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किसानों से मजाक, कोख पर डाका, सीडी वाले मंत्री, उदार सीएम, खामोश विपक्ष

राजनीति            Sep 26, 2017


राघवेंद्र सिंह।
वैसे तो बीते हफ्ते में सूबे की सियासत में काफी कुछ गंभीर घटनाएं हुई हैं। मगर सत्ता विपक्ष दोनों की बहुत ठंडी प्रतिक्रिया देखने को मिली। किसानों को मुआवजे के तौर पर मिली रकम का आंकड़ा 4.70 रु. का भी देखने में आया जबकि किसानों को बीमा प्रीमियम के रूप में करीब 150 रु. से 1200 रु. तक जमा करने पड़े थे। यह राशि कम ज्यादा हो सकती है लेकिन मुआवजे के रूप में 5, 10, 15, 17 रुपए किसानों को मिलना यह जख्मों पर मरहम के बजाए नमक छिड़कना नहीं बल्कि रगड़ना माना जाएगा। 

ऐसे ही नशे के लिए बदनाम नरसिंहपुर अब महिलाओं की कोख पर डाका डालने के लिए भी बदनाम हो रहा है। पिछले नौ महीनों में सरकारी अस्पताल में 600 महिलाओं के गर्भाशय निकाल लिए गए। अब इसकी जांच हो रही है कि गर्भाशय निकालना सही था या गलत। इन दोनों मुद्दों पर न तो सरकार ने कोई उच्च स्तरीय जांच शुरू की और न विपक्ष नींद से जागा। यह तब हो रहा है जब अगले साल चुनाव होने हैं और वोट पाने के लिए जनता के हितैषी बनने के मामले में कोई भी दल आगे नहीं आ रहा है। 

इन सबसे अलग एक अच्छी बात यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कठोर और धुर दक्षिण पंथी भाजपा के नेता होने के बाद भी कई मामलों में उदार भी हैं। अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान पार्टी के सॉफ्ट फेस बनकर उभर रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मर्तबा गुजरात में इस वर्ग से मिलने आये लोगों से टोपी पहनने से भी इनकार कर दिया था। अब यह अलग बात है कि जापान के प्रधानमंत्री को वे अहमदाबाद की एक मस्जिद में ले गए थे। 

खैर यह वोट कबाड़ने के सियासी दांवपेंच और चुनाव टोटके हो सकते हैं। शिवराज सिंह इन सबसे थोड़ा अलग नजर आते हैं। हालांकि उनकी पार्टी का जो डीएनए है उसमें उदार होना भी तलवार की धार पर चलने जैसा जोखिमभरा काम है।

भाजपा में एक जमाना था जब कट्टर राष्ट्रवाद के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी सबसे आगे थे और उदारवादी चेहरे के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी। आडवाणी ने जब राम मंदिर यात्रा शुरू की तब बताते हैं कि अटलजी इसके पक्ष में नहीं थे। लेकिन जब रथ यात्रा समाप्त हुई तो उसकी सभा में आडवाणी ने मुंबई में कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो अटलजी हमारे प्रधानमंत्री होंगे। हार्डकोर आडवाणी से जब पार्टी नेताओं ने सवाल किए तो उन्होंने कहा था कि यह मैं नहीं बल्कि देश चाहता है। 

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी सभाओं में इस तथ्य का जिक्र करती थीं लेकिन अब ऐसे हार्डकोर लीडर देखने में नहीं आते जो अपने उदारवादी प्रतिस्पर्धी लीडर का नाम नेतृत्व के लिए आगे बढ़ाएं। इन तमाम तथ्यों का जिक्र करने के बाद हम सीएम शिवराज पर आते हैैं। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में मदरसों की स्थापना के बीस सालाना जलसे में शिरकत के दौरान सीएम ने मदरसों को दी जाने वाली वार्षिक राशि को दुगना करने का ऐलान किया। अब यह रकम राज्य सरकार मदरसों को 25 के बजाए 50 हजार रुपये सालाना देगी। भाजपा और संघ के कुछ नेताओं को नापसंद हो सकती है। दूसरी तरफ इस समारोह में राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मदरसा बोर्ड के अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया। 

समझा जाता है कि अगले साल इन दोनों राज्यों में भी मध्यप्रदेश के साथ विधानसभा चुनाव होने हैैं। अगर पार्टी हाईकमान को शिवराज की यह सॉफ्ट लाइन जंची तो राजस्थान और छग में भी मदरसों के लिए इस किस्म के ऐलान हो सकते हैैं। अगर ऐसा हुआ तो यह शिवराज की अल्पसंख्यकों के लिए उदारवादी योजना का विस्तार माना जाएगा। मगर भाजपा और संघ परिवार की लाइन के हिसाब से यह जोखिमभरा कदम भी है।

सीएम शिवराज ने मदरसों के जलसे में कहा कि वे सभी धर्मों के साथ मिलजुल कर रहने के हिमायती हैंऔर उनकी सरकार में वे ऐसा कर भी रहे हैं। मुख्यमंत्री निवास पर हर धर्म के त्यौहार मनाए जाते हैं। वे दीवाली की तरह ईद के मौके पर भोपाल में लोगों से रोड शो के जरिए ईद की मुबारकबाद देने वाले इकलौते मुख्यमंत्री में शामिल हैं। 

