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उपलब्ध्य ज्ञान में वैल्यू ऐड करता किस्सागोई के अंदाज़ में राजनीतिनामा मध्यप्रदेश

मीडिया, वीथिका            May 31, 2018


प्रवीण दुबे। 
हमारे बड़े भाई जैसे दोस्त Deepak Tiwari जी की नई किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश 2003—2018 भाजपा युग आई है। हैदराबाद मीटिंग में जा रहा था तो साथ ले गया, आते-जाते वक़्त और वहां जितना समय मिला, मैंने पढ़ी।

इस किताब को आपको क्यूँ पढ़ना चाहिए इसकी दो-तीन वज़ह बताता हूँ किस्सागोई के अंदाज़ में इसके दोनों वोल्यूम लिखे गए हैं।

पौराणिक काल से ये विधा सबसे लोकप्रिय है। वज़नी साहित्यिक कृति सिर्फ वही पढ़ते हैं,जिनकी रूचि होती है लेकिन क़िस्से-कहानी की शक्ल में गढ़ा गया साहित्य आम लोगों के मानस में भी पैबदस्त हो जाता है..दुनिया भर में भारत ही एकलौता देश है जो कहानियों,किस्सों का जनक रहा है। हम सभी ने अपनी दादी-नानी या परिवार के बुजुर्ग से कहानी सुनी है।

पढ़ना एक लत है और सुनने के लायक़ बनाकर सुनाना बहुत बड़ी कला।

मैं इस बात को लेकर बेशक दीपक जी की तारीफ़ करना चाहूँगा कि अंग्रेजी के पत्रकार होने के बावज़ूद उन्होंने बहुत प्रवाह के साथ लिखा है।

दरअसल कुछ लेखकों को एक तरह की साहित्यिक बीमारी होती है कि वे इतने क्लिष्ट शब्द अपनी लेखनी में इस्तेमाल करते हैं कि कुछ लोगों को शब्दकोष की ज़रूरत पड़ती है।

इसके पीछे लेखक भाव होता है, खुद को साहित्यिक तौर पर अभिजात्य घोषित करना..शुक्र है कि दीपक जी इस बीमारी से अछूते हैं,उन्होंने बहुत सरल भाषा में लेकिन घटनाओं को, जो उन्होंने स्वयं देखी या जिनके वे समकालीन दर्शक रहे हैं, सहज अंदाज़ में लेकिन प्रवाह के साथ प्रस्तुत किया है।

ऐसे लेखन के फायदे भी हैं, ये आपके पास उपलब्ध ज्ञान में "वैल्यू ऐड" करता है।

अब बात इस किताब के कंटेंट की....मैंने अभी तक जितना पढ़ा, इसमें ना तो नेताओं की खुशामद है और ना ही छविभंजन का पूर्वाग्रह...चूँकि इस कथानक के जितने भी प्रसंग हैं,उनमें से ज्यादातर मेरे सामने घटित हुए हैं,लिहाज़ा मैं या कोई भी तथ्यों की तोड़-मरोड़ को आसानी से पकड़ सकता था [यदि ऐसा होता तो] लग रहा है जैसे दीपक तटस्थ खड़े हैं और प्रसंगों को बिना क्षेपक सिर्फ प्रस्तुत कर रहे हैं।

उमा भारती से लेकर शिवराज जी तक के इस किताब में दिलचस्प और प्रामाणिक प्रसंग तो हैं ही, साथ ही कांग्रेस और नौकरशाही का भी अच्छा चित्रण है..यदि आपकी एमपी की राजनीति में दिलचस्पी है।

यदि आप भी सभा समारोह में "एक बार की बात है...या वन्स अपोन ए टाईम" के अंदाज़ में कुछ सुनाने के शौकीन हैं, तो आपके लिए इस किताब में पर्याप्त बौद्धिक खुराक़ है।

हालाँकि अभी मैंने पूरी पढ़ी नहीं है लेकिन जैसे मैं साहित्य का मर्मज्ञ,रसिक और भावुक हूँ, उस लिहाज़ से किसी कुशल रसोइए की तरह हांडी के कुछ चावल देखकर ही बता सकता हूँ चावल अच्छे से पके हैं ;) पढ़िएगा मज़ा आयेगा...

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ईटीवी मध्यप्रदेश में स्टेट हैड हैं।

 



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