गौरक्षक ध्यान दें बुंदेलखंड में लाखों गौधन सड़क पर

खास खबर            Aug 11, 2017


छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
क्या गौवंश भी महज राजनीति चमकाने और हंगामा मचाने का साधन बनकर रह गये है। हकीकत तो कुछ यही बयां करती है। सरकारी आंकडो के अनुसार सागर संभाग के पांच जिलो में करीब 25 लाख गौ-वंश है। अनुदान प्राप्त गौशालाओ की हकीकत किसी से छुपी नही है। तभी तो प्रतिदिन दर्जनों गौधन सडको पर भटकते सडक दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। तो स्वयं अपाहिज होकर बैमौत मारे जा रहे हैं वहीं कथित गौरक्षकों का अता-पता नहीं है। छतरपुर जिले की पुलिस इन दिनो सडकों पर भटकते गौंवंश के सींगों पर रेडियम लगाने के काम में जुटी है। सवाल उठता है कि क्या पुलिस का यह काम है कानून व्यवस्था चौपट है जिसे संभालने की जगह पुलिस गौवंशो की रक्षा कर रही है। दलील है कि सडक हादसो में कमी आयेगी वैसे ये काम उन कथित गौरक्षको का है, जो गाय को लेकर हंगामा खडा करने के लिये एकत्रित हो जाते हैं।

हालत यह है कि लाखों की तादाद में गौंवंश सडकों पर भटक रहा है। सरकार के किसान पोर्टल के अनुसार सागर संभाग के पांच जिलो छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ, सागर और दमोह जिले में 24 लाख 93 हजार 363 गौधन की संख्यां है। वर्ष 2012-13 में पशुओ की गणना के अनुसार छतरपुर में 343913, दमोह में 558845, पन्ना में 414815, सागर में 808820 और टीकमगढ जिले में 366970 गौवंश है। मान लिया जाये कि करीब पांच लाख गौवंश आज भी घरों, किसानो और गौशालाओ में पल रहा है। तब भी करीब 20 लाख गौवंश सडकों पर भटक रहा है।

पांच माह पूर्व 9 मार्च को  राष्ट्रीय समानता दल ने गायेा की व्यवस्था बनाओ किसान बचाओ का नारा देते हुये बकायदा छतरपुर जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया था। भारी संख्यां में गौंवंश से परेशान होकर सडको पर उतर आये थे। किसानो का कहना था कि बुंदेलखंड में नीलगाय व गायो की अधिकता तो है पर कोई व्यवस्था नही है। किसानो को रात रात भर जगकर फसल की रखवाली करने पडती है। नजर हटी दुघर्टना घटी की तर्ज पर थोडी चूक में ही गौंवंश खेतो में घुसकर फसल नही बल्कि किसानो की किस्मत को खा जाते है। भटकते गौवंशो के कारण सडक दुर्घटना में प्रतिवर्ष दर्जनों लोग अकाल मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं, वहीं कुछ जीवन भर के लिये अपाहिज हो जाते हैं।

ण्क सच यह भी है कि प्रतिवर्ष हजारो की संख्यां में गौवंश भी हादसो का शिकार होकर तिलतिल कर मर जाता है। पिछले साल 2 नंवबर को छतरपुर जिले के समीपी गावं मोरबा में फसल को चैपट कर रहे गौंवंश केा एक कमरे में बंद कर दिया था। जिसमें 12 गायो की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद तत्काल हिन्दू संगठन अपनी रोटियां सेकने में जुट गये थे। ज्ञाापन सौंपे गये लेकिन आवारा गौवंश को आशियाना देने के लिये कोई कदम नही उठाये गये।  

हालांकि सागर संभाग में कई गौशालायें संचालित है, पर इनकी हकीकत सर्वविदित है। प्राप्म जानकारी के अनुसार वर्ष 2015-16 में छतरपुर जिले की 11 गौशालाओ के 2064 गौवंशो के लिये गौपालन बोर्ड से 35 लाख 4 हजार 162 रूपये अनुदान मिला। वर्ष 2014 में जिले की 14 गौशलाओ को अनुदान मिला था। अचानक तीन गौशालाये गायब हो गई। जिनकी तपाश आज तक नही की गई। अनुदान प्राप्त 11 गौशालाओ में कुछ के पास 50 एकड से अधिक जमीन है। चौंक जायेंगे कि छतरपुर शहर के मुख्य बाजार में जिस गौशाला की 46 से अधिक दुकानें हों उसकी प्रतिवर्ष आय मात्र ढाई लाख रूपये होगी, जो कर्मचारियो पर ही खर्च हो जाती हो।

यह सच छतरपुर में संचालित उस गौरक्षणी सभा का है जिसे छतरपुर के महाराज राजा विश्वनाथ सिंह ने करीब सौ वर्ष पूर्व संचालित किया था। समीपी गावं राधेपुर में 60 एकड जमीन, गौवंश को पानी पीने के लिये कुंआ और उनके चारे की व्यवस्था सब कुछ के लिये गौशाला के नाम संपत्ति दान कर दी थी। अमीर होते हुये भी निज स्वार्थो के कारण कंगाल इस गौशाला को प्रतिवर्ष 65 हजार रूपये अनुदान भी प्राप्त होता है। पिछले साल नंबबर माह में गौसंवधर्न बोर्ड के उपाध्यक्ष संतोष जोशी ने अनुदान प्राप्त गौशालाओ का निरीक्षण किया तो कलई खुलकर सामने आ गई थी। टीकमगढ जिले  में मनिया, कंचनपुरा में गंभीर लापरवाही उन्होने देखी। छतरपुर जिले में सूरजपुरा, बारीगढ, नौगांव की गौशाला में खामियां मिली। पन्ना और दमोह में भी गौशालाओ के गंभीर हाल दिखे। गौसवंधर्न बोर्ड के उपाध्यक्ष का ग्यारह गौशालाओ के पंजीयन निरस्त कर वसूली करने का निर्देश उन आरोपो पर मुहर लगा गया कि गौशलाओ के नाम पर दुकाने खुली हुई है।

 



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