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गिरोह के कब्जे में शिक्षा,भोपाल से नहीं टीकमगढ़ से चलता है स्कूल ​शिक्षा विभाग

खास खबर            Mar 14, 2018


रजनीश जैन।
मिश्रा टू द्विवेदी टू खरे टू शर्मा टू तिवारी ...यह वह सिलसिला है जो मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को भोपाल से नहीं टीकमगढ़ जिले की निवाड़ी तहसील से चलाता है। इसमें मंत्री का पीए, रिटायर्ड डीपीआई, कई जिलों में फैले अवधिया चेले , उनके द्वारा सेटिंग से बैठाए गये डीईओ, परीक्षा प्रभारी और स्थापना के बाबुओं का तानाबाना है।

मंत्री विजय शाह लाख सिर पटकते रहें प्रदेश के ज्यादातर जिलों में वह होगा जो खरे और अवध चाहेंगे। एक बार मंत्री की जरूरत पड़ती है, उसके एक दस्तख्त के बाद शिक्षा इस माफिया के भरोसे हो जाती है।

डेढ़ दशक पहले उमाभारती के मुख्यमंत्री बनते ही इस बुंदेलखंडी गेंग ने अवध के नेतृत्व में शिक्षा विभाग को अपने चंगुल में लिया था। डीपीसी, प्रमोशन, डिमोशन, डीई, सर्विसबुक रंग कर कैरियर बर्बाद करना, खुद की ओरीजनल सर्विसबुकें गायब कर नई बाइंड करा देना, स्टेनों और कंप्यूटर सेक्शनों में अपने चेलों को हमेशा के लिए नियुक्त कर देने जैसे साजिशी हथकंडों से शिक्षा महकमा एक खास गिरोह ने हथियाया है।

इस गिरोह ने एक ऐसी इंतजामिया को जन्म दिया है जिसने पूरी ब्यूरोक्रेसी और विधायिका को मजबूर कर रखा है। शिक्षा के लिए आने वाले लमसम बजट को तो यह दीमक चाटती ही है। साथ ही इसने साल भर के सत्र को बड़े करीने से एक उद्योग में तब्दील कर दिया है। इस उद्योग की शाखाओं में प्राप्तियों के लिहाज से क्रमशः परीक्षा, मान्यता, शिक्षा उन्नयन, प्रशिक्षण, स्थापना, पीएफ जीपीएफ, क्रीड़ा जैसी ब्रांचें हैं।

ये सब उद्योग में तब्दील हैं और प्रतिवर्ष प्रदेश के हर जिले में करोड़ों का कारोबार करती हैं। यह गिरोह आंकड़ों की बाजीगरी और कंप्यूटर साफ्टवेयरों पर एकाधिकार का ऐसा माहिर है कि जिले का कलेक्टर और जिला पंचायतों के सीईओ से ये मन मुताबिक दस्तखत करा लाते हैं।

यह भय दिखा कर कि... सर अभी सारी व्यवस्था अस्तव्यस्त होगी तो जिम्मेदारी आप पर बनेगी। यह गिरोह इन अफसरों से कैसे भी कागजों पर दस्तखय करता है। अभी सागर में कई वर्ष पूर्व अपना प्रभाव खो चुकी प्रमोशन लिस्ट कज बहुय से नामों को सीईओ के एक दस्तखत से जिंदा कराया गया और प्रमोशन दे दिए गये। यह तकरीबन आपराधिक कृत्य था।

यह गिरोह 'फेल होने वाले निराश न हों' और 'गारंटी से पास' कराने वाली संस्थाओं की मान्यता बीच सड़क पर जारी कर देता है लेकिन ईमानदार संस्था संचालक कंप्यूटर पोर्टल, डेटों और एनओसी के भंवर में ऐसा उलझता है कि वह अपनी वसीयत तक में लिख जाए कि स्कूल मत खोलना रे बाबा।

गिरोह को यह बांये हाथ का खेल है कि वह किसी हत्यारे ,बलात्कारी, आदतन पियक्कड़ और कभी स्कूल न जाने वाले को राष्ट्रपति पुरस्कार दिला दे। लेकिन ईमानदार को 26 जनवरी पर कलेक्टर का पुरस्कार भी न मिलेगा।

सागर का शिक्षा विभाग हांडी के एक चावल की तरह है। कहना नहीं चाहिए कि भोपाल में अपने 'खरे' को पंच सुर सुना कर टीकम गढ़ के निवाड़ी से ही एक शर्मा आकर यहां संतोष कर रहे हैं। आते ही अवध माड्यूल को उन्होंने सक्रिय कर ताश के पत्तों की तरह विभाग के सेक्शनों को फेंटा। सबसे महत्वपूर्ण सेक्शन सबसे खास के पास।

परीक्षा जिला शिक्षा अधिकारी का चैत होती हैं। फसल काट कर रखना है, सबका भावांतर उनके समर्थन मूल्यों के साथ ऊपर तक भी पहुंचाना है। तो कहां नकल का छापा डलेगा, साहब आज किस रास्ते से गुजरेंगे...हर सूचना 'कीमती' है!

जिन सेंटरों को संस्कृत बोर्ड टाइप से गारंटी वाले प्राइवेट छात्रों को भोपाल से बनवाया गया है वहां पूरा सुभीता है कि नहीं यह सब जिम्मेदारी वाले काम हैं। बीट का मीडिया तो सेट है पर कुछ ग्रामीण रिपोर्टर गड़बड कर देते हैं।

लिहाजा न चाहते भी कुछ निकल आता है। वरना ऐसे सेट आईटम निकलते हैं कि ' अमुक शिक्षक फलाने अहिरवार की जेब में साहब ने हाथ डाल कर नकल की पर्चियां निकाली,..सस्पेंड।'

यहां ध्यान दें कि जिसतरह विजिलेंस से पकड़ा जाने वाला ज्यादातर पटवारी होता है वैसे ही साहब के छापे में पकड़े जाने वाले शिक्षक हमेशा अहिरवार, चढ़ार, मरकाम, कोरकू वगैरह होते हैं।...( क्रमशः)

संपर्क: 9425170820

 



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