मध्यप्रदेश में मतदाता मौन और नेता परेशान

राज्य            Nov 27, 2018


मल्हार मीडिया भोपाल।
विधानसभा चुनाव के लिये प्रचार खत्म हो गया है। सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत प्रचार में झोंकी।लेकिन 15 साल बाद ऐसे हालात बने हैं कि राजनीतिक दल दावे चाहे जितने बड़े करें लेकिन वास्तव में वह मतदाता का रुझान समझ नही पा रहे हैं।

शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि मतदाताओं ने सभी दलों की सांसें अटका दी है। मतदाता मौन है,चारो ओर बात "अंडर करंट" की हो रही है। लेकिन साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जिसके तार सही जुड़ जाएंगे सत्ता की चावी उसी के हाथ आएगी।

यह साफ है कि मध्यप्रदेश में लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच है।अन्य दल पूरी ताकत लगाने के बाद कुछ सीटों को छोड़ अन्य इलाकों में लड़ाई को तिकोण नही बना पाए हैं।

कांग्रेस लगातार तीन चुनाव हारी है,लेकिन इस बार उसने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी है।अब तो जो संकेत मिले हैं वे यह बताते हैं कि इस बार हरजीत का अंतर बहुत ज्यादा नही होगा।सम्भव है कि एक या आधा प्रतिशत मतदाता भाग्यविधाता बन जाएं। लगातार चौथी पारी के लिये बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को यह बताने के बाद कि तुम्हारी कुर्सी सलामत रहेगी,अमित शाह और नरेंद्र मोदी आराम से नही बैठे। मोदी ने एक सप्ताह में 10 रैलियां कीं। उन्होंने अपनी शैली में प्रचार किया।

अमित शाह ने तो करीब दो दर्जन रैलियां कीं, वह मध्य प्रदेश में ऐसे डेरा जमाकर बैठे जैसे मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें ही मिलने बाली है। मोदी और शाह के अलावा मोदी मंत्रिमंडल के सभी प्रमुख सदस्य, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मथुरा की सांसद हेमामालिनी,स्म्रति ईरानी तथा पार्टी के पदाधिकारियों ने पार्टी के प्रचार में दिनरात एक किया है।

अमित शाह ने तो प्रचार बन्द होने तक कमल निशान पर मोहर लगाने की गुहार की।

उधर कांग्रेस ने भी पूरी ताकत लगाई। खुद राहुल गांधी ने एक दर्जन सभाएं की।कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी प्रचार में दिनरात एक किया।पार्टी के अन्य नेता भी मध्यप्रदेश में शहर शहर घूमें।

हालांकि संसाधनों में कांग्रेस बीजेपी से काफी पीछे नजर आयी लेकिन उसने कड़ी चुनौती दी है। प्रचार के दौरान घात प्रतिघात भी खूब हुए हैं। संख्या और साधनों की दृष्टि से बीजेपी भले ही कांग्रेस पर भारी पड़ी हो लेकिन खुद अमित शाह को जमीनी सचाई का अहसास प्रचार के दौरान हो गया।

शायद यही बजह थी कि प्रचार खत्म होने से पहले ही उन्होंने अपना "अबकी बार दो सौ पार" का नारा छोड़ दिया।

अब अभी भाजपा नेता सिर्फ चौथी बार सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं।यही नही नरेंद्र मोदी तो प्रदेश के लोगों को डबल इंजन बाली कमल सरकार चुनने का अनुरोध कर गए हैं।

शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि मध्यप्रदेश के मतदाता ने अपने मन की थाह किसी को नही लगने दी है, मतदाता मौन है और नेता परेशान हैं।

बीजेपी की अपनी परेशानियां हैं। 15 साल के शासन के बाद वह कांग्रेस जैसी हो गयी है।इस बार टिकट वितरण पर इतना घमासान युद्ध हुआ है कि उनके बूढ़े योद्धा भी बगावत कर गए हैं।कांग्रेस की सभी बीमारियां बीजेपी को लग गयी हैं।भरपूर कोशिश के बाद भी वह आज तक उनका इलाज नही खोज पायी।

कांग्रेस 15 साल के बनबास के बाद भी अपने मूल चरित्र से नही हटी है।फिर भी इस बार नेताओं में पहले जैसा युद्ध नही हुआ है।

अन्य दलों ने अपने स्तर पर कोशिश तो बहुत की।लेकिन वे मध्यप्रदेश के मूल चरित्र में बदलाव नही ला पाए, लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस में ही हो रही है।

सबसे अहम बात यह है कि प्रदेश के हर इलाके में मतदाता अपने मन की थाह किसी को नही मिलने दे रहे हैं। विन्ध्य,चंबल,महाकौशल, मालवा निमाड़ और भोपाल सहित क्षेत्रों से सूचना यही है कि कांग्रेस टक्कर दे रही है।

इस बार पहले की तुलना में वह ज्यादा सीटें जीत रही है। इस हिसाब से देखा जाए तो 2013 में 58 सीटें जीतने वाली कांग्रेस यदि हर जिले में एक-दो सीट ज्यादा जीतती है तो वह 116 के आंकड़े के पास पहुंच जाएगी।

बीजेपी को नुकसान का अहसास है। पिछले चुनाव में 165 का आंकड़ा छूने बाली इस पार्टी को लगता है कि किसी भी तरह वह 116 का आंकड़ा तो पा ही जाएगी।

अब देखना यह है कि मध्यप्रदेश के 5 करोड़ 4 लाख 95 हजार मतदाता किसकी उम्मीद पूरी करते हैं। वे 28 नबम्बर को अपना फैसला देंगे।

लेकिन 11 दिसम्बर तक वह मशीनों में ही बन्द रहेगा।अगर मतदाता बीजेपी की उम्मीदों पर खरा नही उतरा या यूं कहें कि मतदाताओं की उम्मीद पर बीजेपी खरी नही उतरी तो इतना तय है कि उसका फैसला देश की राजनीति में एक टर्निंग पॉइंट सावित होगा।

 



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