Breaking News
Fri, 30 May 2025

प्राउड हिंदु हैंडल से मिलीं गालियों को रवीश का सहिष्णु सलाम

खरी-खरी, मीडिया            Jan 08, 2016


मूर्धन्य पत्रकार अंबादत्त भारतीय सिखाया करते थे लिखो मगर सीधा मत लिखो अर्थात जूता मारो मगर भिगा कर मारो लगेगा भी और सामने वाला जवाब भी नहीं ​दे पायेगा। मैं अपने लेखन में तो यह मंत्र नहीं अपना पाई मगर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार इसे अपनाते हैं। हाल ही में उन्हें ट्विटर पर कथित हिंदुत्व के पैरोकारों ने गालियों से नवाजा है,जिसका जवाब रवीश कुमार ने अपने इन भीगे शब्दों से सलाम के रूप में दिया है। [caption id="attachment_16188" align="aligncenter" width="300"]ये है वो ट्विट इसे देखने के बाद अच्छे खासे सहनशील व्यक्ति की सहनशीलता जवाब े सकती है। ये है वो ट्विट इसे देखने के बाद अच्छे खासे सहनशील व्यक्ति की सहनशीलता जवाब े सकती है।[/caption] कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में जिन्हें तल कर जिनसे छन कर वही बात हर बार निकलती है बालकनी के बाहर लगी रस्सी पर जहाँ सूखता है पजामा और तकिये का खोल वहीं कहीं बीच में वही बात लटकती है जिन्हें तल कर जिनसे छनकर वही बात हर बार निकलती है बातों से घेर कर मारने के लिए बातों की सेना बनाई गई है बात के सामने बात खड़ी है बात के समर्थक हैं और बात के विरोधी हर बात को उसी बात पर लाने के लिए कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में जिन्हें तल कर जिनसे छनकर वही बात हर बात निकलती है लोग कम हैं और बातें भी कम हैं कहे को ही कहा जा रहा है सुने को ही सुनाया जा रहा है एक ही बात को बार बार खटाया जा रहा है रगड़ खाते खाते बात अब बात के बल पड़ने लगे हैं शोर का सन्नाटा है, तमाचे को तमंचा बताने लगे है अंदाज़ के नाम पर नज़रअंदाज़ हो रहे हैं हम सब कुछ ही तो वाक्य है बाज़ार में जिन्हें तल कर जिनसे छनकर वही बात हर बार निकलती है । बात हमारे बेहूदा होने के प्रमाण हैं वात रोग से ग्रस्त है, बाबासीर हो गया है बातों को बकैती अब ठाकुरों की नई लठैती है कथा से दंतकथा में बदलने की किटकिटाहट है चुप रहिए, फिर से उसी बात के आने की आहट है । अब भाषण सुनिये मित्रों , मैं इन दिनों लंबी छुट्टी पर हूँ । लेकिन उन्हें छुट्टी नहीं मिली जो सोशल मीडिया पर इस न्यूज उस न्यूज के बहाने हमारी अग्निपरीक्षा लेने के लिए आतुर रहते हैं । मुझे खुशी है कि जो लोग वर्षों तमाम चैनलों पर भूत प्रेत से लेकर वहशीपना फैला गए वो आज समादरित हैं । उनसे पत्रकारिता की शान है । वैसे तब भी वही समादरित रहे और आगे भी वही रहेंगे । लोग उन्हीं को देख रहे हैं । वो कब किसी खबर के गुमनाम पहलू को छूकर सोना बन जाते हैं, यह चमत्कार मुझे प्रेरित करने लगा है । हमें गाली देने वालों को जो तृप्ति मिलती है उससे मुझे खुशी होती है । कम से कम मैं उनके किसी कम तो आता हूँ । अगर किसी को गाली देना संस्कार है तो इसकी प्रतिष्ठा के लिए मैं लड़ने के लिए तैयार हूँ । इसीलिए गाली का एक नमूना लगा दिया । कविता पहले लिखी जा चुकी थी । वर्ना ये किसी भदेस गाली के सम्मान में लिखी गई कविता हो सकती थी । पहली है या नहीं, पता नहीं । फिर भी मैंने गाली को कविता से पहले रखा है । गाली को साहित्यिक सम्मान भी मैं ही दिलाऊँगा । जो मित्र मेरे एक खास अंग को तोड़ कर पीओके भेजना चाहते हैं कम से कम अख़बार तो पढ़ लेते । पीओके से जो आ जाते हैं उन्हें तो मारने में चार दिन लग जाते हैं, लिहाज़ा हमारे अंगों को क्षति पहुँचाकर पीओके भेजने वाले मित्र अगर नवाज़ भाई जान से इजाज़त ले ले तो अच्छा रहेगा । कहीं क्षतिग्रस्त अंगों को लेकर सीमा पर इंतज़ार न करना पड़ जाए और उनसे मल न टपकने लगे ! टूटे अंग को डायपर में ले जाइयेगा । अरे बंधु इतनी घृणा क्यों करते हैं । आपसे गाली देने के अलावा कुछ और नहीं हो पा रहा है तो नवीन कार्यों के चयन में भी मदद कर सकता हूँ । मैं स्वयं और उस अंग की तरफ से भी माफी माँगता हूँ जिसे आप तोड़ देना चाहते हैं । हालाँकि मेरे बाकी अंग स्वार्थी साबित हुए । वे ख़ुश हैं कि बच गए । मैं आपके सामने शीश झुका निवेदन करना चाहता हूँ । आप उस अंग को न सिर्फ मेरे शरीर से, जो सिर्फ भारत को प्यार करता है, अलग करना चाहते हैं बल्कि मेरी मातृभूमि से भी जुदा करना चाहते हैं । प्लीज डोंट डू दिस टू माई… । आप तो एक सहनशील मज़हब से आते हैं । वही मेरा धर्म है । इसलिए आप तोड़े जाने के बाद मेरे उस अंग को उस अधिकृत क्षेत्र में न भेजें जो अखंड भारत के अधिकृत नहीं है । अब तो मुस्कुरा दो यार । गाली और धमकी आपने दी और माफी मैं मांग रहा हूँ । इसलिए कि कोई आपके मेरे धर्म पर असहिष्णुता के आरोप न लगा दे । ट्वीटर पर आपकी इस धमकी भरी गाली ने मुझे कितना साहित्यिक बना दिया । अगर मैं आपके ग़ुस्से का कारण बना हूँ तो अफ़सोस हो रहा है । आशा है आप माफ कर देंगे और वो नहीं तोड़ेंगे जो तोड़ना चाहते हैं । कस्बा से साभार


इस खबर को शेयर करें


Comments