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चाय वाले चाचा के अधूरे इश्क़ की दास्तान हक

वीथिका            Feb 11, 2019


आशीष पटैरिया।
ये किताब लिखी है एक चाय बेचने वाले चाचा ने , जी हाँ इस किताब के लेखक बहुत साधारण से इंसान है ।

कुं. धीरसिंह 'धीर' इस किताब के लेखक हैं। भोपाल के M.P.Nagar zone-1 ABP न्यूज़ दफ्तर के बाजू में ही एक चाय की दुकान पर काम करते हैं।

इनकी लेखनी तो कमाल है ही ,चाचा चाय भी बहुत स्वाद बनाते हैं। कुछ दिन पहले चाय की चुसकियों का मज़ा लेते हुए इनसे बतियाना शुरू किया तो पता चला की जनाब लिखने का शौक रखते है । मैंने सोचा आजकल तो सभी लिखते है ये भी उनमे से कोई होंगे।

पहली मुलाक़ात में ही चाचा ने कहा कि मैंने कुछ किताबें लिखी है और जल्द ही अपनी नई किताब लिखने वाले है , मुझे आश्चर्य हुआ ... भला एक चाय बेचने वाला ऐसी बाते क्यू कर रहा है।

मैंने कहा कि आपने जो पुस्तकें लिखी है उसे दिखाइये। उन्होंने कहा अभी तो नहीं है लेकिन आप जब दोबारा मेरी दुकान पर चाय पीने आएंगे तो आपको में अपनी नई किताब (हक़) दूंगा।

रविवार को अचानक मन में आया उसी दुकान पर चाय पी जाए जहां चाचा काम करते हैं। जैसे ही दुकान पर पहुंचा चाचा चाय बनाने मै मशगूल थे।

मैंने कहा चाचा जरा दो चाय तो दीजिये ,वो बोले जी अभी बनाता हूँ । वो मुझे पहचान नहीं पाये जब उनको मैंने याद दिलाया अपने बारे मै तो पहचान गए।

और मैंने कह दिया "चचा क्या हुआ आपकी किताब का " ऐसा सुनते ही उनके चहरे पर एक चमक आ गयी। झटपटाते हुए चाचा ने अपने हाथ कमीज से साफ किए और बोले जरा रुकिए।

 

चाचा चाय का पतीला छोड़ दुकान के अंदार गए और अपना हक़ (उनके द्वारा लिखित पुस्तक का नाम) मेरे हाथ में थमा दिया । मुझे विश्वास नहीं हुआ और तुरंत किताब के पन्ने पलटने लगा।

चचा बोले ये मेरी नयी किताब "हक़" है आप बैठिए मै चाय लेकर आया मैंने तुरंत किताब के पन्ने पलटने शुरू कर दिये ,चाचा चाय बनाने मै मशरूफ़ हो गए ।

फिर हमने किताब पढ़ना शुरू किया चचा ने चाय बनाना , मुझे किताब पढ़ते देख वो ऐसे खुश हो रहे थे मै शब्दो मै बयां नहीं कर सकता।

कुछ देर बाद धीरसिंह चचा चाय लेकर आए हमने उन्हे अपने पास बैठने को बोला और किताब के बारे मै बतियाना शुरू किया।

उन्होंने जो किताब के बारे मै कहा वो में नहीं बता सकता क्योंकि वो सब इस किताब में मौजूद है बस इतना ही कह सकता हूँ कि ये एक चाय बेचने वाले चाचा के अधूरे इश्क़ की दास्तान है।

जो इस दुकान पर चाय पीने जाते है कृपया धीरसिंह जी से उनकी किताब खरीदें क्यूकी ये किताब उन्होने चाय बेचकर कमाये पैसो से लिखी है। मात्र 150 रुपये इस किताब (हक़) की कीमत है।

लेखक युवा पत्रकार हैं यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।

 



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