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5 डिप्टी सीएम यानि सिपाही को ज्यादा इज्जत बख्शने के लिए हवलदार साहब पुकारना

राजनीति            Jun 13, 2019


अजय बोकिल ।
इधर मध्यप्रदेश में कमलनाथ मंत्रिमंडल विस्तार के साथ राजनीतिक गोटियां नए सिरे से जमाने की कवायद की चर्चा है तो उधर आंध्र प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई वायएसआर कांग्रेस के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने राज्य में 5 डिप्टी सीएम (उपमुख्यसमंत्री) बनाकर सत्ता की रेवड़ी बांटने का नया रिकाॅर्ड कायम किया है।

सोशल मीडिया पर इस फैसले के यह कहकर मजे लिए गए कि कल को राज्यों में एक मुख्यमंत्री और बाकी सब उपमुख्यमंत्री होंगे। इसका एक प्रारंभिक चरण मप्र में वर्तमान कांग्रेस सरकार में सारे के सारे कैबिनेट मंत्री बनाकर हो चुका है। सत्ता की बंदरबांट में ‘ऊंच-नीच’ खत्म करने और किसी को भी नाराज न करने का यह नया राजनीतिक टोटका है।

लिहाजा एमपी में भी मंत्रिमंडल में जो भी मंत्री बनेगा, कैबिनेट मंत्री ही बनेगा, यह तय है। राज्य मंत्री वगैरह दोय्यम दर्जे के मंत्री बनकर राज करने का जमाना अब गया।

बहरहाल बात पांच उपमुख्यमंत्रियों की। जगन मोहन रेड्डी खुद भ्रष्टाचार के कई आरोपों में फंसे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन वे हाल में जनसमर्थन की गंगा नहा आए हैं, इसलिए सात खून भी माफ। वक्त की नजाकत को पहचान कर वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पैर भी छू आए हैं।

आंध्र में विधानसभा चुनाव में वो खासे बहुमत से चुनाव जीत कर आए हैं, इसलिए उन्हें इतने उपमुख्यमंत्री बनाने की क्या जरूरत पड़ गई, समझना मुश्किल है।

हो सकता है भावी राजनीतिक मजबूरियों को अभी से भांप कर अथवा लंबे समय तक सत्ता का खेत जोतने की नीयत से जगन ने पांच डिप्टी सीएम के बीज बो दिए हों। जब लोगों ने इसका मजाक उड़ाया तो जगन का जवाब था‍ ‍िक समाज के मुख्य समुदायों दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और कापू को प्रतिनिधित्व देने के लिए ऐसा किया जा रहा है।

इसका एक अर्थ यह है कि किसी भी समाज को सही प्रतिनिधित्व तभी मिल सकता है,जब उसके नाम डिप्टी सीएम की लाॅटरी खुले। हो सकता है आने वाले समय में मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री के अलावा सहायक उपमुख्यमंत्री, वरिष्ठ और कनिष्ठ उपमुख्यहमंत्री भी बनाए जाएं ताकि मंत्री पद की औकात महज हवलदार की रह जाए।

फिलहाल देश के 14 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में उपमुख्य्मंत्री काम कर रहे हैं। इनमें यूपी और गोवा में दो-दो डिप्टी सीएम बने हुए हैं। अगर मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां डिप्टी सीएम कल्चर की शुरूआत 1967 में गोविंद नारायण सिंह की संविद सरकार में वीरेन्द्र कुमार सखलेचा को उपमुख्यंमंत्री बना कर हुई।

उस वक्त गोना सिंह ने कांग्रेस के विधायक तोड़कर तत्कालीन जनंसघ और कुछ समाजवादी व वामपंथी विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। उसके बाद 1993 में यूपी में जातिवादी राजनीति के उभार का असर मप्र में भी दिखा। मप्र में तत्कालीन मुख्यउमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने पहले कार्यकाल में सुभाष यादव और प्यारेलाल कंवर को डिप्टी सीएम बनाया।

