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अपने-अपने कुरुक्षेत्र के विमोचन में बोले वक्ता,महाभारत के स्त्री पात्रों को नयी दृष्टि से देखता उपन्यास

वीथिका            Feb 25, 2019


मल्हार मीडिया भोपाल।
रामायण और महाभारत एक ही सभ्यता के दो ऐसे महाकाव्य हैं जो मानव के आदर्श और यथार्थ का चित्रण करते हैं। रामायण जहां मनुष्य के आदर्श को बताता है तो महाभारत के उसके यथार्थ को चित्रित करता है।

इन दोनों ही कृतियों पर पहले भी कई उपन्यास, कहानी, काव्य और नाटक लिखे गए हैं लेकिन उपन्यास ‘अपने-अपने कुरुक्षेत्र’ ऐसा उपन्यास है जो महाभारत के स्त्री पात्रों को नयी दृष्टि से देखता है। लेखिका इसके लिए बधाई की पात्र हैं।

यह कहना है साहित्य मनीषी पद्मश्री प्रो. रमेशचंद्र शाह का। वे आज माधवराव सप्रे संग्रहालय में प्रबुद्ध राजनेता मीनाक्षी नटराजन के पहले उपन्यास अपने-अपने कुरुक्षेत्र के विमोचन अवसर पर आयोजित विमर्श में बोल रहे थे।

सप्रे संग्रहालय द्वारा आयोजित विमर्श में साहित्यकार प्रो. रमेश दवे एवं कथाकार उर्मिला शिरीष ने भी उपन्यास पर अपने विचार रखे।

प्रो. शाह ने आगे कहा कि लेखिका ने महाभारत के नारी पात्रों के माध्यम से नई बात कही है। सत्यवती जैसे पात्र के माध्यम से बातें कहलवाना अकल्पनीय है।

इससे लगता है कि उन्होंने महाभारत को सूक्ष्मता से पढा है और नए ढंग से देखा है इसके बाद समूचे महाभारत को भी नए रूप में प्रस्तुत करने का आग्रह यह कृति करती है।

साहित्यकार एवं शिक्षाविद् प्रो. रमेश दवे ने कहा कि उपन्यासकार ने कथा को मूल रूप से उठाकर अपनी दृष्टि को स्थापित किया है। पात्रों का अद्भुत चयन किया है। स्त्री, पुरुष और किन्नर सभी पात्रों के साथ न्याय किया है। कथा तत्व और भाषा शिल्प के लिहाज से भी यह उपन्यास श्रेष्ठ है।

प्रो. दवे ने कहा कि इस कृति में जिस तरह की हिन्दी लेखिका ने लिखी है वह हिन्दी के और लेखकों को रास्ता दिखाती है।

वरिष्ठ कथाकार उर्मिला शिरीष ने भी उपन्यास की भाषा को सहज, सरल बताते हुए कहा कि उपन्यासकार ने महाभारत के स्त्री पात्रों को बंधी-बंधाई छबि से ऊपर उठकर वर्तमान से जोडा है। इसमें लेखिका गहन अध्ययन और शोध दिखाई देता है।

लेखकीय वक्तव्य देते हुए उपन्यासकार मीनाक्षी नटराजन ने कहा कि इस उपन्यास को लिखने के पूर्व तैयारियों में पाया कि इसे नारियों तक सीमित रखेंगे तो दृष्टि मिलेगी, इसी को केन्द्र में रखा। इसके अलावा कृष्ण और भीष्म के संवाद ने इन्हें विस्तार दिया।

इसे संवाद शैली में लिखा है पाठक अलग-अलग रूप में पढ सकता है। उन्होंने कहा कि वेद व्यास ने जिस तरह से हर पात्र को सूक्ष्मता से देखा और उसका नाम तय किया यह अपने आप में अनूठा है। उन्होंने स्वीकार किया कि इसको लिखने के पूर्व पहले आए इस तरह के उपन्यासों की ष्षैली को केन्द्र में रखा है।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार डा राकेश पाठक ने किया। इस अवसर पर हिन्दी सेवी कैलाशचंद्र पंत, सप्रे संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर, निदेशक डा मंगला अनुजा, साहित्यकार युगेश शर्मा, दीपक पगारे आदि उपस्थित थे।

 



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