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सनी लियोनी तुम्हें कोसूं या शुक्रिया अदा करूं

वामा            Sep 12, 2017


संजय स्वतंत्र।
उसे उर्वशी की तरह विश्वप्रिया होने का गुमान है। पुरुरवा की तरह दुनिया भर के पुरुष उसकी बाट जोहते हैं। वह नयनों से मदिरा छलकाती सबको अतृप्त भाव में छोड़ कर चल देती हैं। कौन है यह सर्वप्रिया? उस पर मुग्ध भारतीय युवा उसके पीछे क्यों दौड़ पड़ते हैं? आपने सही अनुमान लगाया। यह और कोई नहीं सनी लियोनी हैं, जो अपने रूप-लावण्य से सबको मोहपाश में बांध रही हैं।

पिछले दिनों सनी का कोच्चि जाना मेरे लिए सामान्य खबर थी। उन्हें एक मोबाइल स्टोर का उद्घाटन करना था। पूरी दुनिया को बाजार बना रहीं कंपनियां अपने उत्पादों के प्रचार के लिए जिस तरह अभिनेत्रियों और मॉडलों की छवि का दोहन कर रही हैं, उस जाल में इस बार सनी लियोनी फंसी हैं। वे जिस पृष्ठभूमि से आई हैं, वह सभी के लिए कौतुहल का विषय रहा है। मगर कोई नहीं जानता कि वे जिन गलीज गलियों से गुजरीं हैं, वहां स्त्री का देह हर दिन और मन हर पल रौंदा जाता है। और एक समय के बाद नंगे चमकदार पर्दे के पीछे उसे फेंक दिया जाता है।

यह देश उस कवि का है, जो हमेशा इसी बात पर कायम रहा कि देह प्रेम की जन्मभूमि है। यह सच है। लेकिन एक खास तरह के फिल्म उद्योग और बाजारवाद ने जिस तरह स्त्री देह की यौनिकता को अपना हित साधने के लिए इस्तेमाल किया है, सनी लियोनी उसी की उपज हैं, जो पुरुषों को यौन आखेट के लिए प्रेरित करती हैं। और इस आखेट की आड़ में कंपनियां अपना धंधा करती हैं।

आज जब उर्वशी और पुरुरवा के प्रेम और यौनिकता के प्रतिमान के बारे में सोचता हूं तो वहां सनी कहीं नहीं टिकतीं, मगर हमारे युवा पुरुरवा के सपने में जरूर आती हैं। इसलिए उनका उतावलापन समझ में आता है। तो भी सनी के प्रति ये बेताबी किसलिए? वे तो किसी से प्रेम नहीं करतीं। उनका प्रेम तो सिर्फ बाजार से हैं।

तो उस दिन न्यूजरूम में फोटो चयन के दौरान कोच्चि से आई एक तस्वीर ने मेरा ध्यान खींच लिया। सनी की एक झलक पाने के लिए हर वर्ग के युवा अपनी तमाम विचारधाराओं को भुला कर उमड़ पड़े थे। सड़क पर हजारों युवाओं के बीच सनी की गाड़ी रेंग रही थी। और वे ट्वीट कर बता रही थीं कि उनकी कार सचमुच में प्यार के समुद्र में हैं। पर क्या यह प्यार का समुद्र था या कि उनके देह-दर्शन के लोलुप युवाओं की भीड़ थी? हालांकि यह भीड़ देख कर हर उस अभिनेत्री को ईर्ष्या हुई होगी, जो सनी को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगी हैं।

हमारी विश्व सुंदरियों ऐश्वर्या राय, डायना हेडेन, प्रियंका चोपड़ा और युक्ता मुखी को भी इतना भाव नहीं मिला, जितनी आज सनी बटोर रही हैं। मुझे याद आ रही हैं सुष्मिता सेन, जो ब्रह्मांड सुंदरी का खिताब जीत कर पहली बार दिल्ली आई थीं। हमारे फोटोग्राफर ने उनकी कई तस्वीरें खींची थीं, मगर उनमें न तो ऐसी भीड़ थी और न ही युवाओं का ऐसा जोश। ब्लैक कोट-पैंट में लंबी-छरहरी सुष्मिता की छवि भुलाए नहीं भूलती। आज वे पहले जैसी नहीं रहीं। सनी भी एक दिन आज जैसी नहीं रहेंगी। तब यह बाजार किसी नई सनी लियोनी की देह का आखेट कर रहा होगा।

