबसे ऊपर रहा है और हम उसी पर आगे बढ़ेंगे। लालू यादव और राहुल गांधी पार्टी सहित नीतीश की आलोचना में बिजी हैं। उनका कहना है कि बिहार के लोगों ने सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ एकमत होकर वोट दिया था, लेकिन अब नीतीश कुमार उन्हीं ताकतों के साथ खड़े हो गए हैं। बदनामी का ठीकरा लिए हुए लालू यादव की बोलती बंद है।

विपक्ष में बैठे लालू यादव और उनकी पार्टी के प्रति सोशल मीडिया पर दो मिनिट का मौन प्रकट किया जा रहा है। लालू यादव अब कह रहे है कि बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के पास बहुमत था, लेकिन फिर भी मैंने खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाय नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। ऐसे में नीतीश कुमार के पाला बदलने पर लालू यादव की घिग्घी बंधी हुई है। लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव इसे बिहार में लोकतंत्र की हत्या और मतदाताओं के साथ अन्याय बता रहे है।

नीतीश कुमार द्वारा इस्तीफा दिया जाने, फटाफट बीजेपी का समर्थन पाने और 24 घंटे के भीतर ही वापस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पर नए-नए लतीफे चल पड़े है। महेश भट्ट ने एक ट्वीट को आरटी किया है, जिसमें लिखा है - ‘इतनी जल्दी तो मैगी भी नहीं बनती, जितनी जल्दी नीतीश कुमार ने इस्तीफे देकर वापस सरकार बना ली।’ राजनीति के जानकारों का कहना है कि नीतीश ने सबकुछ सोच-समझकर किया, इस्तीफे देने के साथ ही वे विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं की। जब से उन्होंने नोटबंदी का समर्थन किया, तब ही से लग रहा था कि नीतीश कुमार का झुकाव नरेन्द्र मोदी की तरफ होता जा रहा है। यह झुकाव धीरे-धीरे प्यार-मोहब्बत में तब्दील हो गया, जिसकी कुर्बानी लालू यादव को देनी पड़ी।

नीतीश कुमार के फैसले पर अनेक लोगों को आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा कि नीतीश कुमार को यह बात कब पता चली कि लालू यादव एंड कंपनी भ्रष्ट है? क्या उनके बेटे को उपमुख्यमंत्री बनाने के बाद पता चला या लालू के यादव पर सीबीआई के छापे पड़ने के बाद? लालू यादव जो आरोप लगा रहे है, उसकी सच्चाई क्या है?

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की दशा पर भी लोगों ने सहानुभूति जताई है। एक ने तो यह भी लिख दिया कि बेचारे सुशील मोदी की दशा आडवाणी जैसी हो गई है। आडवाणी जी पीएम इन वेटिंग थे, सुशील मोदी भी सीएम इन वेटिंग थे, है और रहेंगे। अमित शाह के होते हुए वे कभी सीएम बन पाएंगे या नहीं यह भी नहीं कहा जा सकता।

नीतीश का तलाक, तलाक, तलाक और तलाक के तत्काल बाद फिर से शादी कर लेना यह बताता है कि तीन तलाक की परंपरा भाजपा के लिए बुरी नहीं है। अमित शाह वास्तव में चतुर बनिया ही हैं। कई लोग मानते हैं कि बिहार में हुए सत्ता परिवर्तन के पीछे अर्नब गोस्वामी और उनके रिपब्लिक टीवी का बड़ा योगदान रहा है। अर्नब ने अपना लक्ष्य पा लिया। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल के नाम से ट्वीट हो रहे है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि नीतीश कुमार भ्रष्ट और सांप्रदायिक नेता है। उनके खिलाफ केजरीवाल के पास 370 पेज के दस्तावेज है और वे इस बारे में एक प्रेस कांफ्रेंस करने वाले है।

नीतीश और सुशील मोदी के भरत मिलाप के बाद शत्रुघ्न सिन्हा कोमा की दशा में आ गए हैं। दशकों से उनकी इच्छा बिहार का मुख्यमंत्री बनने की है। लगता है कि अब उनके भी अरमां आंसुओं में बह जाएंगे। बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद अब अपराध, गुंडाराज, गरीबी और अन्य समस्याएं हल हो जाएंगी। क्रिकेट में यह संभव नहीं है, लेकिन राजनीति में यह हुआ है कि एक ही बॉल में पूरी टीम आउट हो गई है। अब लालू यादव और उनका पूरा परिवार बहुमत में आने वाला है, विधानसभा में नहीं जेल में।

नौकरी पेशा लोगों ने नीतीश कुमार के इस्तीफे को मजेदार तरीके से लिखा है। किसी ने लिखा है कि नौकरीपेशा जानते हैं कि एक जगह से इस्तीफे देने से पहले एक दूसरी कंपनी का ऑफर लेटर हाथ में होना जरूरी है। नीतीश ने तो वहीं तो किया। नीतीश की घरवापसी के बाद मोदी ने बिहार में विपक्ष को तहस-नहस कर दिया है। कोई आश्चर्य नहीं कि कल को सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी इसी तरह नौकरी बदल लें और बीजेपी में आ जाए। बीजेपी के पास तो राजनाथ, आदित्यनाथ, रामनाथ आदि हैं, लेकिन विपक्ष में तो सब अनाथ ही अनाथ बचे हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का नारा था - बिहार में बहार है, अब नारा है - बिहार में बहार है, भ्रष्टाचार है, हत्याचार है, दरार है, तकरार है, नए गठबंधन का आविष्कार है, पर नीतीशे कुमार है। नीतीश कुमार पर तंज कसने वाले कह रहे है कि बिहार की सरकार देश में इकलौती सरकार है, जो सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ जमकर संघर्ष कर रही है और करती रहेंगी।



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