Breaking News

हर किसी के हिस्से में प्रेम नहीं होता, हारे हुये में प्रेम का अंश ज्यादा होता है

वीथिका            Jan 05, 2018


संजय शेफर्ड।
दिन महीने साल कितनी जल्दी बीत जाते हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि कल की ही तो बात है। समय अतीत और वर्तमान के मध्य एक निश्चित दूरी बनाकर चलता है। जैसे-जैसे समय बढ़ता है अंतराल बढ़ता जाता है। बावजूद इसके ऐसा लगता है कि कोई वर्षों पहले छोड़ गया बंद दरवाजे के उस पार खड़ा जोर-जोर से आवाज़ दे रहा है। उसकी आवाज़ कानों तक तो आ रही है पर कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है? हम नींद से उठकर दरवाज़ा खोलते हैं। बाहर कोई नहीं होता है।

“इसी एक घटना को हममें से सालों दर साल हर कोई दोहराता रहता है।” कुछ आवाज़ें हर वक़्त हमारा पीछा करती हैं। हमारे कान अपने साथ ज़माने भर का शोर लिए चलते हैं। पता नहीं स्मृतियों के कौन से कीड़े कानों में किस वक़्त रेंगने लगें और हम उनके साथ चलते समय के कितने पीछे ढकेल दिए जायें?

दरवाज़े के बाहर इस पार हमारा वर्तमान होता है। उस पार अंदर एक कदम पीछे अतीत। बाहर उजाला होता है, उम्मीद होती है, रौशनी होती है। अंदर अंधेरा होता है, हार होती है, हताशा होती है। “हम कई बार दरवाज़े से बाहर निकलते समय एक टुकड़ा पीछे छूट जाते हैं। उसी एक टुकड़े को पाने के लिए हम लोग हर बार अंदर लौटते हैं।”

मन कहता है कि वह अमुक इंसान भला क्यों आएगा जो वर्षों पहले हमें छोड़कर जा चुका है? दिल इस बात के लिए खुदको कभी तैयार नहीं कर पाता है। किसी के चले जाने को क्या सचमुच उसका नहीं होना मान लेना चाहिए? क्या जाने वाले सचमुच नहीं लौटते? लौटते तो होंगे? शायद घर की दहलीज़ तक आते होंगें फिर वापस लौट जाते होंगे। या फिर खिड़कियों तक आ जाने के बाद खुदके लौट आने का विश्वास नहीं दिला पाते होंगे और उन्हें ना चाहते हुए भी लौटना पड़ता होगा।

लेकिन इन सबके बाद, किसी के नहीं होने के बावजूद, किसी के चले जाने के बाद भी, उसके साथ-साथ होने अथवा परस्पर बने रहने का अहसास सदैव ही हममें बना रहता है। स्मृतियों के कीड़े वक़्त-बेवक्त हमारी चमड़ियों के नीचे घुसकर काटते रहते हैं और वही अहसास वर्षों से सोये हुए कानों में अक्सर एक आवाज़ बनकर अचानक से ही किसी भी क्षण गूंज उठता है। और हम उसी एक अहसास में जिन्दगी का लम्हा-लम्हा गुजार देते हैं।

हम वहां तक जाते हैं जहां तक वह आवाज़ हमें ले जाती है और अंततः लौट भी आते हैं। क्योंकि किसी का साथ होना, नहीं होना सच नहीं है। ज़िन्दगी में बने रहना सच है। ज़िन्दगी के किसी भी छोर पर मौजूद रहना सच है। ज्यादातर लोग एक बार फिर से खुद में लौटने के लिए ही अपनों की जिन्दगी से जाते हैं। कई लोग बहुत दूर जाकर भी लौट आते हैं, कुछ चाहकर भी नहीं लौट पाते हैं।

बावजूद इसके प्रेम से निकलकर जाने और जीवन से निकलकर जाने में फर्क होता है। जो लोग प्रेम से निकलकर जाते हैं वह जिंदगी में बने रहते हैं। जो लोग जीवन से निकलकर जाते हैं वह प्रेम में …“और जो लोग नहीं बने रहते वह कभी होते ही नहीं।”

प्रेम में रोना, गिड़गिड़ाना, आंसू बहाना! फिर किसके लिए होता है ? जो कभी था ही नहीं उसके लिए ? या फिर उसके लिए जो जाने के बाद भी आपके जीवन अथवा प्रेम में वर्षों-वर्ष तक बना रहा है? प्रेम और जीवन साथ-साथ चलते हैं बावजूद इसके दोनों में बहुत ही बड़ा विरोधाभाष है। क्योंकि जीवन के हर छोर पर प्रेम प्रारब्ध होता है अंत नहीं और जीवन का हर अंत अपने आप में प्रेम के प्रारब्ध की असीम उत्सुकता लिए ख़त्म होता है।

हम दरवाजों पर सांकल चढ़ा, खिड़कियों को बंद कर सकते हैं। फिर भी वह आवाजें कानों तक आएंगी। हर बार नींद में हम बिस्तर सर उठकर एक बन्द दरवाजे को किसी के लौट आने की उम्मीद में खोलेंगे। और बाहर कोई नहीं होगा…

“हर किसी के हिस्से में प्रेम नहीं होता पर इन्तजार सभी के हिस्से में होता है।”
कुछ लोग प्रेम में प्रेम को जीते हैं, कुछ लोग प्रेम में उसी कभी नहीं ख़त्म होने वाले इन्तजार को…कानों में खटकने वाली हर आवाज़ किसी अपने के पैरों की पदचाप होती है। देखो, अभी— अभी तुम्हारी पलकों से कोई होकर गुजरा है। तुम अपनी आंखों से उसे देख नहीं पाए, अपनी पलकों के खुलने और बन्द होने की उस आवाज़ को तो तुमने कभी ना कभी तो जरूर सुना होगा।

कुछ आवाजों को हम स्वयं पैदा करते हैं, पर बाहर इतना शोर होता है कि अंदर का कुछ सुनाई ही नहीं देता। स्मृतियों की खोह से बाहर निकल पाना इतना आसान कहां? अगर आपको भी नींद में रह रहकर ऐसी कोई आवाज़ सुनाई दे तो समझ लेना कि आप किसी के कभी नहीं ख़त्म होने वाले एक लम्बे इन्तजार को जी रहे हैं।

” मैंने कहा था ना? हारे हुए प्रेम में सदैव प्रेम का अंश ज्यादा होता है।”

हिंदी माफिया से।

 


Tags:

mahtari-vandan

इस खबर को शेयर करें


Comments