चंबल की बंदूकें गांधी के चरणों में के विमोचन में बोले वक्ता,ऐसा समाज बने जिसमें डाकू पैदा ही न हों

मीडिया            Mar 22, 2018


मल्हार मीडिया भोपाल।
समाज में डाकू पैदा नहीं होते, सामाजिक परिस्थतियां डाकू या बागी बनने को विवश करती हैं। शोषण, अत्याचार और प्रतिशोध की भावना इसके मूल में रहती आईं हैं। सातवें दशक में बागियों के शस्त्र समर्पण का दौर चला। लेकिन इससे यह समस्या समाप्त नहीं हुईं।

आज भी समाज में यह प्रवृत्ति जिंदा है। बस स्वरूप बदल गए हैं। हमें ऐसी सामाजिक परिस्थतियां बनानी होंगी कि इस प्रवृत्ति को समाप्त किया जा सके।

कुछ इसी आशय के विचार गुरुवार को माधव राव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय के सभागार में सुनाई दिए। मौका था करीब 46 साल पहले जेपी के सान्निध्य में चंबल के 270 बागियों के शस्त्र समर्पण की ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व घटना की जीवंत रिपोर्टिंग करने वाली पुस्तक 'चंबल की बंदूकें गांधी के चरणों में के विमोचन समारोह का।

संग्रहालय की 'श्राद्ध अनुष्ठान श्रृंखला के तहत आयोजित इस समारोह की विशेषता यह थी कि कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर वे ही लोग मौजूद थे जो किसी न किसी रूप में इस ऐतिहासिक घटना का हिस्सा रहे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उन क्षणों के साक्षी रहे कर्मयोगी डा.एस.एन. सुब्बाराव थे।

अध्यक्षता उस घटना की रिपोर्टिंग करने वाली टीम के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कर रहे थे। विशेष अतिथि बागियों के आत्समर्पण के दौरान भिंड के पुलिस अधीक्षक डा. आर.एल.एस यादव तथा समाजशास्त्री प्रो. श्याम बिल्लौरे थे।

इस अवसर पर रिपोर्टिंग करने वाली टीम के दो अन्य सदस्य प्रभाष जोशी के पुत्र सोपान जोशी,भाई गोपाल जोशी तथा अनुपम मिश्र की धर्मपत्नी मंजू मिश्र विशेष रूप से उपस्थित थे। संग्रहालय की ओर से निदेशक डॉ. मंगला अनुजा तथा दीपक पगारे ने परिजनों को सम्मानित किया। इस अवसर पर उस समय के एक बागी बहादुर सिंह भी मौजूद थे। मंच पर इन्हें भी सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कर्मयोगी सुब्बाराव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि समाज में शोषण की मानसिकता है तो डाकू अवश्य बनेंगे। बीहड़ों के दस्यु तो समाप्त हो गए, लेकिन अब शहरों में हैं। इसके रूप बदले हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य को ही ईश्वर ने यह गुण दिया है कि वह अपने आपको बदल सकता है। इसलिए हमें स्वयं को बदलना चाहिए।

उन्होंने कहा हम अपने भीतर स्वतंत्र भारत के नागरिक होने का भाव पैदा करें,इससे आशय एक ईमानदार और समृद्ध भारत बनाने का भाव है। उन्होंने बागियों के समर्पण के दौरान तथा जेल से छूटने के बाद बागियों के साथ गुजारे अनुभवों को भी साझा किया। समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने इस अवसर को करीब 46 साल पहले की दुनिया में लौटने के क्षण बताए। उन्होंने कहा कि इस अभूतपूर्व घटना की रिपोर्ट मोती तबेला के एक छोटे से मकान में पूरी की थी। यह अपने आप में अनूठा अनुभव था और ऐसा अनुभव फिर कभी दोबारा नहीं मिला। उस समय उस इलाके में कई तरह की स्थितियां थीं।

सबसे बड़ा सवाल यही था कि समर्पण के बाद डाकुओं का क्या होगा। ऐसे कई सवाल तैर रहे थे। उन्होंने बताया कि चंबल के बागियों के समर्पण के बाद बुंदेलखंड के डाकुओं का समर्पण हुआ था। यह कहानी भी सामने आनी चाहिए। उनका सुझाव था कि सप्रे संग्रहालय इस काम को पूरा करे।

कार्यक्रम के विशेष अतिथि भिंड के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डॉ. आरएलएस यादव ने भी एक पुलिस अधिकारी के तौर पर अपने अनुभव बांटते हुए कहा कि वर्ष 1971 के आस-पास समर्पण की यह प्रक्रिया शुरु हुई। हमारे तत्कालीन अधिकारियों ने यह निर्देश दिए थे कि इस समस्या के कारणों को खोजें। तब पाया कि इसकी जड़ में लोगों पर झूठे केस लादना,अत्याचार,दमन और गरीबी है। इसके बाद सरकार के स्तर पर भी प्रयास हुए। ग्रामीणों में पुलिस के प्रति विश्वास पैदा करना, आपसी समन्वय बनाने जैसी कोशिशें हुईं।

इलाके में नहरें आना भी एक कारक रहा, इससे रोजगार के अवसर बढ़े। उन्होंने बताया कि इस ऐतिहासिक घटना को अंजाम देने की तैयारी पुलिस ने ही की थी। डॉ. यादव ने कहा कि अपराधियों से निपटने में कई बार पुलिस का बड़ा नुकसान होता है। इस पक्ष को भी समझने का आग्रह उन्होंने समाज से किया। दूसरे विशेष अतिथि समाज शास्त्री प्रो. श्याम बिल्लौरे ने कहा कि यह घटना विश्व में हुए अब तक के हृदय परिवर्तन की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, इसका सही मूल्यांकन होना चाहिए। उन्होंने फिल्मकार या टीवी धारावाहिक निर्माताओं से आग्रह किया कि इस पर फिल्म या सीरीयल बनाने की तरफ सोचें ताकि नई पीढ़ी इससे परीचित हो सके।

आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संग्रहालय लोगों में अध्ययनवृत्ति जाग्रत करने तथा सामाजिक सरोकारों से जुड़े अन्य कार्य करता है। यह आयोजन इसी की एक कड़ी है। यह सिलसिला बीते 10 वर्षों से चल रहा है। उन्होंने श्रवण गर्ग के सुझावों को भी जल्द अंजाम दिए जाने का भरोसा दिलाया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. आर रत्नेश ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्धजन मौजूद थे।

 



इस खबर को शेयर करें


Comments