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बीजू पटनायक ने भी उतारा था ग्वालियर के तिघरा बांध में हवाई जहाज़

वीथिका            Dec 14, 2017


डॉ.राकेश पाठक।

पहले आलेख में आपने पढ़ा कि ग्वालियर में द्वितीय विश्व युध्द के समय ब्रिटिश वायुसेना के विमान तिघरा बांध के पानी पर उतरते थे। इस पोस्ट पर कई सुधीजनों के कमेंट्स के ज़रिये नई जानकारियां आयीं। उन्हें इकजाई करके आपकी सुविधा के लिए परोस रहा हूँ।

मित्र राकेश शर्मा Rakesh Sharmaने बताया है कि सन 1979 में स्थानीय एम एल बी कॉलेज के समारोह में तब के दिग्गज नेता बीजू पटनायक मुख्य अतिथि बन कर आये थे। अपने भाषण में बीजू ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि वे द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश वायुसेना का विमान लेकर तिघरा में उतरे थे। उन्होंने तिघरा जाने की इच्छा भी जताई। राकेश शर्मा उस समय जीवाजी विवि छात्रसंघ के सचिव थे। वे कहते हैं कि तब हममें में से किसी को ये भी नहीं मालूम था कि बीजू फायटर पायलट रहे हैं।

बाद में बीजू पटनायक तत्कालीन मंत्री रमाशंकर सिंहRama Shankar Singh के साथ तिघरा बांध पर गए भी।रमाशंकर सिंह बताते हैं कि उस वक्त राजेश भटनागर एमएलबी कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष थे। राजेश की जिद पर रमाशंकर सिंह ही बीजू को बुला कर लाये थे। बीजू तब जनता पार्टी की सरकार में इस्पात और खान मंत्री थे।

ग्वालियर रियासत के पास था हाइड्रो प्लेन

तत्कालीन सिंधिया राजघराने के पास अपना हवाई जहाज़ था जो कि "हाइड्रो प्लेन" कहलाता था। ये जमीन और पानी दोनों पर उतर सकता था। ये विमान भी तिघरा बांध पर ही पार्क होता था। तत्कालीन महाराजा जीवाजीराव सिंधिया इससे शिवपुरी, पालम (दिल्ली), बड़ौदा और त्रिपुरा तक जाते थे। सन 1954 में ये जहाज बेच दिया गया।सम्भतः तिघरा के पानी मे उतरने वाला ये आखिरी हवाई जहाज था।
यह जानकारी श्री भालचंद मानके Bhalchandra Manke ने दी है जो बजरिये मित्र कौशल पवैयाKaushal Pawaiyaमुझ तक पहुंची। मानके जी ने ग्वालियर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और अब अहमदाबाद में रहते हैं।
सुरजीत यादवSurjeet Yadav लिखते हैं कि तिघरा पर जहां हवाई जहाज उतरते थे उसे "मेरिनोड्रोम" कहते थे। तत्कालीन शासकों ने तिघरा पर जेटी विश्राम गृह भी बनाये थे।

जांबाज़ पायलट से नेता बने बीजू पटनायक को जानिये

सन 1916 में जन्मे बीजू पटनायक आधुनिक उड़ीसा के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। उनका असली नाम बिजयानंद था।उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई छोड़ कर पायलट की ट्रेनिंग ली। जल्द ही वे "रॉयल इंडियन एयर फोर्स" में फायटर पायलट बन गए। द्वितीय विश्वयुद्ध में वे अंग्रजों के लड़ाकू विमान उड़ाते थे। उसी दौरान ईंधन के लिए वे ग्वालियर उतरे थे।

आजादी के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के निकट हो गए। बीजू तब तक जांबाज़ और दुस्साहसी फायटर पायलट के रूप में पहचान बना चुके थे ।
1947 में इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम में वहां के सुल्तान Syhrir और वहां के स्तंत्रता संग्राम के नेता सुकर्णो Sukrno को डच कब्जे से मुक्त कराने का ज़िम्मा नेहरू ने बीजू पटनायक को सौंपा।

वे एक साहसिक अभियान में जकार्ता पहुंचे और सुलतान Syhrir और सुकर्णो Sukarno को सुरक्षित निकाल कर ले आये। यही सुकर्णो बाद में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बने। (जेम्स बांड की किसी फिल्म से ज्यादा साहसिक अभियान था )। इंडोनेशिया ने बाद में उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भूमिपुत्र" प्रदान किया।

सन 1948 में जब कश्मीर में कबायली आक्रमण हुआ तब भी नेहरू ने उन्हें अहम ज़िम्मेदारी दी।हमले के तुरंत बाद भारतीय सैनिकों को श्रीनगर पहुंचाना खतरे से भरा था। लेकिन अगली सुबह अपने विमान में भारतीय सैनिकों को लेकर सबसे पहले बीजू पटनायक श्रीनगर पहुंचे थे। बाद में वे कुछ समय नेहरू के रक्षा सलाहकार भी रहे।

कालांतर में वे सक्रिय राजनीति में आये। दो बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे। आपातकाल में जेल गए। जनता पार्टी सरकार में इस्पात व खान मंत्री रहे। बीजू पटनायक ने "कलिंग एयरवेज़ " नाम से विमान कंपनी भी बनाई थी जिसका बाद में एयर इंडिया में विलय हो गया। उनके पुत्र नवीन पटनायक वर्तमान में चौथी बार उड़ीसा के मुख्य मंत्री हैं।
सन 1997 में जब बीजू पटनायक की मृत्यु हुई तो The New York Times ने उन्हें " Daring Pailot-Patriot of india" लिखा था।

फिलहाल सी-प्लेन के बहाने इतिहास की सैर यहीं तक।
इति।

 


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