इसका मकसद ‍पिछड़ा और आदिवासी वोट बैंक साधना था। दिग्विजय ने दूसरे कार्यकाल में छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद प्यारेलाल कंवर की जगह जमुनादेवी को डिप्टी सीएम बनाया। लेकिन चुनाव में वो सत्ता गंवा बैठे।

जो आलम राज्यों में उप मुख्यमं‍त्रियों का है तकरीबन वही कहानी केन्द्र में उप प्रधामंत्रियों की है। संविधान में प्रधानमंत्री अथवा मंत्री का पद तो है, उप प्रधानमंत्री अथवा उपमुख्यतमंत्री का नहीं है। क्योंकि संविधान‍ निर्माताओं को अंदाजा रहा होगा कि अगर ऐसे किसी अधिकृत ‍पद का प्रावधान किया गया तो जनप्रति‍निधियों में तलवारें इन्ही पदों को लेकर चलेंगी।

हालांकि केन्द्र में केवल चौधरी देवीलाल ने पहली बार उपप्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी, जिसे बाद से कोर्ट ने खारिज कर दिया। उनके अलावा सरदार वल्लभभाई पटेल, जगजीवन राम,चौधरी चरण सिंह और लालकृष्ण आडवाणी को डिप्टी पीएम का दर्जा रहा है, लेकिन है वह शोभा की सुपारी ही। प्रोटोकाल में जरूरी डिप्टी पीएम व डिप्टी सीएम मंत्रियों से ऊपर होता है, लेकिन अधिकारों के टिफिन में उनके पास भी उतने ही पराठे होते हैं, जितने कि अन्य मंत्रियों के।

यानी ‍कि मामला कुछ-कुछ सिपाही को ज्यादा इज्जत बख्शने के लिए हवलदार साहब कहकर पुकारने जैसा है। इसके बाद भी नेता डिप्टी पीएम अथवा डिप्टी सीएम बनने को लालायित क्यों रहते हैं अथवा सत्ता के आइस्क्रीम पार्लर में ये दिखाऊ कोन खाकर खुश क्यों हो जाते हैं? यह मालूम होते हुए भी सत्ता का नाभि केन्द्र पीएम या सीएम ही होता है।

अमूमन ऐसा तब होता है, जब गठबंधन सरकारें वजूद में आती हैं और समाज के सभी वर्गों को साधने का दिखावा करना होता है अथवा किसी तरह बैसाखियों के भरोसे सरकार को चलाते रहना होता है। इससे समाज में सरकार के प्रति कोई सकारात्मक संदेश जाता है, या फिर यह केवल समाज के बजाए व्यक्ति की राजनीतिक आंकाक्षाओं को तुष्ट करने का सतही टोटका है, इसे समझना जरूरी है।

व्यवहार में डिप्टी सीएम की राज्य में केवल इतनी हैसियत अफजाई है कि उसकी सरकारी कार के आगे पीछे दो पुलिस की गाड़ियां भी चलती हैं। सत्ता का सुख और सत्ताधारी होने का अहम इन दो गाडि़यों के धुएं और हाॅर्न के बीच सिमट जाता है।

यहां गुड गवर्नेंस हाशिए पर और भीड़ गवर्नेंस ज्यादा हावी हो जाता है। सुशासन की मंशा केवल एक सूत्र से संचालित होती है कि किसी भी तरह हर वर्ग को तुष्ट करो। ‍इसके बाद भी अगर जगन मोहन रेड्डी में पांच डिप्टी सीएम बनाए हैं तो इसका कुछ मतलब है। इस देश में करीब 3 हजार जातियां, 25 हजार उपजातियां और आधा दर्जन धर्म हैं।

अगर सभी के प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो कितने डिप्टी सीएम बनाने होंगे, इस पर सिर्फ सोचा और सोचकर झुंझलाया ही जा सकता है। 21 वीं सदी का ये नया राजनीतिक मजाक हैं, हैं या नहीं....?
फेसबुक वॉल से।

 



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