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Sat, 31 May 2025

इस देश में गाँव और गरीबों का कोई धनी-धौरी नहीं..!

खरी-खरी            Feb 11, 2016


श्रीप्रकाश दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार और विचारक डॉ वेदप्रताप वैदिक ने पिछले दिनों दैनिक भास्कर मे लेख लिख कर गाँव और गरीबों की बदहाली और सत्तारूढ़ नेताओं के फरेबी आचरण की जमकर खिंचाई की है।उन्होने स्मार्ट सिटी योजना का जिक्र करते हुए लिखा कि हमे सौ-दो सौ शहरों की बड़ी चिंता है जबकि लाखों गाँव आज भी गरीबी, गंदगी, अभाव और असुरक्षा मे सड़ रहे हैं। डॉ वैदिक लेख में कहते हैं कि यही हाल रहा तो धीरे-धीरे भारत के सारे गाँव नरक बन जाएंगे। इत्तेफाक से इसी समय इंडिया टुडे हिन्दी ने पीयूष बबेले की आवरण कथा छापी है जिसका शीर्षक ही है- सदमे में [देश के] गाँव..! इसमें पीयूष बबेले लिखते हैं कि देश 21वीं सदी के सबसे बड़े सूखे से जूझ रहा है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दो दशक की सबसे खराब हालत में है। उनके मुताबिक साल-2015 मे 5000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं जिनमें 300 मध्यप्रदेश के हैं। लेख के मुताबिक ये शुरुआती आंकड़ा है जो बढ़ सकता है, हालांकि सरकार इनकी पुष्टि नहीं कर रही है। बबेले ने केंद्र द्वारा मनरेगा योजना की उपेक्षा का जिक्र किया है जिसे मोदीजी मनमोहन सरकार की विफलता का स्मारक बनाने की लोकसभा के घोषणा कर चुके हैं। मैं मध्यप्रदेश के ठेठ आदिवासी जिले बेतूल के दूरदराज़ में स्थित भीमपुर ब्लाक के बाटलाकलाँ गाँव की तस्वीर नवदुनिया से साभार पोस्ट कर रहा हूँ जो बहुत कुछ बयां कर रही है। इसमें एक महिला झिरिया बना कर पीने के लिए गंदा पानी एकत्र कर रही है। आजादी के सत्तर बरस बाद पीने का पानी भी मयस्सर नहीं करा पाईं काँग्रेस और भाजपा की सरकारें..?अब तो मध्यप्रदेश मे भाजपा की सरकार बने भी बारह बरस हो गए और शिवराजसिंह चौहान हाल ही अपने मुख्यमंत्रित्व के दस साल पूरे होने का जश्न भी मना चुके हैं..!


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