श्रीराम तिवारी।
अभी-अभी सम्पन्न पाँच राज्यों की विधान सभा के चुनावों -नतीजों के बाद आम तौर पर कहीं ख़ुशी कहीं गम का माहौल है। जिन राज्यों के नतीजे आये हैं ,उनमे असम ही एकमात्र ऐसा है ,जहाँ भाजपा को विजयश्री का दीदार हुआ है। चूँकि असम में भाजपा ने अलगाववादियों के साथ गठबंधन किया था और कांग्रेस की गोगोई सरकार के 15 वर्षीय शासन से भी जनता ऊब चुकी थी ,इसलिए असम के बहुमत ने भाजपा अलायंस को असम में सत्ता का मौका दिया है। भाजपा नेताओं को इस उपलब्धि पर इतराने के बजाय ,जुमलेबाजी निपोरने के बजाय कुछ सार्थक काम करके दिखाना चाहिए। लेकिन ऐंसी गम्भीरता दिखाने के बजाय भाजपा समर्थित मीडिया और उनके नेता ऐंसे तेवर दिखा रहे हैं मानों पाँचों राज्यों की विजय श्री उनके कदम चूम रही हो !
शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने अपने अखबार ‘सामना’ में भाजपा नेताओं को सही आइना दिखाया है। उन्होंने भाजपा नेताओं को उनका वह बयान याद दिलाया है ,इसमें भाजपा नेताओं ने कहा था कि बंगाल में धर्म की जीत होने वाली है और अधर्म की हार होगी! बंगाल में चूँकि ममता जीत गयी तो क्या अब ये मानें कि अधर्म की जीत हुई और धर्म की हार ?मोदी जी ने सुभाषचंद बोस को जीवित बताया ,उनके परिवार को खूब उछाला ,दस्तावेजों की डुगडुगी बजाई ,लेकिन कोई भी तिकड़म काम न आई ! चार सीट पाकर-बड़े बेआबरू होकर-दीदी के कूचे से निकले ! वामपंथ को भी बंगाल में तगड़ा झटका लगा है। महाभ्रष्ट तृणमूली गुंडे जीत गए ,धर्मनिरपेक्षता ,लोकतंत्र, समाजवाद के अलमबरदार हार गए !
भले ही अभी बंगाल में भाजपा को चार सीटें मिली हैं ,किन्तु उसका वोट पर्सेंटेज तो बढ़ा है ! यदि वामपंथ राष्ट्रीय स्तर पर इकतरफा अल्पसंख्य्क वर्ग के हितों की बात नहीं करता तो भाजपा को मिले ये वोट माकपा और वामपंथ को ही मिलते ! वाम पंथ ने जिस आक्रामक अंदाज में जेएनयू मामले को लिया और हिंदुत्व को कोसा उसी अनुपात में अपरिपक्व हिन्दू जन मानस उससे दूर होता चला गया। उधर मुस्लिम अल्पसंख्य्क वर्ग ने वामपंथ और कांग्रेस के अनौपचारिक गठबंधन को संदेह की नजर से देखा और ममता को और ताकत से जिता दिया। बंगाल के ईमानदार वामपंथियों ने तो कांग्रेस को भरपूर वोट दिए। किन्तु कांग्रेस के लोगों ने वामपंथ से गद्दारी की और वाम पंथ को वोट नहीं दिए। वैसे भी अधिसंख्य बंगाली जन मानस वामपंथ की ढीली ढाली निर्णय शैली से पहले से ही छुब्ध था। आशा है बंगाल का वाम मोर्चा अब इस पराजय के बरक्स खुद ही इन समस्याओं को व्यापक नजरिए से विहंगावलोकन करेगा।
