कांग्रेसी इस्तीफों की हकीकत:वहां अरमान सुलग रहे हैं, यहां दिल में सवाल मचल रहे हैं

राजनीति            Jun 29, 2019


प्रकाश भटनागर।
अब छोड़ो भी हुकुमसिंह कराड़ा की सार्वजनिक रूप से सुलगी सिगरेट को। सुलग तो बहुत कुछ दिल्ली में रहा है। बड़ी मायावी सुलगन है यह। जिसमें धुआं नहीं दिखता। प्रेम धवन लिख गये हैं, 'सीने में सुलगते हैं अरमां, आंखों में उदासी छायी है। ये आज तेरी दुनिया से हमें, तकदीर कहां ले आयी है?'

वहां अरमान सुलग रहे हैं, यहां दिल में सवाल मचल रहे हैं। कि कांग्रेस में आखिर चल क्या रहा है? इससे भी बड़ी बात कि किस-किस को कौन-कौन और कैसे-कैसे चला रहा है? धवन ने आगे लिखा था, 'कुछ आंख में आंसू बाकी हैं, जो मेरे गम के साथी हैं। अब दिल है ना दिल के अरमां हैं। बस मैं हूं मेरी तन्हाई है।'

ठीक कहा उन्होंने। राहुल गांधी अपने इस्तीफे पर बाकियों की खामोशी की बात कहकर रह गये। मामला तो फफक कर रो देने का था, लेकिन गम के साथियों की जरूरत थी, लिहाजा कुछ आंसू बाकी रख लिए। शायद उनका इस्तेमाल खुशी में बहने के लिए किया जाना तय हो।

हो सकता है कि कोई कांग्रेसी वाकई इस्तीफा दे गुजरें और गांधी बचे-खुचे आंसुओं का इस्तेमाल खुशी दिखाने की गरज से कर डालें। बाकी दिल तो उनका पार्टी वालों ने तोड़कर खत्म कर ही दिया है। जहां तक अरमानों की बात है, उनका चीरहरण कुछ दिन पहले ही मतदाता कर चुके हैं।

मुद्दा यह कि राहुल की मंशा सामने आ गयी है। वह चाहते थे कि उनके इस्तीफे की पेशकश के समर्थन में तमाम आला कांग्रेसी पद छोड़ दें। यह पार्टी पूर्व में कई बार यह प्रयोग कर चुकी है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। तो गांधी को चुप्पी तोड़ना पड़ गयी।

कमलनाथ अपने इस्तीफे की पेशकश की बात कह रहे हैं, लेकिन इस्तीफा नहीं दे रहे। अशोक गेहलोत और भूपेश बघेल भी त्यागपत्र के नाम पर प्रतीकात्मक रुख ही दिखा रहे हैं। गोया कि उनका इस्तीफा दिल में है, उसे कागज पर उतारने में उनकी कोई रुचि नहीं है।

तो क्या इनके लिए ही धवन आगे लिख गये हैं, 'कुछ ऐसी आग लगी मन में, जीने भी ना दे मरने भी ना दे। चुप हूं तो कलेजा जलता है, बोलूं तो तेरी रुसवाई है।' क्योंकि मामला तो ऐसा ही दिखता है।

कांग्रेस की दिल्ली तो केवल सुलग रही है, लेकिन ये तीन मुख्यमंत्री तो कर्ज माफी की आग में जल-जलकर झुलस गये। दस दिन में किसानों की ऋण-मुक्ति का झूठ कुछ ऐसा उलटा पड़ा कि मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में लोकसभा चुनाव का नतीजा पार्टी के लिए किसी शाप की तरह सामने आया।

गांधी का यह वादा पहले इन तीनों की फजीहत की वजह बना और अब उनकी मुसीबत बन गया है। तीनों की स्थिति विचित्र है। क्योंकि चुप रहने पर उनका कलेजा जलता है और कुछ बोल दिया तो राहुल की रुसवाई का सार्वजनिक हो जाना तय है।

जोरदार रस्साकशी चल रही है। गांधी चाहते हैं कि पार्टी इस्तीफा दें। अब मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद और दो बार लगातार लोकसभा चुनाव हार चुके विवेक तन्खा ने अगर विधि विभाग से इस्तीफा दे भी दिया तो इससे होना क्या है?

जिनका इस्तीफा होना चाहिए वे केवल कह रहे हैं। वे ऐसा कर नहीं रहे। मजे की बात यह कि वे राहुल को भी इस्तीफा देने नहीं दे रहे।

जाहिर है कि कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व अपने नेताओं के सामने कमजोर साबित हुआ है। वरना तो इस्तीफे मांग कर भी लिये जा सकते थे।

शीर्ष स्तर की इस कमजोरी का ही नतीजा है कि कांग्रेसी गांधी को पद पर बनाये रखना चाहते हैं। वह जानते हैं कि उनके लिए राहुल से अधिक सुविधाजनक नेता और कोई हो ही नहीं सकता।

यदि इस पद पर वाकई किसी समझदार और ताकतवर गैर गांधी, राजनीतिज्ञ टाइप के खांटी नेता की ताजपोशी हो गयी, तो राष्ट्रीय स्तर पर इस दल के कई शीर्ष नेताओं के लिए बेरोजगारी का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।

हालांकि आज की कांग्रेस में ऐसा नेता ढंढ़ना मुश्किल है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रियंका वाड्रा कहती हैं कि पार्टी के हत्यारे यहीं बैठे हैं। जाहिर है कि पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव ने उन नेताओं पहचान कर ली है, जिनके चलते लोकसभा चुनाव में दल को एक बार फिर मुंह की खाना पड़ गयी।

तो सवाल यह कि इन हत्यारों को पद से हटाये जाने जैसा न्यूनतम साहस भी राहुल क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं? वह तो धवन के गाने की इन लाइनों जैसा आचरण करते दिख रहे हैं,' न तुझसे गिला कोई हमको,ना कोई शिकायत दुनिया से। दो-चार कदम जब मंजिल थी, किस्मत ने ठोकर खाई है।'

गिला करने का दम होता तो गांधी अब तक कई निकम्मे नेताओं की पतलून गीली कर चुके होते। दुनिया से शिकायत का तो खैर उन्हें कोई हक नहीं। क्योंकि मामला मतदाता का है।

सचमुच इस लोकसभा चुनाव में वह मंजिल को खुद से दो-चार कदम की दूरी पर मानकर ही दंभ से भरे चल रहे थे। किस्मत की ठोकर ऐसी लगी कि मामला दो-चार कदम से कम से कम पूरे पांच साल तक की दूरी वाला हो गया।

इसलिए अब सीने में सुलगते अरमां और आंखों की उदासी कभी खुद के इस्तीफे की पेशकश तो कभी दूसरों द्वारा इस्तीफा न दिए जाने की शिकायत के तौर पर सामने आ रही है।

आखिर में बता दें कि प्रेम धवन ने यह गीत फिल्म 'तराना' के लिए लिखा था। इस गाने को आज की तारीख में कांग्रेस का राष्ट्रीय तराना कह दिया जाए तो शायद यह गलत नहीं होगा।

 



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