भाजपा:सोलहवें साल की खुमारी में आंतरिक लोकतंत्र की अनदेखी

राजनीति            Jul 11, 2018


राकेश दुबे।
भारतीय जनता पार्टी में मची उथल-पुथल का सटीक कारण मध्यप्रदेश के एक वयोवृद्ध नेता ने खोज लिया है। कारण पूरे देश में एक ही है – आंतरिक लोकतंत्र की अनदेखी। वैसे यह शुरू तो वर्षों पहले हो गई थी,जब उसके एक शीर्ष नेता ने कहा था कि “ अवैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल, भाजपा के चाल चरित्र और चेहरे को बदल रही है।”

अब यह बदलाहट सतह पर आ गई है और मध्यप्रदेश में तो निर्णायक दौर में है। इसके परिणाम क्या होंगे, इसको लेकर अलग-अलग राय है, परन्तु सब इस बात से सहमत है कि ये नवीन पद्धति भारतीय जनता पार्टी के मूल विचार और संस्कृति से पृथक हैं।

उन राज्यों में जो विधान सभा चुनाव की दहलीज़ पर खड़े है, कार्यकर्ता से लेकर, स्थापित नेता तक इस नई पद्धति से मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गये हैं कि ” पता नहीं क्या होगा? कोई सुनने वाला नहीं है, किससे कहें?”

बात मध्यप्रदेश से शुरू हुई है। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन, बड़ा टेड़ा काम है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जो फार्मूला अन्य जगह अपनाया, पार्टी मध्यप्रदेश में भी वही दोहराना चाहती है।

जमीनी सर्वे से लेकर प्रत्याशी चयन तक सारे काम किसी निजी एजेंसी की राय के अनुरूप। इससे से पार्टी के वयोवृद्ध नेता नाराज़ हैं और इस पद्धति के खिलाफ उन्होंने अपनी बात अपनी तरह से कह डाली। जिसकी प्रतिध्वनि “पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव” के रूप में गूंजी। इसके पीछे एक कसक भी है।

यह कसक प्रदेश के दो वयोवृद्ध नेताओं की कुर्सी जाने की प्रतिक्रिया भी बताई जा रही है। यह खेल पहले उजागर हो चुका है,उम्र तो बहाना सबित हुई थी।

एक मित्र ने कल इस सारे मामले में बड़ी रोचक प्रतिक्रिया दी। उनका कहना था, अक्सर उम्र के 16 वें साल में ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं, जिसे पूरे परिवार को भोगना पड़ता है। मध्यप्रदेश में भाजपा का 15 साल से शासन है, यदि जीते तो साल सोलहवां होगा, उसकी खुमारी अभी से आ गई है।

सोलहवें साल के आसार पूरे प्रदेश में दिख रहे है। कहीं दिग्गज नेताओं की कार रोकी जा रही है, तो कहीं नेताजी को भाषण के बगैर लौटना पड़ा है। मंत्री की मंत्री से, विधायक की विधायक से, विधायक की महापौर से, महापौर की अपनी स्थाई समिति से होने वाली रार सडक पर आ गई हैं।

सब एक दूसरे प्रत्यक्ष और परोक्ष वार करने से नहीं चूक रहे हैं। मित्र की प्रतिक्रिया पर 1973 में राजकपूर द्वारा बनाई गई फिल्म बाबी का यह गाना याद आता है “ मुझे भी कुछ कहना है, इस हाल में”.....!

मध्यप्रदेश के साथ एक अन्य राज्य में भी सोलहवां साल आ रहा है। तस्वीर वहां की भी कुछ ऐसी ही है।

यह सच है कि भाजपा में पहले सुनवाई होती थी, सब कुछ साफ दिखता था। कारण गिनाये और बताये जाते थे अब ऐसा नहीं है। कुछ बड़े नेता घर बैठा दिए गये हैं। कुछ को ये बाहरी एजेंसी घर का रास्ता दिखा देगी।

ये कहते रह जायेंगे “मुझे भी कुछ कहना है और कोई सुनेगा नहीं। 16वें साल की खुमारी में ऐसा ही होता है।

 



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