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बेहतर छायाकार बनना है तो कैमरे से नाता तोड़ दो:ऑंद्रे

मीडिया            Aug 01, 2017


पंकज शर्मा।
पथरीले शहरों में अक्सर आपको पता ही नहीं चलता है कि आपके आसपास इतना कुछ सार्थक हो रहा है। आज शाम मैं ने एक छायाकार को सुना, जो अपने सुनने वालों को बता रहा था कि अगर बेहतर छायाकार बनना है तो कैमरे से नाता तोड़ दो। मैं हैरत में था। लेकिन जब सुनता गया तो पाया कि जीवंत छायाकारी के जिस दर्शन को ऑंद्रे फेंथोम ने समझा है, उसकी कलियुगी छायाकारों पर तो दूर-दूर तक छाया भी नहीं है।

ऑंद्रे तकनीक और उपकरणों से नहीं, जीवन से लैस होने की सलाह दे रहे थे। उनका कहना था कि तसवीर तो एक घटना है। वह तो घटित होती है। कैमरा उसे कै़द करने की उपकरण भर है। सही रोशनी का आकलन कर लेने और कैमरे के लैंस की झिरी का आकार तय कर सकने की दक्षता तो बहुत लोग हासिल कर लेते हैं। लेकिन जब एक तसवीर जन्म ले रही होती है तो उस लमहे को वही पकड़ पाते हैं, जिन्हें अपने ‘स्व’ का अहसास है, जिनकी संवेदनाएं जीवन से जुड़ी हैं और जो बाहर नहीं, भीतर देखते हैं।

ऑंद्रे से आज मेरी पहली मुलाकात थी। वे 18 साल से फोटोग्रॉफी कर रहे हैं। ललित कला अकादेमी का राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले वे अपने वक़्त के सबसे युवा छायाकार थे। आज उनकी तसवीरों की देश-दुनिया में धूम है। प्रणव मुखर्जी ने ऑंद्रे से राष्ट्रपति भवन की तसवीरों की एक पुस्तक तैयार करवाई थी। इस पुस्तक में दर्ज़ तसवीरें सचमुच अद्भुत हैं--प्रणव दा की तसवीर भी।

ऑंद्रे से मेरी यह मुलाकात ‘द डिज़ाइन विलेज’ में हुई। इसकी अजब कथा भी मैं ने ‘विलेज’ के रचयिता सौरभ गुप्ता से सुनी। कत्थे के बंद पड़े एक कारखाने को सौरभ ने अपनी वास्तुकला विशेषज्ञता से दो महीने में ही जिस तरह डिज़ाइन विलेज में तब्दील कर दिया है, उसे देखना अपने में एक अनुभव था। भारी-भरकम कबाड़ मशीनों का उन्होंने अपने ‘गॉंव’ में ऐसा स्वाभाविक विलय किया है कि आप चकराए बिना नहीं रहेंगे। सौरभ मानते हैं कि जीवन, संरचनाएं और वास्तुकला एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। सौरभ की कोशिश है कि वे नई पीढ़ी में परा-सांस्कृतिक संवाद के ज़रिए वैश्विक डिज़ाइन के प्रतिमान स्थापित करने का जज़्बा पैदा करें। वैभव का आभार कि वे मुझे यह जगह दिखाने ले गए। इस आपाधापी में मेरे चंद घंटे तो सार्थक हुए।

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