डॉ.वेद प्रताप वैदिक।
आज मैं पटना में हूं। बिहार हिंदी सम्मेलन का (आज 37वां) अधिवेशन हो रहा है लेकिन मेरा ध्यान आज यहां जिस बात ने खींचा है, वह है-मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी ने। यह अद्भुत कार्य है। भारत के इतिहास में ऐसा अद्भुत कार्य शायद पहली बार हो रहा है। सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य और हर्षवर्द्धन के काल में भी ऐसी शराबबंदी की बात मैंने नहीं पढ़ी।
इस्लाम में तो पूर्ण शराबबंदी है लेकिन किसी तुर्क, मुगल या पठान बादशाह ने भी ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई, जैसी नीतीश दिखा रहे हैं। हालांकि हमारे मित्र स्वनामधन्य कर्पूरी ठाकुरजी ने भी ऐसा प्रयत्न किया था, इसी बिहार में लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। नीतीश का प्रयत्न भी सफल होगा या नहीं, यह कहना जरा मुश्किल है लेकिन जिस उत्साह से उन्होंने यह शराबबंदी अभियान चलाया है, वह देश के प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्रियों के लिए अनुकरणीय है।देश के सभी शराबियों की पत्नियां नीतीश कुमार का समर्थन करेंगी। यह स्त्री—शक्ति का जबर्दस्त आह्वान होगा।
(1 अप्रैल) इस अभियान का पहला दिन था। सात लाख लीटर शराब को नाली में बहाया गया। सारे विधायकों और मंत्रियों ने शराब न पीने का संकल्प लिया है। इस तरह का संकल्प सभी सरकारी कर्मचारी भी करेंगे। जाहिर है कि इस संकल्प या शपथ या प्रतिज्ञा का पालन भी उसी तरह से होगा, जिस तरह से मंत्रियों की प्रतिज्ञा का होता है। जो भी हो, कम से कम जाहिरा तौर पर एक माहौल तो बना ही है। माहौल तो ऐसा बना है कि बिहार के गांवों में शराबी लोग अपने जीवन में पहली बार बेबस हो गए। किसी गांव में कल एक भी बोतल नहीं बिकी।
हजारों लोगों ने शराब-विरोधी प्रभात फेरियां निकालीं, जूलूस निकालें और सभाएं कीं। शहरों में अंग्रेजी शराब की अनुमति थी लेकिन वहां भी उसकी हड़ताल-सी हो गई। नीतीश ने कानून बनाया है कि देसी शराब याने ठर्रा बनाने वाले, बेचने वाले और पीने वाले को सजा होगी। लेकिन यह कानून अभी अधूरा है। अभी विदेशी शराब याने अंग्रेजी ब्रांड की शराब को शहरों में खरीदा और बेचा जा सकता है। गांवों में उस पर प्रतिबंध है। यह प्रतिबंध लागू कैसे होगा, समझ में नहीं आता और यह भी समझना कठिन है कि अंग्रेजी शराब की बिक्री दुगुनी-चौगुनी क्यों नहीं हो जाएगी?
वह मंहगी है तो लोग कम पिंएगे लेकिन पिएंगे जरुर। शायद धीरे-धीरे नीतीश इस शराब पर भी प्रतिबंध लगा देंगे। यह भी हो सकता है कि अंग्रेजी शराब की ‘लाबी’ इतनी प्रबल है कि वह कर्पूरीजी की तरह नीतीश के अभियान को भी विफल करने की कोशिश करे। यों भी अभी आंशिक शराबबंदी के कारण बिहार सरकार को लगभग 5 हजार करोड़ रु. का नुकसान होगा। इसी टैक्स के नुकसान के डर से अन्य राज्य नशाबंदी जमकर लागू नहीं करते। लेकिन वे यह नहीं सोचते कि यदि शराबबंदी हो जाए तो राज्यों को लाखों करोड़ रु. का फायदा होने लगेगा।
देश के स्वास्थ्य, सौजन्य, शिक्षा, कार्यक्षमता आदि में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है। सरकारी कानून से शराबबंदी जरुर होगी लेकिन उसे पूर्ण रुपेण सफल बनाने के लिए यह जरुरी है कि देश में शराबबंदी के लिए नैतिक वातावरण तैयार किया जाए। नीतीश की शाबासी इस बात में हैं कि वे ये दोनों कामों को एक साथ कर रहे हैं।
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