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लोया की संदेहास्पद मृत्यु के पीछे छिपा काला सच:बात निकली है तो दूर तलक जायेगी

खास खबर            Nov 26, 2017


गिरीश मालवीय।
जस्टिस लोया की संदेहास्पद मृत्यु के पीछे छिपा काला सच ये है कि वह सोहराबुद्दीन के फेक एनकाउंटर से जुड़े उस केस के जज थे जिसमें आरोपी अमित शाह थे। 23 जुलाई 2010 को सीबीआई ने अमित शाह को मुख्य आरोपी बनाते हुए इस मामले में आरोपपत्र दाखिल किया था,दो दिन बाद अमित शाह को गिरफ्तार किया गया इसके बाद मोदी सरकार बनते ही 2014 में जज लोया की मौत और, मौत के ठीक एक महीने में नए जज द्वारा अमित शाह को क्लीन चिट दे देना यह बताता है कि दाल में कुछ काला है।

कड़ियों से कड़ियाँ जुड़ती चली जाती हैं, कहते हैं कि इश्क ओर मुश्क छिपाए नहीं छिपते तो सोहराबुद्दीन से शुरू करते हैं .......सोहराबुद्दीन कौन था?............कुछ लोग मानते हैं कि वह एक गैंगस्टर था इसलिए उसके साथ जो हुआ वह ठीक था ?

23 नवंबर 2005 को गुजरात के एंटी टेररिज्म स्क्वाड ने गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख, कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति को गिरफ्तार कर लिया ओर 26 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस से फर्जी पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गयी।

अब कमाल देखिये सिर्फ तीन दिन बाद 28 नवंबर सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी की हत्या हो जाती है ओर एक महीने के अंदर फर्जी मुठभेड़ का इकलौता चश्मदीद गवाह तुलसीराम प्रजापति भी फर्जी पुलिस मुठभेड़ मारा जाता है। लेकिन ऐसा क्या विशेष था सोहराबुद्दीन में जो उसके पीछे पुलिस ने अपने ऊपर फर्जी एनकाउंटर का दाग लगने दिया ?

अखबार DNA ने गुजरात पुलिस सूत्रों के हवाले से एक खबर छापी थी, जिसमें कहा गया था कि हो सकता है, कि गुजरात के गृहमंत्री हरेन पंड्या की हत्या में सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम का इस्तेमाल किया गया हो। पुलिस सूत्रों के हवाले से DNA ने लिखा कि पंड्या की हत्या का काम पहले सोहराबुद्दीन को दिया गया था, लेकिन उसके पीछे हट जाने पर तुलसीराम ने इसे अंजाम दिया। तो उसका मारा जाना भी लाजिमी था।

सूत्र का कहना था कि बाद के दिनों में असल साजिशकर्ता का सोहराबुद्दीन और तुलसीराम से भरोसा उठने लगा था पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट ने भी कुछ ऐसा ही दावा किया था।
तो इस केस की पहली कड़ी हरेन पंड्या थे।

दरअसल पण्ड्या गुजरात की राजनीति में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता केशुभाई पटेल खेमे के थे, इसलिए नरेंद्र मोदी के विरोधी माने जाते थे। लेकिन इन मोदी और पंड्या के बीच सबसे बड़ी खटास कुछ पर्सनल थी 2001 में बीजेपी आलाकमान ने केशुभाई की बीच कार्यकाल में कुर्सी ले ली और नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बना दिया।

मोदी चुनाव लड़ने के लिए सेफ सीट की तलाश में थे. उन्होंने अहमदाबाद की एलिसब्रिज सीट पर हाथ रखा, जो हरेन पंड्या की सीट थी। पंड्या इसके लिए तैयार नहीं थे यहीं से दोनों की अदावत शुरू हुई, मोदी ने 2002 के चुनाव में इस सीट पर हरेन पंड्या की जगह किसी नए नेता को चुनाव लड़वा दिया और उसके कुछ दिनों के बाद दो व्यक्तियों ने मॉर्निंग वॉक पर जाते हुए हरेन पंड्या को गोली मार दी

हरेन पंड्या की पत्नी जागृति पंड्या भी जस्टिस लोया के परिजनों की तरह कहती रहीं कि मेरे पति की हत्या राजनीतिक कारणों से की गयीं पर कोई सुने तब तो। सालों बाद उन्हें आनंदीबेन सरकार ने उन्हें ‘स्टेट कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (SCPCR) का चेयरपर्सन बना दिया, इसके बाद जागृति भी खामोश हो गईं।

वैसे एक समय बाद सभी खामोश हो जाते हैं या ख़ामोश कर दिए जाते हैं। लेकिन जुबाने ख़ंजर तब ख़ामोश हो जाती है जब आस्तीनों से बहता लहू लगातार आवाज देता रहता है, निरंजन टाकले सरीखे पत्रकार को वह मद्धम पड़ती आवाज सुनाई दे जाती है।

फेसबुक वॉल से व्हाया सुभाष सिंह सुमन

 


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