नोटबंदी, जीएसटी की मार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 'महाविपत्ति' साबित हुई - मनमोहन

राजनीति            Nov 07, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को यहां कहा कि नोटबंदी और 'बुरी तरह से तैयार की गई' तथा 'जल्दीबाजी में लागू की गई' जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) का 'दोहरा झटका' भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 'महाविपत्ति' साबित हुई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने आलोचकों को राष्ट्र-विरोधी और विकास-विरोधी कहकर लोकतांत्रिक संवाद का स्तर नहीं गिराना चाहिए। सरकार के साल 2016 में आठ नवंबर को लागू की गई नोटबंदी की पहली सालगिरह से एक दिन पहले मनमोहन सिंह ने चुनावी राज्य गुजरात के छोटे व्यापारियों और कारोबारियों को संबोधित करते हुए कहा कि "नोटबंदी का कदम हमारी अर्थव्यवस्था के लिए और वास्तव में हमारे लोकतंत्र के लिए काला दिन था।"

उन्होंने कहा कि काला धन और कर चोरी रोकने के लिए बड़े नोटों को हटाने की सलाह पहले की सरकारों को भी मिली थी। लेकिन "हमने इस तरह के कठोर उपाय लागू करना ठीक नहीं समझा.. क्योंकि नोटबंदी के फायदों से कहीं ज्यादा उसका नुकसान है।"

उन्होंने कहा, "हमें यह भी याद रखना चाहिए कि दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में ऐसा अवपीड़क कदम नहीं उठाया गया है, जिसमें एक झटके में 86 फीसदी नकदी को अवैध घोषित कर दिया गया हो। न ही किसी को ऐसी सलाह दी गई है कि 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट हटाकर 2000 रुपये के नोट चला दिए जाएं।"

जानेमाने अर्थशाी ने कहा कि उन्हें अभी भी याद है कि पिछले साल आठ नवंबर की रात मोदी के इस फैसले की घोषणा को सुनकर उन्हें कैसा 'झटका' लगा था।

उन्होंने कहा कि काला धन और कर चोरी ऐसी समस्या है, जिस पर देश को काबू पाने की जरूरत है, लेकिन 'नोटबंदी स्पष्ट रूप से इसका समाधान नहीं है।'

उन्होंने पिछले साल 'नोटबंदी के कारण जान गंवाने वाले 100 से अधिक लोगों को' याद करते हुए कहा, "सच्चाई यह है कि 99 फीसदी से ज्यादा नोट बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गए, जो सरकार के दावे की हवा निकालते हैं। ऐसी व्यापक खबरें सामने आईं, जिनमें अमीरों ने अपने काले धन को सफेद बना लिया, जबकि गरीब लोगों को भारी परेशानी और कष्ट का सामना करना पड़ा।"

उन्होंने दोहराया कि किस तरह से उन्होंने नोटबंदी के बारे में संसद में कहा था कि 'यह एक संगठित लूट और कानूनी डकैती है।'

उन्होंने कहा, "नोटबंदी के कारण आर्थिक रफ्तार घटकर 5.7 फीसदी पर आ गई है। तब भी यह सकल अनुमान नहीं है। क्योंकि इसका वास्तविक नुकसान तो असंगठित क्षेत्र को हुआ है, जो जीडीपी की गणना में पर्याप्त रूप से शामिल ही नहीं है।"

उन्होंने कहा, "जीडीपी में हरेक फीसदी का नुकसान हमारे देश के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान है। इसका लोगों पर सबसे बुरा असर पड़ा है। लोगों की नौकरियां चली गईं, युवाओं के लिए नौकरियों के अवसर चले गए और व्यापारियों को अपना कारोबार बंद करना पड़ा।"

उन्होंने कहा कि उससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि मोदी सरकार द्वारा इस विशाल गलती से कोई सबक नहीं सीखा गया है।

उन्होंने कहा, "गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों, व्यापारियों, छोटे और मझौले कारोबारियों. को राहत पहुंचाने के बजाए सरकार ने जल्दबाजी में बुरी तरह से बनाए गए जीएसटी को लागू कर दिया। यह दोहरी मार हमारी अर्थव्यवस्था के लिए महाविपदा साबित हुई है। इसने भारत के छोटे और मझौले उद्योगों की कमर तोड़ दी है।"

उन्होंने कहा कि इन कदमों से भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर गहरा असर पड़ा और दूसरी तरफ चीन ने भारत में की गई नोटबंदी और जीएसटी का फायदा उठाया।

उन्होंने कहा, "वित्त वर्ष 2016-17 की पहली छमाही में भारत ने चीन से कुल 1.69 लाख रुपये मूल्य का आयात किया था, जबकि वित्त वर्ष 2017-18 की समान अवधि में यह बढ़कर 2.41 लाख करोड़ रुपये हो गया। एक साल में चीन से आनेवाले समान में 45,000 करोड़ रुपये या 23 फीसदी की वृद्धि नोटबंदी और जीएसटी के कारण ही हुई है।"



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