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फिल्म समीक्षा:करीब-करीब ओके है करीब-करीब सिंगल

पेज-थ्री            Nov 15, 2017


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
तनुजा चंद्रा की करीब-करीब सिंगल करीब-करीब ओके है। महानगरीय दर्शकों के लिए बनाई गई है। रोमांटिक कहानी है। इंटरवल के बाद धीमी गति में झेलनी पड़ती है। इरफान खान ने 3-4 फिल्मों के डायलाग इसी फिल्म में झिलवा दिए है। झेल सको तो झेल लो के अंदाज में। परिपक्व हो चुके युवाओं का रोमांस है, जहां हीरोइन 35 साल की है और हीरो भी इससे ज्यादा। हीरो को तीन बार मोहब्बत करने का अनुभव है और हीरोइन को एक बार शादी का। सैनिक पति की मौत के बाद हीरोइन स्टेपनी आंटी बनकर कभी किसी के बच्चों को शॉपिंग कराती हैं, तो कभी किसी की बिल्ली की केयर टेकर बनती हैं।

हीरोइन को अचानक अब तक सिंगल.कॉम टाइप रोमांस की वेबसाइट का पता चलता है और वह नाम बदलकर लॉगिन करती है। वहीं उसकी मुलाकात हो जाती है, हीरो से। दोनों कॉफी हाउस के बिजनेस में बढ़ोत्तरी करते हैं और फिर हीरो उसे अपनी पुरानी माशुकाओं से मिलाने का प्रस्ताव रखता है।

आमतौर पर छोटे शहरों में प्रेमिकाएं किसी और से शादी होने के बाद प्रेमी को मामा बना देती है। यहां भी इरफान ने मामा की भूमिका निभाई है। दोनों सिंगल कजिन बनकर हीरो की पुरानी माशुकाओं से मिलने हरिद्वार और अलवर जाते हैं। तीसरा पढ़ाव गंगटोक का होता है, लेकिन तभी कहानी में मोड़ आता है, क्योंकि गंगटोक में हीरोइन का एक भूतपूर्व प्रेमी भी रहता है। हीरो की दो भूतपूर्व प्रेमिकाओं से मिलने के बाद हीरोइन अपने भूतपूर्व प्रेमी से मिलती है और कहानी में नया मोड़ आ जाता है।

तनुजा चंद्रा ने साफ-सुथरी फिल्में बनाई है। दुश्मन, संघर्ष और सुर के बाद यह फिल्म भी साफ-सुथरी और रोचक कहानी पर बनी है। मलयालम की प्रसिद्ध अभिनेत्री पार्वती थिरूवोथु ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। नेहा धूपिया, ईशा श्रावणी, बृजेन्द्र काला, सिद्धार्थ मेनन, ल्यूक केनी आदि के भी छोटे-छोटे रोल है। कई बार यह फिल्म पुरानी फिल्मों के दृश्यों को याद दिलाती है। सवा सौ मिनिट की फिल्म में गाने कमजोर है। कुल मिलाकर फिल्म करीब-करीब ओके है। देख सकते है और अगर नहीं देखेंगे, तो भी फर्क नहीं पड़ेगा।

 



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