चिकित्सकों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नहीं रोक सकती सरकार

खास खबर            Nov 30, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो। 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि वर्तमान सरकारी नियमों में नियुक्ति प्राधिकरी को यह अधिकार नहीं है कि जनहित के नाम पर किसी सरकारी कर्मी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से रोक सके। उच्च न्यायालय का कहना है कि राज्य सरकार चिकित्सकों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर रोक नहीं लगा सकती।

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति चाहने वाले पांच डॉक्टरों द्वारा दायर अलग-अलग मुकदमों की एक साथ सुनवाई करते हुए न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोरा तथा न्यायाधीश रजनीश कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि राज्य सरकार को जनहित या डॉक्टरों की कमी के नाम पर उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देने से मना करने का विधिक अधिकार नहीं है।

इनमें से दो मुकमदों में अधिवक्ता नूतन ठाकुर के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि जिन तीन मामलों में डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का प्रार्थनापत्र सरकार द्वारा अस्वीकृत किया गया है, उनमें वे 30 नवंबर से सेवानिवृत्त माने जाएंगे और जिन दो मामलों में अभी निर्णय लिया जाना शेष है, उनमें वे डॉक्टर 31 दिसंबर से सेवानिवृत्त माने जाएंगे, बशर्ते उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही न हो रही हो। न्यायालय ने इन सभी मामलों में तीन माह में समस्त सेवा संबंधी लाभ भी देने के आदेश दिए।

इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा की हालत पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा, "सरकार को आम लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं तथा बेहतर सरकारी अस्पतालों की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में वास्तविक प्रयास करने चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि आखिर सरकारी डॉक्टर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति क्यों ले रहे हैं। सरकार को सोचना होगा कि जहां अन्य क्षेत्रों में सरकारी सेवा में आने की मारामारी है, वहीं डॉक्टर सरकारी सेवा में क्यों नहीं आ रहे हैं और आने पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति क्यों मांग रहे हैं।"

न्यायालय ने डॉक्टरों को उनकी योग्यता के काम की जगह प्रशासकीय कार्यो में नियुक्त किए जाने पर भी चिंता व्यक्त की और सरकार से इनकी कैडर व्यवस्था को बेहतर करने को कहा।


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