अपनी बेबाक यौनिकता से सनी और उन जैसी युवतियों ने समाज और बाजार में एक नया परिदृश्य रच दिया है। आज का युवा संकोच में मरा नहीं जाता। युवतियों में सनी की बोल्ड छवि को खुद में उतारने की बेताबी है। उनके सोच से लेकर पहनावे तक में जबर्दस्त उदारता आई है। अभिजात्य वर्ग ने तो अपनी बंद खिड़की खोल ली है, लेकिन मध्यवर्गीय समाज यौनिकता में आए इस खुलेपन को अभी तक स्वीकार नहीं कर पाया है।

आज दफ्तर जाने के लिए मेट्रो के आखिरी कोच में सफर करते हुए यही सोच रहा हूं बाजार मीडिया और खासकर फिल्मों व टीवी चैनलों ने यौनिकता के प्रति हमारे संकुचित-शुचित समाज को पिछले कुछ सालों में जिस तरह सहज और उदार बनाया है, इससे लोग अब उतने रूढ़िवादी नही रहे। हालांकि स्त्री यौनिकता आज भी टैबू है। खुल कर इस पर कोई बात नहीं करता। मगर इसे देखने के लिए हर कोई बाध्य है। कंडोम के विज्ञापनों को ही ले लीजिए। इनमें छोटा परिवार रखने का संदेश कम, आनंद का भाव कहीं ज्यादा है।

इन दिनों अभिनेता रणवीर सिंह एक खास तरह के कंडोम के विज्ञापन में नजर आ रहे हैं। आखिर वे युवाओं से क्या कहना चाहते हैं? और वह लड़की भी स्त्री यौनिकता से आगे नजर नहीं आती। क्या स्त्री-पुरुष के बीच सहज सबंध नहीं हो सकता? क्या इसके लिए जरूरी है कि आप पाकेट में वह खास कंडोम लेकर घूमते फिरें, जो किसी को नजर नहीं आता। घरों के किशोर-किशोरियों को मोबाइल फोन इसलिए दिए गए थे कि वे परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहेंगे। मगर नई तकनीक आने के साथ जब यह स्मार्टफोन में बदला तो कंपनियां चैटिंग और नए दोस्त बनाने की आड़ में किशोरों के कोमल मन का भी आखेट करने लगीं। अब आप इन्हें कंडोम दे रहे हैं। बजरिए सनी लियोनी बाजारवाद हमें कहां से कहां ले आया?

मेरे सोचने के क्रम में पहला स्टेशन आया है- मॉडल टाउन। दरवाजा खुलते ही तीन युवतियां कोच में दाखिल हुई हैं। वे मेरे सामने की सीट पर बैठ गई हैं। लिबास में यौनिकता की झलक है, तो इसमें इनका क्या दोष? बाजार इनका भी आखेट कर रहा है। दरवाजा बंद हो इससे पहले हड़बड़ाती हुई एक आधुनिक बाला उन युवतियों के पास आकर खड़ी हो गई है। शायद यह इन लड़कियों की सहेली है।

लंबे कद की इस युवती ने बेहद ही छोटी शार्ट्स पहन रखी है। पैरों में स्पोर्ट्स शूज और उपर लो कट की टॉप। लगभग उघड़ा बदन। उसकी इस बोल्ड यौनिकता से ईर्ष्या करते हुए तीनों लड़कियों ने पूछ ही लिया- ऐसे कैसे जा रही है तू। और कहां जा रही है? कन्या ने खुले स्मूद बालों को लहराते हुए कहा- यार राहुल ने बुलाया है सीपी में। इस पर सहेलियों मे गोल मुंह बनाते हुए कहा- ओ हो..... डेटिंग? वाऊ....!

