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फिल्म समीक्षा: प्लास्टिक कॉमेडी है बैंक चोर

पेज-थ्री            Jun 16, 2017


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
फिल्म बैंक चोर विजय माल्या के बारे में नहीं है, न ही यह चौधरी या दूसरे बैंक चोरों के बारे में है। फिल्म का प्रचार जितने दिलचस्प तरीके से किया गया था, पूरी फिल्म वैसी दिलचस्प नहीं है। फिल्म का कुछ हिस्सा ही प्रहसनात्मक है और गुदगुदी पैदा करता है। रहस्य, रोमांच डालने के चक्कर में फिल्म की कॉमेडी पीछे रह जाती है। फिल्म देखने पर समझ में आता है कि कॉमेडियन कपिल शर्मा ने साइन करने के बाद भी चम्पक का रोल करने से क्यों मना कर दिया, जो बाद में रितेश देशमुख के मत्थे आया।

यशराज फिल्म की सहायक कंपनी वाई फिल्म ने इसे बनाया है। फिल्म के प्रचार के लिए रितेश देशमुख ने तमाम फिल्मों के पोस्टर चोरी कर-करके अपने ट्विटर पर डाले थे। उसे लोगों ने पसंद भी किया था। एक महीने तक रितेश देशमुख ने इस तरह फिल्म का प्रचार किया था।

मुंबई के बैंक ऑफ इंडियन्स में तीन चोर चोरी करने घुस जाते हैं। एक साधु के वेश में रहता है और एक घोड़े और हाथी का मास्क पहनकर अपने काम को अंजाम देता है। ये तीनों बैंक में एक से बढ़कर एक मूर्खतापूर्ण हरकतें करते है, जो दर्शकों को हंसाने के लिए ही है, लेकिन फिल्म में ट्विस्ट आ जाता है और पता चलता है कि अरे, असली चोर तो कोई और ही है। फिर पर्दे के पीछे वही मुंबइयां कहानी - झोपड़पट्टी, झोपड़पट्टी हटाने वाले नेता, पार्षद से गृहमंत्री बना खलनायक, बिल्डर, जाबांज पत्रकार, पत्रकार की हार्ड डिस्क, पत्रकार की आत्महत्या, बुरा पुलिसवाला, अच्छा पुलिसवाला, सीबीआई और पुलिस की लड़ाई, नेता का घोटाला, न्यूज चैनलों के रिपोर्टर और ओबी वैन, खूबसूरत रिपोर्टर, गणेशजी की मूर्ति और गणपति बप्पा मोरिया, दिल्ली और मुंबई का झगड़ा......

फिल्म देखकर बाहर निकलते वक्त लगता है कि कॉमेडी फिल्म देखने गए थे और गिरगांव चौपाटी की बासी भेल खाकर लौट आए। कहीं-कहीं पर फिल्म में हंसी आती है और कहीं-कहीं पर रोना। बाबा सहगल भी फिल्म में है, जो बैंक के ग्राहक के रूप में है और गाने गाते रहते है। मशहूर शैफ हरपाल सिंह कोहली भी है और कभी खुशी कभी गम में ऋतिक के बचपन का रोल करने वाले कविश मजमूदार भी।

मेहरबानी है कि फिल्म में जबरन के गाने ज्यादा नहीं है। यह भी मेहरबानी है कि फिल्म दो घंटे में ही खत्म हो जाती है। हॉलीवुड की फिल्म डेड पूल में जिस तरह क्रेडिट लाइन दी गई थी, उसी तरह के स्टिल शॉट्स भी फिल्म में है। ऐसे शॉट्स टीवी विज्ञापनों में काफी आ रहे है। फिल्म की हीरोइन रिया चक्रवर्ती के लिए कोई भूमिका थी ही नहीं, वे टीवी रिपोर्टर के रूप में पकाती है। गागा उर्फ गायत्री गांगुली बनी रिया कोई कमाल नहीं दिखा सकी। बैंक चोरों के नाम ही अजीबो-गरीब हैं - चम्पक, गेंदा और गुलाब। आईपीएस अधिकारी बने विवेक ओबरॉय अमजद खान नामक बुरे पुलिसवाले है। रितेश देशमुख भी चम्पक के रूप में कुछ खास नहीं कर पाए। निर्माता आशीष पाटील ने उनके साथ काफी पक्षपात किया। भुवन अरोरा, साहिल वेद और विक्रम थापा भी ठीक ही है।

फिल्म के विज्ञापनों और ट्रेलर से आशा बनी थी कि यह फिल्म मनोरंजक होगी, लेकिन कॉमेडी के नाम पर यह फिल्म निराश करती है। कई फिल्मों में मूर्ख हीरो ज्यादा मनोरंजन करता है बजाय बुद्धिमान हीरो के। परिस्थितिजन्य कॉमेडी अच्छी लगती है, न कि प्लास्टिक कॉमेडी।

 



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