Breaking News

विधायिका जवाबदेही से मुकर नहीं सकती,कुछ सीखिए, इस संसद से माननीय विधायकों !

राजनीति            Aug 07, 2019


राकेश दुबे।
मध्यप्रदेश के उभय पक्षों के विधायकों के लिए संसद के वर्तमान सत्र में सीखने के लिए बहुत कुछ है।

पिछले कई सत्रों से मध्यप्रदेश में विधानसभा सत्र के दौरान तयशुदा काम जैसे-तैसे निपटाने की परम्परा बन गई है।

यह परम्परा तो कहीं से उचित है ही नहीं, बीते पावस सह बजट सत्र में तो विधेयकों से ज्यादा एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी थी।

सरकार प्रतिपक्ष को और प्रतिपक्ष सरकार को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते थे। इस सबके कारण यह सत्र भी निर्धारित तिथि 26 जुलाई से दो दिन पहले सिमट गया।

इस विषय को आज फिर उठाने के पीछे औचित्य है, कि प्रदेश की विधानसभा और अधिक जनोन्मुखी और जवाबदेह बने। विधायिका माने या न माने वो जनता के प्रति जवाबदेही से वो मुकर नहीं सकती।

माननीय विधायकों के सुलभ सन्दर्भ हेतु संसद की संक्षिप्त कार्यवाही। देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद का मौजूदा सत्र अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के विभाजन व उसकी शासन प्रणाली में बदलाव के कारण एक ऐतिहासिक सत्र बन गया है।

परंतु, एक अन्य अहम वजह से भी इस सत्र ने संसदीय इतिहास में अपनी जगह बना ली है। चालू सत्र में अब तक 30 विधेयक पारित हो चुके हैं।

जम्मू-कश्मीर से जुडा विषय भी इसमें शामिल है, सत्र जारी है। इस अवधि में भी कुछ विधेयक पारित होंगे।

इससे पहले सर्वाधिक विधेयक पहली लोकसभा के एक सत्र में 1952 में पारित हुए थे। मध्यप्रदेश विधानसभा में भी ऐसे कीर्तिमान हैं।

प्रदेश की जनता का दुर्भाग्य है कि उनके नुमाइंदे उन कीर्तिमान की जगह हंगामा और सदन की अवधि कम करने के कीर्तिमान रच रहे हैं।

संसद और विधानसभा का मुख्य काम जरूरी विधेयकों पर चर्चा कर उन्हें कानूनी रूप देना है। इस प्रक्रिया में सांसद और विधायक अपनी राय देते हैं और संशोधन भी प्रस्तुत करते हैं।

इस तरह पारित विधेयक देश और प्रदेश की आकांक्षाओं के प्रतिनिधि होते हैं। लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने उचित ही कहा है कि “हमें लोगों के भरोसे पर खरा उतरना होगा, जिन्हें हमसे बहुत अपेक्षाएं हैं।”

मध्यप्रदेश के विधायक इससे कुछ सीख सकते हैं, चाहें तो। विधेयकों के सदन में लाने में विधायक, सरकार और अध्यक्ष की बड़ी भूमिका होती है। सत्रावसान के बाद आंकड़े इंगित करते हैं कि सदन कैसे चले हैं।

सबको याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले सदन की चर्चाओं में और सरकार की ओर से जवाब देने के वक्त गैरहाजिर रहनेवाले मंत्रियों पर नाराजगी जतायी थी।

इस सत्र के पहले दिन ही उन्होंने अपने दल और गठबंधन के सांसदों से भी अनुशासन और मर्यादा को लेकर गंभीर रहने का निर्देश देते हुए कहा था कि संसद में पक्ष और विपक्ष को भूलकर देशहित में निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए।

संसद ने इस सत्र में सूचना के अधिकार कानून में संशोधन, गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने के कानून में संशोधन, नियमन के बिना चलनेवाली बचत योजनाओं पर पाबंदी, मोटर वाहन संशोधन विधेयक, बच्चों के खिलाफ अपराध पर अंकुश, दिवालिया नियमों में बदलाव तथा तीन तलाक की महिलाविरोधी परंपरा को रोकने के कानून जैसे कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर मुहर लगायी।

ऐसी ही सूची की अपेक्षा मध्यप्रदेश के मतदाताओं की अपने विधायकों से है।

यह सही है सभी विधेयकों पर विस्तार से चर्चा अनेक कारणों से संभव नहीं हो पाती है तथा कुछ ऐसे प्रस्ताव भी होते हैं, जिन पर पक्ष और विपक्ष में सहमति होती है। लेकिन, कुछ विधेयकों पर विपक्षी दलों या सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल पार्टियाँ असहमत भी होती है है।

ऐसे प्रस्तावों को समिति को भेजने की मांग भी उठती है ऐसे कुछ अनुरोधों को तो स्वीकार किया गया, लेकिन सरकार को संख्या बल के आधार पर उसकी आवाज दबाने की कोशिश नहीं करना चाहिए।

 



इस खबर को शेयर करें


Comments