उनके बीच चुहलबाजियां चल रही हैं। मगर देख रहा हूं सहयात्रियों की नजरें उसी बेझिझक-बिंदास युवती पर है, जो बार-बार अपनी कमर मे लोच लाते हुए जुल्फों में अंगुलियां फेर रही है। अगला स्टेशन गुरुतेग बहादुर नगर........ अभी-अभी इसकी उद्घोषणा हुई है। मेट्रो की रफ्तार धीमी हो रही है। स्टेशन आने वाला है.......। दरवाजा खुलते ही एक युवती अपनी मां के साथ मेरे सामने खड़ी हो गई। उम्रदराज मां के लिए अपनी सीट खाली कर रहा हूं। वे दोनों मेरी सीट पर किसी तरह एडजस्ट हो गई हैं।

मेट्रो चल पड़ी है अपने गंतव्य की ओर। सभी सीटें भर चुकी हैं। चंद यात्री ही खड़े हैं। कोच में उन चारों युवतियों में हंसी-मजाक जारी है। इधर मेरे सामने मां-बेटी बात कर रही हैं। सबकी नजरें घूम-फिर कर उसी युवती पर गड़ जाती हैं, जिसने अपनी देह को दर्शनीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गुलाबी होठ। गोरा-चिट्टा रंग और खुला-खिला बदन। पुरुष यात्री उतने असहज नहीं हैं, मगर देख रहा हूं कि महिला यात्रियों में सहजता का भाव नहीं है। वे उसे हैरत से देखती हैं और फिर सोचने लग जाती हैं। क्या सोच रही
होंगी वे?
मुझे याद आ रही है अजय भैया की, जिन्होंने शादी के कुछ दिनों बाद ही भाभी को जींस-शर्ट पहनने को कहा था तो वे यह कर शर्म से लाल हो गर्इं - धत्त, पागल हो क्या? घर में लोग क्या सोचेंगे। दोबारा जिद करने पर उन्होंने पहन तो लिया, लेकिन लोक-लाज के मारे कमरे से नहीं निकलीं। तब से लेकर आज तक यौनिकता में कितना खुलापन आ गया है। यह सिर्फ पहरावे में ही नहीं, सोच में भी दिखता है।

आज से तीन दशक पहले शहरों में तो क्या दिल्ली में भी लड़कियां पारंपरिक परिधान में नजर आती थीं। नब्बे के दशक में पॉश कालोनियों और कालेजों में हाफ पैंट पहनने वाली लड़कियों को इस तरह देखा जाता, मानो वे किसी दूसरे ग्रह से चली आई हों। आज यह सामान्य बात है। जब उनका परिवार नहीं टोकता तो आप क्यों असहज होते हैं। उस बाजार ने सबकी सोचने की दिशा बदल दी है, जिसकी प्रेरक सनी लियोनी है। जो बिंदास यौनिकता की आइकन हैं। वे नेल पॉलिश, परफ्यूम, शूज और स्मार्टफोन से लेकर जल तक बेच रही हैं।
लोगों को बेशक लगता हो कि सनी हमारी संस्कृति को पानी पिलाने पर उतारू हैं, मगर यह क्या कम है कि वे परंपरा का बोध भी कराती रहती हैं। अगर वे फिल्मों में बड़े-बड़े झुमके और नथ पहने दिख रही हैं, तो इन दिनों लड़कियां भी इस ट्रेंड को खूब अपना रही हैं। चलिए नारी सौंदर्य के ये अलंकार अब भी सलामत हैं।

मेट्रो में सवार इस आधुनिक बाला के कानों में डोलते बड़े-बड़े झुमके ने बरबस ध्यान खींच लिया है। निश्चित तौर से उसने शालीन कपड़े नहीं पहन रखे, मगर उसका नैतिक मूल्य इससे कम नहीं हो जाता। अभी मैं सोच ही रहा हूं कि मेरे सामने बैठी माताजी का स्वर सुनाई पड़ा है- यह लड़की लाज-शर्म-हया सब धो आई है.....। वह बेटी से कह रही है- देखो तो कैसे टांगें उघाड़े खड़ी है। घर में कोई कुछ कहता भी है या नहीं? बेटी उसे चुप करा रही है-धीमे बोलो मम्मी। वो सुन लेगी। तुम्हें क्या पड़ी है। यह आजकल का फैशन है। मैं भी तो जींस-टॉप पहनती हूं न। मम्मी हाफ पैंट-शार्ट्स कम्फर्टेबल होता है।

मां आधुनिक सोच वाली बेटी से सहमत नहीं। वह कह रही हैं- तू तो घर में पहनती है तो चल जाता है, लेकिन ये तो ...... हद है। मां बार-बार उस लड़की को वितृष्णा भाव से देखती और कहतीं- हद है ये तो।

