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आधार लिंक करवाने की डेडलाइन 31 मार्च 2018 होगी

राष्ट्रीय            Dec 07, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं से आधार को अनिवार्य रूप से लिंक करने की आखिरी तारीख बढ़ाकर 31 मार्च, 2018 कर दी जाएगी, लेकिन यह छूट सिर्फ उन लोगों को दी जाएगी, जिनके पास अब तक आधार नहीं है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस संबंध में केंद्र सरकार शुक्रवार, 8 दिसंबर को अधिसूचना जारी करेगी।

हालांकि अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को यह भी बताया कि डेडलाइन आगे बढ़ा दिए जाने के बावजूद मोबाइल नंबर को आधार से लिंक करवाने की डेडलाइन सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 6 फरवरी, 2018 ही रहेगी।

दरअसल याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि आधार मामले की सुनवाई नवंबर के आखिरी हफ्ते में होनी थी, सो, अब कम से कम अंतरिम आदेश जारी करने के लिए जल्द सुनवाई की जाए, क्योंकि विभिन्न योजनाओं के लिए डेडलाइन 31 दिसंबर है, जो काफी करीब आ गई है। वहीं, पिछली सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि डाटा प्रोटेक्शन कानून को लेकर बनाई गई कमेटी अपने सुझाव छह हफ्ते में देगी, सो, मामले की सुनवाई जनवरी में होनी चाहिए, और सरकार योजनाओं के लिए डेडलाइन बढ़ाने को तैयार है।

इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने इसका विरोध किया था और कहा कि सरकार सिर्फ कल्याणकारी योजनाओं के लिए डेडलाइन बढ़ाना चाहती है, लेकिन अन्य योजनाओं के लिए नहीं, और वह भी सिर्फ उनके लिए, जिनके पास आधार नहीं हैं। दो जजों की बेंच ने मामलों को जोड़ते हुए आदेश दिए थे कि अगर नवंबर के अंत तक सुनवाई पूरी न हो तो याचिकाकर्ता कोर्ट में अंतरिम रोक की मांग कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एके सीकरी की बेंच ने 13 नवंबर को नोटिफिकेशन पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि चूंकि मामले की अंतिम सुनवाई नवंबर में तय है और बैंकों के लिए डेडलाइन 31 दिसंबर है, इसलिए अभी अंतरिम आदेश की कोई ज़रूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि अगर डेडलाइन 31 दिसंबर तक मामले की सुनवाई पूरी न हो पाए, तो इस पर रोक के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल की जा सकती है।

दरअसल बैंक खातों और मोबाइल नंबर से आधार नंबर को जोड़ने के अनिवार्य नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि यह नियम संविधान में अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों को खतरे में डालते हैं।



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