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आइये शुद्ध अंत:करण से एक परीक्षा में शामिल होते हैं।

वीथिका            Nov 20, 2018


राकेश कायस्थ।
सबसे पहले यह मान लेते हैं कि सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना गंगाजल के धुले हैं। अस्थाना जी उतने ही ईमानदार हैं, जितने उनकी खोज करने वाले इतिहास पुरुष नरेंद्र मोदी। यह भी मान लेते हैं कि अस्थाना पर लगे रिश्वतखोरी के सारे इल्जाम झूठे हैं।

उन्होंने मोइन कुरैशी से कोई रिश्वत नहीं ली है। बैंक फ्रॉड करने वाले किसी उद्योगपति ने उनकी बेटी की शादी होस्ट नहीं की, उन्होने बीजेपी को पुलिस फंड से लाखों का चंदा नहीं दिया।

लगे हाथों यह भी मान लेते हैं कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा भ्रष्ट हैं। उन्होंने रिश्वतखोरी की, अस्थाना जैसी महान आत्मा को काम नहीं करने दिया।

वैसे सुप्रीम कोर्ट में जाकर केंद्र सरकार के खिलाफ गंभीर आरोप आलोक वर्मा ने ही नहीं बल्कि सीबीआई के दूसरे अधिकारियों ने भी लगाये हैं।

डीजीआई एम.के. सिन्हा ने बकाया याचिका दायर करके कहा है कि प्रधानमंत्री के गृह राज्य से नाता रखने वाले एक केंद्रीय मंत्री ने रिश्वतखोरी की है।

उनके खिलाफ जांच रुकवाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली सर्वोच्च संस्था सीवीसी के प्रमुख की भूमिका भी संदिग्ध है। पीएमओ, कानून सचिव और देश के सबसे बड़े नौकरशाह यानी कैबिनेट सेक्रेटरी तक पर उंगली उठाई गई है।

मान लेते हैं कि ये सारे आरोप झूठे हैं। सुप्रीम कोर्ट गये सीबीआई के अधिकारियों को इस बात का ज़रा भी डर नहीं है कि उनकी झूठी शिकायत पकड़ी गई तो क्या होगा।

तमाम आरोपों को झूठा मानने का एक ही निष्कर्ष है। जिस 56 इंच वाले विश्व नेता से अमेरिका और चीन थर-थर कांपते हैं, उसकी हैसियत अपनी ही सरकार में दो कौड़ी की भी नहीं है।

वह ना तो ब्यूरोक्रेसी संभाल सकता है, ना संस्थाओं की हिफाजत कर सकता है। उस बेचारे की हैसियत यह है कि कोई भी चोर बता दे और वह जवाब ना दे पाये।

अमित शाह के बेटे पर चार-सौ बीसी का इल्जाम लगा तो उन्होने सौ करोड़ की मानहानि का दावा किया। बाद में मामला ठंडा पड़ गया वह अलग बात है। लेकिन देश के प्रधानमंत्री को हर दूसरा आदमी चोर बोल रहा है और प्रधानमंत्री बदले में आरोप लगाने वाले के दादा और नाना को याद कर रहे हैं।

कहना दुखद है लेकिन इस आधार पर यही माना जा सकता है कि साहब सचमुच चाय बेचने लायक हैं। सरकार और ब्यूरोक्रेसी संभालना... माफ कीजियेगा आपसे ना हो पाएगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



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