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लोकतंत्र को ललित निबंध का विषय मत बनाइये! इसके खोखलेपन को देखिये!

खरी-खरी            Jun 19, 2016


ravish-kumar-ndtvरवीश कुमार। हम अक्सर अपने लोकतंत्र को महान बताते रहते हैं। ये ठीक भी है लेकिन महानता के बखान के चक्कर में हम काफी सतही हो जाते हैं। मसलन क्या भारतीय लोकतंत्र की इतनी सी कामयाबी है कि यहां चुनाव होते हैं और लोग वोट देते हैं। कई बार हम इस बात को ऐसे रेखांकित करने लगते हैं जैसे दुनिया में कहीं चुनाव नहीं हो पाता है। मतदान ही नहीं होता है। ऐसा भी नहीं कि हम इसकी कमियों पर बात नहीं करते। खूब करते हैं लेकिन बात करना भी अब उपभोग जैसा हो गया है। जैसे हम लस्सी पी कर भूल जाते हैं वैसे ही लोकतंत्र की कमियों की चर्चा का हाल है। आप अब तक इन तीन ट्रकों की कहानी जान गए होंगे। तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के दौरान पकड़े गए थे। इनके भीतर 195 बक्से में भरे हुए नोट बरामद हुए थे। सिर्फ 570 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। आशंका जताई गई कि ये नोट चुनावों में बांटने के लिए ले जाये जा रहे हैं। चुनाव आयोग की टीम ने पकड़ लिया और मामला अदालत में पहुंचा। पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने दावा किया है कि ये पैसे उसके हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के दावा करने के बाद भी मामला अभी तक नहीं सुलझा है। कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। पहला ट्रक के नंबर फर्ज़ी हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक की तरफ से इतनी बड़ी रकम ले जाने की अनुमति के दस्तावेज़ पेश किये गए वो भी फर्ज़ी निकले हैं। नोटों के बंडल पर किसी और बैंक का सील है जबकि स्टेट बैंक दावा कर रहा है उसका पैसा है। [caption id="attachment_22941" align="aligncenter" width="670"]image description image description[/caption] मद्रास हाई कोर्ट ने सीबीआई से कहा है कि वो दो हफ्तों के भीतर जांच कर रिपोर्ट फाइल करे। इस केस से जुड़े एक वकील का कहना है कि सारे दस्तावेज़ बोगस हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का दावा है कि उसका पैसा है। तमिलनाडु की दो विधानसभा सीटों पर डीएमके और अन्ना डीएमके के उम्मीदवारों की तरफ से करोड़ों रुपये बांटने के आरोप लगे तो चुनाव रद्द करने पड़े। चुनाव पर नज़र रखने वालों का कहना था कि खूब पैसे बांटे गए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पैसे बांट कर चुनाव भी जीते जा सकते हैं। हमारे यहां चुनाव तो हो जाते हैं मगर हमें देखना चाहिए कि कैसे कैसे चुनाव हो रहे हैं और पैसे पैसे क्यों चल रहे हैं। राजनीति आज इतनी महंगी होती जा रही है कि आप ग़रीब की बात तो कर सकते हैं मगर अब ग़रीब चुनाव नहीं जीत सकता। अगर ऐसा होता तो राज्यसभा के निर्दलीय उम्मीदवारों में से कुछ ग़रीब भी मैदान में आ जाते और हमारे विधायक लोग अपना बचा हुआ मत उनकी बातों से प्रभावित होकर दे देते। क्या ऐसा हो सकता है। आप पता कीजिए कि जितने भी निर्दलीय इस बार राज्यसभा के चुनाव में उतरे हैं उनकी आर्थिक स्थिति क्या है। पैसे के दम पर राज्यसभा की सीट ख़रीदने के आरोप लग रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के उच्च सदन के लिए। आपको पता ही होगा कि कर्नाटक के एक विधायक जी कथित रूप से पांच करोड़ रुपया मांग रहे थे। उनके खिलाफ एफआईआर तो हो गई है मगर चुनाव रद्द नहीं हुआ है। कई दलों ने दूसरे दल का उम्मीदवार न जीते इसलिए पैसे वाले निर्दलीय उम्मीदवार को खड़ा किया है ताकि वो दाम देकर ख़रीद ले और उसका उम्मीदवार हार जाए। पार्टी का नाम लेना ठीक नहीं क्योंकि बारी बारी से ये काम करने का श्रेय सबको जाता है। यही नहीं पार्टियां अपने विधायकों की निष्ठा से भी परेशान हैं। उन्हें होटल से लेकर रिसॉर्ट तक में बंद रखा जा रहा है। राज्यसभा का चुनाव आते ही पार्टियों को अपने विधायकों के ऊपर से भरोसा समाप्त हो जाता है। यह कितनी चिन्ता की बात है। रोज़ हम किसी पार्टी के विधायकों को होटल में रखे जाने की खबरें पढ़ते रहते हैं और सामान्य हो जाते हैं। ग़रीबों के नाम पर चुनकर आने वाले विधायक फाइव स्टार होटलों में किसके पैसे से रखे जाते हैं। 2012 में झारखंड में राज्यसभा चुनाव के दौरान एक निर्दलीय उम्मीदवार के भाई की गाड़ी से 215 करोड़ रुपये चुनाव आयोग ने पकड़े थे। ये पैसा विधायकों को बांटने के लिए रांची ले जाया जा रहा था। क्या आप समझ पा रहे हैं कि हमारी राजनीति के पास 215 करोड़ कहां से आता है। सिर्फ चुनाव हो जाना हमारे लोकतंत्र की बड़ी कामयाबी नहीं है। हमें देखना चाहिए कि हमारी संस्थाएं कितनी लोकतांत्रिक हैं। हम और आप कितने लोकतांत्रिक हुए हैं। जनता भी तो चुनाव से पहले की रात बंट रहे काला धन और शराब को ले लेती है। क्या आपने सुना है कि हिलेरी क्लिंटन और ट्रम्प चुनाव से पहले रात को दारू बांट कर चुनाव जीत गए। इसलिए लोकतंत्र को ललित निबंध का विषय मत बनाइये। इसके खोखलेपन को देखिये। एडीआर के अनुसार 542 सांसदों में से 185 के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले चल रहे हैं। 542 में से 112 सांसदों के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। एडीआर की ही रिपोर्ट है कि केरल में 60 प्रतिशत विधायकों ने इनकम टैक्स फाइल नहीं किया है। बंगाल में ऐसे विधायकों की संख्या 20 प्रतिशत है। क्या ये सब इतने ग़रीब होंगे। क्या ये बात आपको परेशान नहीं करती है। दुनिया के सबसे बड़े और महान लोकतंत्र में हर चुनाव में निर्वाचित महिला उम्मीदवारों की संख्या नगण्य के बराबर होती है। आप जानते हैं कि इस वक्त देश के 15 राज्यों में राज्यसभा की 57 सीटों के लिए चुनाव है। 6 राज्यों में निर्धारित सीट से ज्यादा उम्मीदवार हैं। यहीं पर पैसे के लेनदेन और सियासी खेल की बात हो रही है। कई बार कांग्रेस बीजेपी के वोट से सीट जीत लेती है तो कई बार बीजेपी दूसरे दलों के विधायकों के वोट से। इसके अनेक उदाहरण आपको मिलेंगे। ज़ाहिर है ये मतदान फोकट में नहीं होते हैं। प्रमाण भले न मिले लेकिन किसी नेता से पूछियेगा तो यही कहेगा कि बिना पैसे के कोई निर्दलीय जीत ही नहीं सकता।


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