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लोक पर्व सानंद संपन्न अजेय कोई नहीं

राजनीति            Dec 13, 2018


राकेश शर्मा।
लोकतंत्र का महान पर्व शांति पूर्वक सम्पन्न हुआ।ईवीएम की पवित्रता साथ ही चुनाव आयोग की निष्पक्षता सिद्ध हुई। पन्द्रह साल (4575दिन) के वनवास बाद पुनः कांग्रेस के पास सत्ता की बागडोर वापिस आई। कमलनाथ,सिंधिया,दिग्विजय सहित सम्पूर्ण कांग्रेस परिवार को बधाई।

कांग्रेस की दिग्विजय सरकार के बाद भाजपा की उमा भारती 8 दिसंबर 2003 को प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी,एक प्रकरण में अदालती कार्यवाही वश उन्हें पद छोड़ना पड़ा तब 23 अगस्त 2004 को बाबूलाल ग़ौर मुख्यमंत्री बने उसके बाद २९ नवंबर 2005 से अभी 12 दिसंबर 2018 तक शिवराज सिंह चौहान निरंतर 13 साल एक माह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

मैंने अपने जीवन में इतना कश्मकशपूर्ण चुनाव नहीं देखा! दोनों प्रमुख दलों की स्थिति कुछ इस तरह थी-
“नावें सबकी डगमगा रहीं काँप रहे मस्तूल,माँझी फिर भी कह रहे मौसम है अनुकूल”।दरअसल मध्यप्रदेश की पन्द्रहवीं विधानसभा हेतु संपन्न इस चुनाव में कांग्रेस जीती नहीं है,न ही भाजपा हारी है?कांग्रेस जीती तो छत्तीसगढ़ में है जहाँ इतना विशाल बहुमत के साथ सकारात्मक जनादेश हुआ है।यहाँ जनता ने शिवराज सिंह की अथक मेहनत और काम को सिरे से नकारा भी नहीं है अपितु खंडित जनादेश देकर शिवराज की लोकप्रियता को बरक़रार भी रखा है।

वे संख्याबल में पिछड़कर सत्ता से अवश्य बेदख़ल हो गये परन्तु उनकी विनम्र छवि लोगों के दिल दिमाग़ पर क़ायम रहेगी।तथाकथित स्वयंभू मंत्रियों की भ्रष्ट कार्यशैली,झूठा अहंकार और बड़बोलापन शिव सरकार के लिये घातक सिद्ध हुआ। वहीं कांग्रेस का आकर्षक नारा”वक़्त है बदलाव का “कारगर हुआ।

कांग्रेस के पास इस चुनाव में खोने को कुछ भी न था,जनता ने कांग्रेस को सत्ता की ज़मीं पर खड़े होने का अवसर प्रदान किया है अब कमलनाथ सिंधिया दिग्विजय की त्रिमूर्ति की परीक्षा है कि वह कैसे अपनी इस खोई हुई जमीं को संरक्षित व विस्तारित करते हैं?कांग्रेस के समक्ष जनादेश को परख समझकर मौजूदा कसोटियों पर खरा उतरने की चुनौती हैं।

विधानसभा चुनाव परिणामों का एक संकेत भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को भी उनकी अहंकारी देहभाषा और अनर्गल वक्तव्यों के लिए भी है! हमारे प्रधानमंत्री ने चार साल पहले जिस विनम्रतापूर्वक संसद भवन की सीढ़ियों को नमन किया था,अत्याधिक गहरा प्रभाव छोड़ा था भारत के जनमानस पर।

अब चार वर्ष के कार्यकाल बाद आज देखिये उनका अन्दाज़,उनकी भाषा शैली,शब्दों का चयन आदि आदि...इन सबकी ओर भी ध्यान आकर्षित करा रहे हैं ये चुनाव परिणाम।

आगे २०१९ में लोकसभा के लिये संपन्न होने वाले चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक दलों को अनर्गलबयानबाजी,अहंकार,भाषा एवं शब्दों का चयन,अनावश्यक मुद्दों से परहेज़,कथनी और करनी का अंतर जैसी बातों का ध्यान गंभीरता पूर्वक रखना होगा,अन्यथा आधुनिक संचार युग है और जनता सब समझती है....अजेय कोई नहीं..!!

“रुतवा तो ख़ामोशियों का होता है,अल्फ़ाज़ का क्या वो तो मुकर जाते हैं हालात देखकर।”

लेखक सागर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष रहे हैं।

 



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