वैसे तो भारतीय वामपंथ हर किस्म के झंझावतों में अपनी मशाल को ज्योतिर्मय बनाए रखने में सफल रहा है .आइन्दा भी उसे हर चुनौती का सही आकलन करने और उसका सामना करने में कोई दिक्क्त नहीं होगी ! बंगाल में ममता की जीत से आतंकित होने की जरूरत नहीं है। तृणमूल के गुंडों से बदहवास होने के बजाय जमीनी संघर्ष और तेज करना होगा। वामपंथ को खास तौर से सीपीएम को बंगाल की वर्तमान राजनीति का वास्तविक आकलन करना चाहिए। बंगाली कामरेडों को जिद छोड़कर अपनी गलतियाँ मान लेना चाहिए। बंगाल कांग्रेस ने धोखा दिया है या मुसलमानों ने धोखा दिया है या हिन्दू मानस नाराज हुआ है यह भी विश्लेषित किया जाना चाहिए। मोदी जी या संघ परिवार पर वैचारिक हमला करने की भी कोई सीमा सुनिश्चित होनी चाहिए ! क्योंकि इससे वामपंथ के लगभग 10% हिन्दू वोट और कम हो गए है। उधर भाजपा और मोदी को हराने की धुन में कट्टर पंथी मुसलमानों ने वामपंथ को ठेंगा दिखा दिया है ! भारत के मजदूर ,किसान ,बेरोजगार युवा और छात्र आशावान हैं कि वामपंथ उन्हें सही राह दिखलायेगा। भारतीय वामपंथ को केरल की जीत पर गर्व होना चाहिए ! आइन्दा 2019 के लोक सभा चुनावों में बंगाल पुनः हासिल करते हुए दिल्ली में भी वामपंथ को प्रभावशाली भूमिका हासिल करनी चाहिए।
यह सर्विदित है कि केरल में सीपीएम के नेतत्व में LDF अर्थात वामपंथ को केरल की जनता ने भारी बहुमत से जिताया है। लेकिन इस विराट जीत का भारत के पूँजीवादी मीडिया ने कोई संज्ञान नहीं लिया। ऐंसा लगता है कि आवारा पूँजी से नियंत्रित इस भारतीय मीडिया को सिर्फ भाजपा की विजय से मतलब है। यही वजह है कि उसे भाजपा मुख्यालय की आतिशबाजी और विजयी मिठाई तो दिखती है, लेकिन संघियों द्वारा केरल में माकपा कार्यकर्ताओं की हत्या नहीं दिखती ! उसे ममता की विजय तो दिखती है ,बंगाल में भाजपा को मिली 4 सीटें भी दिखतीं हैं ,किन्तु बंगाल में मोदी जी और भाजपा की घोर पराजय नहीं दिखती !लगता है कि इसे केवल कांग्रेस मुक्त
भारत की फ़िक्र है। इसीलिये कांग्रेस की हार पर ही मर्सिया पढ़े जा रहे हैं। भारत के पाखंडी मीडिया ने केरल में भाजपा को मिली महज एक सीट के लिए उसे तो अखण्ड दिग्विजयी बता दिया .किन्तु इस विजयी उन्माद में मार्क्सवादियों की शानदार जीत को लगभग भुला ही दिया । सत्ता के चाटुकार मीडिया का एक शर्मनाक ताजा उदाहरण है कि आज दिनांक २० मई -2016 के नई दुनिया अखवार में ''भाजपा का अब आधे भारत पर शासन '' शीर्षक से एक नक्शा प्रस्तुत किया गया है। नक़्शे पर उन तमाम राज्यों को भगवा रंग से भरा गया है जिनमें भाजपा का या उसके अलायंस एनडीए का राज है । इस नक़्शे में त्रिपुरा को भी भगवा कलर में दिखाया गया है. जबकि वहाँ माणिक सरकार के नेतत्व में सीपीएम का 15 साल से शासन है। कायदे से त्रिपुरा को भी केरल की तरह लाल रंग में दिखाया जाना चाहिए था। इससे पहले कि जागरण समूह वाले गुप्त बंधू , भास्कर समूह वाले अगरवाल बंधू ,ज़ी न्यूज वाले चंद्रा बंधू और तमाम पीत वसनधारी बंधू - केरल को भी भगवा रंग से पोत डालें , केरल के कामरेडों को अपना लाल रंग पुख्ता कर लेना चाहिए !
