एपल मैनेजर की हत्या : दोषी सिर्फ पुलिस ही नहीं सामाजिक अराजकता भी

खास खबर            Oct 01, 2018


ओमप्रकाश गौड़।
लखनऊ में चेकिंग में कार नहीं रोकी तो पुलिस वाले ने गोली चला दी. गोली चालक को लगी. घायल चालक की कार अनियंत्रित होकर दीवार से टकराकर रूक गई. चालक को अस्पताल ले गये जहां उसकी मौत हो गई.

चालक एपल कंपनी का एरिया मेनेजर विवेक तिवारी था जो देर रात में एपल कंपनी के मोबाइल के बाजर में उतारे गये नये माडल एक्कस एस की लांचिंग की पार्टी से रात करीब दो बजे एक पार्टी से वापस आ रहे थे और कार एक अंडरपास के पास खड़ी की थी. कार में उनके साथ एक महिला मित्र भी थी जो पार्टी से ही उनके साथ थी.

दो पुलिसवाल थे जो चेकिंग कर रहे थे. उनमें से एक ने कार को रोका-टोका तो अमित ने अनसुना कर गाड़ी आगे बढ़ा दी तो पुलिसवाले ने गोली चला दी. उसका कहना रहा कि उसे संदेह था मामला संदिग्ध है. जान का खतरा लगा इसलिये गोली चलाई. पुलिस की नजर में यह एक एनकाउंटर था. पर दावा किसी को हजम नहीं हुआ और सोशल मीडिया पर फर्जी एनकाउंटर का हल्ला मच गया.

पुलिस भी अपनी कहानी पर ज्यादा नहीं टिक पाई. उसने पहले एक तो फिर दूसरे पुलिसकर्मी को गिरफ्तार कर हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. योगी सरकार ने एसआईटी की जांच बिठा दी. मृतक की पत्नी को 25 लाख का मुआवजा और नगरनिगम में नौकरी की घोषण कर दी. मंत्री ब्रजेश पाठक और आषुतोष टंडन ने मृतक के परिजनों से मुलाकात कर हर संभव सहायता का वादा किया. उसके बाद भी विवाद नहीं रूका तो मुख्यमंत्री योगी ने सीबीआई जांच के लिये भी सहमति दे दी.

मृतक की पत्नी ने सहायता राशि को नाकाफी बताया और पुलिस में नौकरी दिलाने की मांग की. राजनीतिक दल भी रोटियां सेंकने को आगे आये किसी ने पचास लाख तो किसी ने मुआवजा राशि एक करोड़ बता कर मांग को बल दिया. सोशल मीडिया पर भी मोदी-योगी समर्थक और विरोधी जमकर भिड़ गये.

मौत कहीं शोर में खो गई और राजनीति हावी हो गई. मेरे मन में इसी राजनीति और माहौल को लेकर सवाल हैं जो मूल सवाल को भटका देते हैं.

पहला सवाल तो मृतक के पक्ष के पक्षधरों के साथ है कि आजकल फर्जी पुलिसवाले भी कम नहीं टकराते हैं. जब बात देर रात की हो तो ऐसा भय होना स्वाभाविक है. इसलिये मृतक अमित ने कार नहीं रोकी तो कहीं से गलत नहीं था. पुलिस को संयम का परिचय देकर गोली हड़बड़ी में न चला कर निशाना साधकर सही तरीके से कार पर निचले हिस्से पर चलाना था जहां टायर पर लगती और कार रूक जाती.

हो सकता है अमित खुद कार रोक देता. लेकिन ऐसी पुलिस को ट्रेनिंग कहां मिलती है. समाज में कानून की अराजकता कोई नई तो नहीं है. इस पर तो सोचा जाए कि क्या पुलिस की ट्रेनिंग को सुधारने और समाज में कानून की अराजकता को रोकने के लिये कुछ किया जा सकता है.

दूसरा सवाल यह उठता है कि जब कानून का रखवाला अगर चेकिंग में रोक रहा है तो मृतक को पुलिस पर विश्वास क्यों नहीं हुआ. उसमें कानून के पालन की भावना क्यों नहीं जागी. वह जांच को रूक जाता तो यह गोली चालन नहीं होता.

मृतक सही था और मामला एक सही तरीके से शांतिपूर्वक निपट जाता. सवाल यही है कि पुलिस को ऐसा क्या करना होगा कि लोग रात में भी असली नकली पुलिस वाले में अंतर कर सकें. पुलिस का सम्मान करें और कानून के पालन की भावना जागे, वे कानून के रखवाले से भागे नहीं. पुलिस और कानून का सम्मान तो फिर समाज की जिम्मेदारी बनती है. इसलिये यह सोचा जाना चाहिये कि समाज क्या करे जो यह भावना आए.

देश में आये दिन छोटे छोटे कानूनों का पालन करने की भावना नहीं है बल्कि उन्हें तोडऩा प्रतिष्ठा की बात बन गई है. हम इस गलत भावना को कैसे तोड़े और कानून पालन की भावना जाग्रत हो इसके लिये समाज और पुलिस क्या करे इस पर विचार किया जाना चाहिये. इसमें भ्रष्टाचार और अधिकारों के दुरुपयोग की बात भी उठे तो उस पर भी बात होनी चाहिये और उचित कदम उठाने पर विचार होना चाहिये.

विवेक तिवारी की मौत से उनके परिवार को जो क्षति हुई उसकी पूर्ति न कोई रकम कर पाएगी न कोई नौकरी. फिर भी उस पर ज्यादा उदारता से विचार हो यह सही है लेकिन जो सवाल उठ रहे हैं वो राजनीतिक हो हल्ले और सोशल मीडिया की बेकाबू बहस में खो न जाएं और उन पर विचार हो यह भी सोचा जाना चाहिये.
फेसबुक वॉल से।

 



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