मल्हार मीडिया ब्यूरो।
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि 'जेहादी और नक्सली' नागरिकों के अधिकार पर खतरा हैं, लेकिन मानवधिकार संगठन इसपर कभी कुछ नहीं बोलते। मंत्री ने कहा कि आम लोगों के मानवधिकारों की रक्षा के लिए आतंकवादियों से कठोरता से निपटना चाहिए।
जेटली ने अपने ब्लॉग में लिखा, "हत्यारों के साथ निपटना कानून-व्यवस्था का मामला है। यह राजनीतिक समाधान का इंतजार नहीं करता। एक फिदायीन मरना चाहता है। वह हत्या करना भी चाहता है..जब वह किसी को मारने के लिए आगे बढ़ता है तो क्या सुरक्षा बल को उसे टेबल पर बैठने के लिए कहना चाहिए और उसके साथ बातचीत करनी चाहिए।"
जेटली ने कहा, "इसलिए ऐसी नीति होनी चाहिए जो आम लोगों की रक्षा करे..उन्हें आतंकवाद से मुक्त करे, उन्हें बेहतर जीवन व पर्यावरण मुहैया कराए। एक आतंकवादी जो आत्मसमर्पण करने से इंकार करता है, संघर्षविराम का उल्लंघन करता है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कानून अपने हाथ में लेने वाले किसी व्यक्ति के साथ किया जाता है।"
उन्होंने कहा, "विचारधारा के स्तर पर उग्रवाद और आतंकवाद फैलाने के लिए मुख्यत: दो समूह जिम्मेदार हैं। जिनमें जेहादी और अलगाववादी को पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित और वित्तपोषित किया जाता है। दूसरा, नक्सली मध्य भारत के कुछ जनजातीय जिलों में सक्रिय हैं। दोनों के बीच 'पारदर्शी समन्वय' ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट हो रहा है।"
जेटली ने कहा, "दोनों समूह संवैधानिक रूप से निर्वाचित सरकार को सत्ता से बाहर करना चाहते हैं। वे लोकतंत्र से घृणा करते हैं। वे लोग राजनीतिक बदलाव में प्रभाव डालने के लिए हिंसा का प्रयोग करते हैं। जिस तरह की प्रणाली के बारे में वे सोचते हैं, जहां लोकतंत्र, चुनाव, समानता, बोलने की आजादी नहीं है।"
उन्होंने कहा, "इसबीच, नक्सली जनजातीय क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य नहीं होने देते हैं। उनसे सहमति नहीं रखने वाले निर्दोष जनजातीय लोगों की हत्या कर देते हैं। वे लोग सार्वजनिक इमारत को ध्वस्त कर देते हैं, सुरक्षाकर्मियों की हत्या करते हैं और यहां तक कि वे लोग असहाय नागरिकों से समानांतर कर वसूलते हैं।"
जेटली ने मानवधिकार संगठनों पर आरोप लगाते हुए कहा कि ये लोग नागरिकों के मानवाधिकार हनन के बारे में कुछ नहीं बोलते और 'सुरक्षाबलों की जघन्य हत्या पर कभी आंसू नहीं बहाते'।
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