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चंबल की बंदूकें गांधी के चरणों में का विमोचन 22 मार्च को

मीडिया            Mar 20, 2018


मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित माधव राव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय 22 मार्च को वर्ष 1972 में श्री जय प्रकाश नारायण के सान्निध्य में 270 बागियों के शस्त्र समर्पण की ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व घटना की जीवंत रिपोर्टिंग करने वाली पुस्तक चंबल की बंदूकें गांधी के चरणों में का विमोचन करने जा रहा है। समारोह संग्रहालय के सभागार में दोपहर 2:30 बजे से होगा।

यह जानकारी देते हुए संग्रहालय की निदेशक डा. मंगला अनुजा ने बताया कि कार्यक्रम में उस अभियान का किसी न किसी रूप में हिस्सा रही विभूतियां ही अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उन क्षणों के साक्षी रहे कर्मयोगी डा.एस.एन. सुब्बाराव होंगे।

अध्यक्षता उस घटना की रिपोर्टिंग करने वाली टीम के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार श्री श्रवण गर्ग करेंगे। विशेष अतिथि बागियों के आत्समर्पण के दौरान भिंड के पुलिस अधीक्षक डा. आर.एल.एस यादव तथा समाजशास्त्री प्रो. श्याम बिल्लौरे होंगे।

इस अवसर पर श्री प्रभाष जोशी तथा श्री अनुपम मिश्र के परिजन विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। संग्रहालय के संस्थपक श्री विजयदत्त श्रीधर के अनुसार यह आयोजन संग्रहालय की 'श्राद्ध अनुष्ठान श्रंखला के तहत किया जा रहा है। कार्यक्रम की विशेषता यह है कि सभी वक्ता उस अभियान का हिस्सा रहे हैं, अत:उन्हें सुनना श्रोताओं के लिए बिरल अनुभव होगा।

वर्ष 1972 में 14 अप्रैल से 1 मई के बीच चंबल के 270 बागियों ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सान्निध्य में महात्मा गांधी के चित्र के समक्ष शस्त्र समर्पण किए थे।

इस आत्मसमर्पण के लिए जयप्रकाश जी ने फांसी नहीं होने परन्तु अपराध की पूरी सजा भुगतने की शर्त रखी थी। इस पूरी घटना की जीवंत रिपोर्टिंग का जिम्मा उस समय के तीन तरुण पत्रकारों सर्वश्री प्रभाष जोशी,अनुपम मिश्र तथा श्रवण गर्ग को सौंपा गया था।

श्री जोशी तथा श्री मिश्र आज हमारे बीच में नहीं है। इन पत्रकारों ने अपनी रिपोर्टिंग में समाज,पुलिस-प्रशासन,बागियों के परिजन तथा अन्य पहलुओं का बड़ा सटीक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। इन्हें रिपोर्ट तैयार करने के लिए 96 घंटे का समय दिया गया था, जिसे इन्होंने 84 घंटे में ही पूरा कर दिया था।

इस घटना के मूल में करीब 12 वर्ष पूर्व 1960 में बिनोबा भावे द्वारा 20 बागियों के आत्मसमर्पण की घटना थी। इसे बाबा ने बागियों को समाज द्वारा पुन: प्राप्त करने का क्षण बताया था।

पुस्तक में इन सभी बिन्दुओं का समावेश किया गया है। यह पुस्तक श्री सुखदीप उप्पल के सौजन्य से प्राप्त हुई है। संग्रहालय ने इसका पुर्नप्रकाशन कराया है।

 



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