कुल मिलाकर हार्डकोर नरेंद्र मोदी की तुलना में शिवराज की उदार नीति उन्हें राजनैतिक खतरों के मैदान में ले जाती है। इसके पीछे यह भी संभव है कि संघ परिवार के कुछ ताकतवर प्रचारकों का समर्थन उन्हें हासिल है। मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद राशिद खान कहते हैैं कि सूबे के भाजपा नेताओं में शिवराज सिंह अल्पसंख्यकों के ज्यादा निकट हैं। मुस्लिम त्यौहार कमेटी के अध्यक्ष औसाफ शाहमीरी खुर्रम सीएम के संबंध में कहते हैं कि ऐलानों पर जब तक अमल न हो कोई मायने नहीं है।

इसे कहते हैं जख्मों पर नमक रगड़ना
कहने को तो किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं लेकिन किसानों की हालत दिन ब दिन खराब हो रही है। सूखे से पीडि़त आधे राज्य से किसान फसल बीमा में पांच-पांच, दस-दस रुपये के मुआवजा चेक लेकर अपनी किस्मत पर रोएं या हंसें समझ में नहीं आ रहा है। इस पर जले पर नमक छिड़कने वाली बात यह है कि सरकार ने इस पर संज्ञान लेकर कोई कार्रवाई का ऐलान नहीं किया। किसानों से प्रीमियम के रूप में लगभग डेढ़ सौ से बारह सौ से अधिक रुपये वसूल किये गये हैं। 

आंकड़ों के हिसाब से यह कम ज्यादा हो सकता है मगर मुआवजा प्रीमियम से भी कम मिले यह कैसे संभव है। ऊपर से एक मंत्री इसे जायज बताते हैं। अब यह किसान समझ नहीं पा रहा है कि फसल बीमा से किसानों को लाभ मिलना था या बीमा कंपनियोंं को। बहरहाल सरकार की खामोशी जख्मों पर नमक रगड़ने जैसी है। प्रदेश में किसानों के मंदसौर आंदोलन में सात किसानों को पुलिस ने गोली मार दी थी। इससे घबराई सरकार ने प्रति मृतक एक-एक करोड़ रुपये देने का ऐलान किया था। लेकिन उसके बाद फिर सरकार सुस्त हो गई। किसानों की समस्याएं दूर नहीं हुईं तो अक्टूबर में किसान बड़ा आंदोलन करने वाले हैं। इसमें फसल बीमा, कृषि उत्पाद का बाजार मूल्य तय करना प्रमुख है।

अगले वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव होने हैं और जनता से जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस कोई बड़ा आंदोलन, प्रदर्शन करने की तैयारी में नहीं है। मंदसौर किसान आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने के बजाए उसे ठंडे बस्ते में डालने का पाप पहले ही वह अपने खाते में डाल चुकी है। ऐसे में किसानों को मिल रहे मुआवजा चैक को लेकर भी वह सड़क पर नहीं उतरी है जबकि किसानों में बेचैनी है और वे अब किसान यूनियन के झंडे तले आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। संभव है कि कांग्रेस बाद में इसका श्रेय लेने की कोशिश करे। 

दूसरा नरसिंहपुर के मामला है जिसमें नौ माह में 600 महिलाओं के गर्भाशय निकालने की सनसनीखेज घटना हुई है। सरकार स्तर पर भी इसके पीछे किसी गिरोह के होने की आशंका की जांच करायी जा रही है। देश भर में अपनी तरह का यह बहुत संगीन मामला है। लेकिन कांग्रेस अभी भी जनता से जुड़े मुद्दों पर बयानबाजी से आगे नहीं निकल पाई है। कांग्रेस के कुछ नेता नए प्रदेश अध्यक्ष की प्रतीक्षा में हैं। 

गौरतलब है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी बदलने के बाद इस बात की अटकलें तेज हैैं कि नए अध्यक्ष की ताजपोशी कभी भी हो सकती है। अब इस प्रतीक्षा में कांग्रेस की पूरी फौज मैदान ए चुनाव के बजाए बैरेक में आराम फरमा रही है। देखिए आगे आगे होता है क्या?

सम्राट अशोक की नगरी विदिशा पर लगता है किसी की बुरी नजर लग गई है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का दूसरा गृह जिला इनसे भले ही रोशन हो रहा हो लेकिन सेक्स सीडियो ने इसे दागदार भी कर दिया है। विदिशा के उजले पक्ष पर एक और मंत्री की सीडी कृष्णपक्ष बनकर चर्चाओं में बनी हुई है। इसी तरह के कांड में पहले राज्य के सफलतम वित्त मंत्रियों में शुमार राघवजी को मंत्री पद खोना पड़ा था अब एक और मंत्री इस कतार में आ गए हैं। अगले कैबिनेट विस्तार में उनकी विदाई तय मानी जा रही है। यह महाशय सीएम कैबिनेट के महत्वपूर्ण किरदार रहे हैं। इसके पहले भी विदिशा जिले से ही व्यापमं घोटाले में दूसरों के पाप अपने सिर लेने वाले मंत्री पहले सरकार फिर पार्टी से रुखस्त होने का खामियाजा भुगत चुके हैं।

 



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