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राजनीति ने शून्य कर दिया उपवास का महत्व

राजनीति            Apr 14, 2018


राकेश दुबे।
महात्मा गाँधी ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि “उपवास” जैसे धार्मिक अनुष्ठान को उनके अनुयायी इतना नीचे तक ले जायेंगे कि उसकी शक्ल मजाक से बदतर नजर आने लगेगी। उपवास एक पवित्र भावना है, पश्चाताप, समर्पण, और अपने आराध्य के साथ चिन्तन के पल उपवास है। पृथक धार्मिक मान्यताओं के साथ “उपवास” प्रत्येक भारतीय धर्म में मौजूद है।

अब राजनीतीकरण हो गया है। जिससे इसका महत्व लगभग शून्य से नीचे नकारात्मकता की ओर है तो परिणाम की आप कल्पना कर सकते हैं। कुछ घंटों का छोले- भटूरे ब्रांड उपवास चर्चा में था। अब संसद न चलने देने पर उपवास हो रहा है।

संसद के बजट सत्र में पंजाब नेशनल बैंक घोटाले, अविश्वास प्रस्ताव,कावेरी जल विवाद जैसे मसलों पर हुए विपक्ष के हंगामे के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज उपवास पर हैं। अपने उपवास के निर्णय के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के सभी सांसदों से कहा है कि वह अपन संसदीय क्षेत्र में उपवास करें और जनता को विपक्ष के बारे में बताएं।

प्रधानमंत्री को उपवास का अनुभव है। वर्ष में दो बार नवरात्रि के दौरान धार्मिक अनुष्ठान के तौर पर वे इसे करते आ रहे हैं। राहुल गाँधी के लिए यह नया था। उन्हें खुद कभी उपवास जैसे अनुष्ठान से गुजरना नहीं पड़ा होगा इस कारण ने समझ भी नहीं सके होंगे और छोले- भटूरे ब्रांड उपवास जैसी तोहमत कांग्रेस के सिर लग गई।


दूसरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे जन मानस में जाने का हथियार बनाया है। उन्होंने ऑडियो कॉन्फेंसिंग के माध्यम से नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि क्षेत्र की जो समस्याएं संसद में उठानी थी, उसे अब जनता में उठाए।

संसद के बजट सत्र का दूसरा भाग विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन के कारण बिना किसी कार्यवाही के छह अप्रैल को समाप्त हो गया था। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता ने बताया, "प्रधानमंत्री अपने आधिकारिक कार्यों को करते हुए भी उपवास करेंगे। वहीं कांग्रेस ने पीएम मोदी के उपवास को ढ़ोंग करार दिया है। कांग्रेस का तर्क है ''मोदी सरकार द्वारा उपवास एक ढोंग है।

बीजेपी को राष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए और 250 से अधिक घंटों तक संसद को बाधित करने के लिए उपवास करना चाहिए। लोकसभा में जहां बीजेपी का बहुमत है वहां इसके समय का केवल एक प्रतिशत समय कामकाज हुआ और राज्यसभा में केवल छह प्रतिशत काम हुआ।''

अब प्रश्न यह है कि क्या राजनीतिक दल संसद में अपने कर्तव्यों की जवाबदेही से बचने के लिए इस पवित्र अनुष्ठान का सहारा ले रहे हैं। शायद कोई भी,इससे असहमत होगा। संसद ठप्प करके ये प्रतिपक्ष क्या चाहता है वही न जो राजग पिछली संसद में चाहता रहा है – प्रचार।

प्रचार पाने का एक और तरीका है, काम करें, उपवास गलती की क्षमा के लिए होता है। जिसे सब स्वीकार करते हैं। अकर्मण्यता से उपजे उपवास, तो भुलावे हैं खुद के साथ, समाज के साथ और अपने आराध्य के साथ। प्रचार तो, पकौड़ा बनाने, छोले -भटूरे खाने से भी मिल जाता है।

देश हित के काम करने से शांति मिलती है और उपवास जैसे पवित्र अनुष्ठान की जरूरत तो सिर्फ शांति के लिए होती है। दिखावे और दूसरे को नीचा दिखाने का उपवास, उपवास न होकर अपराध हो जाता है।

 



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