दरसल जिन 5 राज्यों में चुनाव हुए ,उनमें असम ही एकमात्र ऐंसा है जहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर थी .बाकी राज्यों में तो भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो चुका है। तमिलनाडु में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली ,जबकि वहाँ का एक भाजपा नेता सुब्र्मण्यम स्वामी तो कांग्रेस मुक्ति या गांधी परिवार के सर्वनाश की ही मंगल कामना करता रहता है ! तमिलनाडु में जय ललिता बनाम करूणानिधि तो हैं ,किन्तु भाजपा कहीं नहीं ,किन्तु फिर भी भाजपा वाले भारत विजय का उद्घोष किये जा रहे हैं !पांडिचेरी में कांग्रेस जीती है ,वहाँ भी भाजपा का खाता नहीं खुला ! केरल में जरूर ओ राज गोपाल की अखण्ड तपस्या काम आ गयी और जनता ने उनके बुढ़ापे पर दया दिखाकर जिता दिया।
आजादी के 68 साल बाद 'संघ परिवार' को केरल में एक सीट मिली ,इसलिए खूब जश्न मनाएं ,किन्तु निर्दोष नौजवानों ,छात्रों या मजदूरों पर बम फेंक कर नहीं। यह तय है कि हर बार की तरह इस बार भी चुनावी हार -जीत की समीक्षाएँ और विश्लेषण पेश होंगे ! हालॉंकि जो नतीजे आये हैं ,उनके बारे में देश की प्रबुद्ध आवाम को और सभी पार्टियों को पहले से ही प्रायः यही अनुमान था। एग्जिट पोल वाले भले ही तीर में तुक्के मारते रहें ! बेशक इस दौर के चुनावों में कांग्रेस की पराजय अवश्य उल्लेखनीय है। लेकिन जो लोग कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रहे हैं या जो लोग कांग्रेस पर वर्षों तक काबिज रहे हैं और अब उसकी हार का मर्सिया पढ़ने पर आमादा हैं ,वे दोनों ही यह याद रखें कि कांग्रेस पार्टी 'फीनिक्स' पक्षी का राजनैतिक अवतार है। जिस तरह एथिक्स का फीनिक्स पक्षी राख से भी उठकर पुनः उड़ने लगता है , जिस तरह आषाढ़ का केंचुआ दो टुकड़े होने पर भी पुनः जी उठता है उसी तरह कांग्रेस भी वक्त आने पर पुनः सत्ता में आ जाएगी। भले ही कांग्रेस गाजरघास है ,कांग्रेस अमरवेलि है ,कांग्रेस खरपतवार ही सही,किन्तु कांग्रेस मुक्त भारत कभी नहीं हो सकता ! क्योंकि कांग्रेस सिर्फ राजनैतिक पार्टी ही नहीं बल्कि स्वाधीनता संग्राम का कीर्तिमान मंच भी रहा है। हताश निराश कांग्रेसियों को बिहारी के ये दोहे हमेशा याद रखना चाहिए :-
जिन दिन देखे वे कुसुम ,गइ सो बीत बहार
अब अली रहेउ गुलाब क्यों ,अपत कटीली डार ..
अर्थ :- सूखे और पत्तेविहींन कटीले गुलाब पर मंडरा रहे भँवरे से कवि ने पूँछा -अब इसमें फूल पत्ते कुछ भी नहीं , फिर क्यों मंडरा रहे हो ?
भँवरे ने जबाब दिया :- एहिं आशा अटको रहेउँ ,अली गुलाब के मूल
फेरहिं बहुरि वसंत ऋतू ,इन डारन वे फूल ..
अर्थ :- हे कवि ! मैं इस सूखे गुलाब की डालियों के इर्द-गिर्द इसलिए मंडरा रहा हूँ,क्योंकि मैं जानता हूँ कि बहारें फिर से आएंगीं ,फिर से इन सूखी डालियों में कोंपलें फूटेंगीं ,कलियाँ खिलेंगीं ,फूल खिलेंगे !
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