उद्घोषणा हो रही है- अगला स्टेशन कश्मीरी गेट। मां-बेटी का अगला पड़ाव यही है। वे सीट से उठ गई हैं। दरवाजा खुलने से पहले मां से रहा न गया। वे उस लड़की के पास जाकर बोलीं- बावली, कपड़े तो ठीक से पहन लिया कर। इत्ती बड़ी हो गई हो गई और दुनिया को टांगें दिखाती घूम रही है। ले यह मेरी चुन्नी बांध ले इसे। ...... तभी कोच का दरवाजा खुला और बेटी ने मां को बाहर खींच लिया। लड़की आवाक देखती रह गई।

कश्मीरी गेट पर दो-तीन यात्री सवार हुए हैं। मेट्रो चल पड़ी है। कोच में सन्नाटा पसर गया है। लड़कियां खामोश हैं। माताजी के बोल अब भी कानों में गूंज रहे हैं-बावली कपड़े तो ठीक से पहन लिया कर। अपनी बोल्ड सेक्सुअल्टी से खुद ही असहज हो गई युवती,
सहेलियों के बीच जगह बना कर बैठ गई है। कुछ पल के लिए सकपका गई लड़कियां भी खामोश हैं। उन्होंने अपनी सहेली का सिर चुन्नी से ढकते हुए कहा- तू अब दुलहन जैसी लग रही है। यह सुन कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी है। मगर उसके चेहरे से झेंप अभी गई नहीं है। लड़कियां उससे कह रही हैं- जाने दे न। दिल पे मत ले। कोई और बोलता तो उसकी बैंड बजा देते, मगर वह एक मां थी। वो उपने दौर में जी रही है, तो हम आज के दौर में जी रहे हैं।

जियो बिंदास यह कहते हुए एक सहेली ने इस आधुनिक बाला की जांघों पर जोर की थपकी लगाई तो वह सकुचा गई। उसने कहा, रहने दे तू बेकार की बातें। मेरा स्टेशन आ रहा है। उद्घोषणा हो रही है- अगला स्टेशन राजीव चौक। सहेलियों ने उसे धक्का देते हुए कहा- चल जा, राहुल तेरा इंतजार कर रहा होगा।

मैं सीट से उठ गया हूं। मेट्रो की गति धीमी हो रही है। दरवाजे पर लगे शीशे के उस पार राहुल को देख उसने हाथ हिला कर इशारा किया है। इस युवती की उनींदी आंखें बता रही हैं कि वह रात भर सोई नहीं है इस डेटिंग के लिए। कोच का गेट खुलते ही वह उसके गले लग गई है। सार्वजनिक जगहों पर नई पीढ़ी का इस तरह मिलना अब नए दौर का अभिवादन है। दकियानूस लोग इसे गलत नजरों से देखते होंगे।

वे दोनों जा रहे हैं। उनके हाथ एक दूसरे के कंधे पर हैं। निजी जीवन और निजता की आजादी का यह नया मूल्य है। हमें यौनिकता को भी निजता का हिस्सा मानना चाहिए। इसे अपसंस्कृति से मत जोड़िए। समय के साथ चलिए। उदार मन के साथ देह से मुक्त होकर। यौनिकता एक सहज भाव है। किसी से जबर्दस्ती संबंध बनाना अनैतिक है। गलबहियां करते ये दोनों युवा सुरक्षित हैं, तो इसलिए क्योंकि हमारा समाज धीरे ही सही मगर उदार हो रहा है।
राहुल के मोबाइल का क्लासिक रिंग टोन सहसा बज उठा है-
मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को
बेला महका रे महका आधी रात को।
किसने बंसी बजाई आधी रात को,
जिसने पलकें चुराई आधी रात को......।

रतजगा कर चुकी नायिका राहुल के कंधे पर सिर टिकाए चली जा रही है। मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ रहा हूं। कविवर की पंक्तियां बार-बार याद आ रही हैं- देह प्रेम की जन्मभूमि है........देह प्रेम की जन्मभूमि है। भारत को यौन उदार समाज बनाने के लिए सनी लियोनी तुम्हें कोसूं या शुक्रिया अदा करूं। बता दो न?

लेखक जनसत्ता में मुख्य उप संपादक हैं और यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।

 



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