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टेढ़ी खीर है महा भ्रष्टों को सजा दिलाना

खरी-खरी            Aug 08, 2016


rakesh-kumar-paliwalराकेश कुमार पालीवाल। भ्रष्टाचार के बड़े मामलों मे अक्सर ऐसी स्थितियाँ बन जाती हैं जिनमें वर्तमान कानूनों के अंतर्गत बड़े और शातिर भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाना इंग्लिश चैनल पार करने से भी कठिन हो जाता है। यही कारण है कि हजार दस हजार की घूस लेने वाले रंगेहाथ पकड़े बाबू, पटवारी, कांस्टेबल और इंस्पेक्टर आदि तो देर सवेर सजा पा जाते हैं लेकिन बड़े नेता और अफसरान एकाध अपवाद के अलावा कभी ठीक से शिकंजे मे नहीं आते। एक तो अधिकांश बडे मामलों मे घूस लेने और देने वालों में आपसी सहमति रहती है इसलिए ऐसे मामलों मे कोई गवाह मिलना तो दूर उल्टे दौनो पक्ष मिलकर जांच एजेंसी और जांच कर्ताओं पर उत्पीड़न और मानहानि तक का केस करने की धमकी देकर डराते हैं, और कई बार तो अपने अथाह धनबल के सहारे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के नामी वकीलों की बड़ी फौज खड़ी कर मामले मे तकनीकी खामियों के आधार पर न केवल खुद बाईज्जत बरी हो जाते हैं बल्कि जांच एजेंसी और जांच कर्ताओ पर स्ट्रिक्चर भी करा देते हैं। इसीलिए इन बदमाशों पर हाथ डालने की हिम्मत बहुत कम लोग ही कर पाते हैं और महाभ्रष्ट न केवल समय से पदोन्नति पाकर प्रदेश के मुख्य सचिव तक बन जाते हैं और तथाकथित मलाईदार पदों पर भी नियुक्त हो जाते हैं । भ्रष्टाचार की जंजीर इतनी लंबी और मजबूत हो गई है कि इसे तोड़ना वर्तमान कानूनों और न्याय व्यवस्था के अंतर्गत संभव नहीं है जिसमें वही पुरानी कहावत दोहराई जाती है कि चाहे लाख गुनहगार छूट जाएँ लेकिन किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए। वर्तमान कानूनों के अंतर्गत बड़े भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने के बारे मे सोचना ऐसा ही है जैसे कोई मछली फंसाने वाले पतले जाल मे मगरमच्छ फंसाने की कौशिश करे ??? न्यायिक व्यवस्था के क्रांतिकारी सुधारों की अविलंब आवश्यकता है । फेसबुक वॉल से


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