दोपदी सिंघार।
भोपाल गैंगरेप की घटना सामने आने के बाद और पीड़िता के साथ सिस्टम ने जो दुर्व्यवहार किया उसके सामने आने के बाद दोपदी सिंघार की कविता रेप प्रासंगिक होती नजर आ रही है।
कवि हूँ, आदिवासी हूँ, संघर्षों भरी अपनी कथा है। प्राइवेट स्कूल में टीचर। अलीराजपुर में स्कूल और बस्तर विश्विद्यालय में पढ़ना बताया है उन्होंने। बस यही परिचय दिया है दोपदी ने अपना। मैंने उनकी कभी कोई किताब पढ़ी तो क्या देखी भी नहीं। उनकी सभी कविताएँ नायाब हैं और स्त्री, आदिवासी समाज और आदिवासी समाज की स्त्री के बारे में बहुत कुछ कह रही हैं।
आज पढ़िये उनकी कविता रेप
'तेरा रेप हुआ
या पचीस हजार को आई है'
बोला हँसा और बोला
'तेरा रेप कौन करेगा
सतयुग में दोपदिया पाँच खसम किए है
कलयुग पचास करेगी
तेरा रेप हुआ है
झूठी मक्कार
काला कालूटा बदन देख अपना
बासभरी बालभरी बगलें सूंघ अपनी
तू कहती है तेरा रेप हुआ है
कल बोलेगी बच्चा होगा
परसों बोलेगी मेरा है पंच का है सरपंच का
तेरा रेप हुआ है
हँसा बोला हँसा
'तू सनसनी फैलाने आई है
हमें डराने आई है
नेता बनने आई है
रूपैया बनाने आई है
अपने खसम का मुँह देख
बम्मन ने जो रेप किया दरबार ने रेप किया
तो तुझपे अहसान किया
तेरी सात पीढ़ी तारी है
तू कहती है तेरा रेप हुआ है'
कहा नहीं कुछ बस जरा आँख डबडबाई
मुँह ही मुँह बड़बड़ाई
'नहीं साब बच्चा नहीं होगा
अब बिदरोह होगा
आज लिख भी सकूँ न पूरा शब्द सही सही
एक दिन ऐसा आएगा
जब कोई किसी का हाथ खींचके
बलात्कार न करने पाएगा।
Comments