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क्या फ़ेसबुक नफ़रत फैलाने वालों के दबाव और इशारे पर काम करता है?

मीडिया            Apr 16, 2016


मल्हार मीडिया डेस्क। क्या फ़ेसबुक नफ़रत फैलाने वालों के दबाव और इशारे पर काम करता है? क्या लाइक और शिकायत के गणित के ज़रिये तय होगा कि समाज के हित में क्या है और क्या नहीं ? यह सवाल उठ रहा है दिल्ली विशवविद्यालय के अध्यापक और हिंदी के मार्क्सवादी आलोचक आशुतोष कुमार के साथ हुए सुलूक से। फ़ेसबुक ने उन्हें 24 घंटे के लिए ब्लॉाक किया और हमेशा के लिए ब्लॉक करने की धमकी दी। उनकी ग़लती यह थी कि उन्होंने नफ़रत फैलाने वालों की कारग़ुज़ारियों का पर्दाफाश करते हुए एक पोस्ट लिखी थी। ज़ाहिर है, नफ़रती गुंडों ने गिरोह बनाकर उनकी शिकायत की जिसकी वजह से फ़ेसबुक ने ऐसा किया। लेकिन क्या फ़ेसबुक के पास कोई संपादकीय नीति नहीं है जिससे सही-ग़लत का वह फ़ैसला कर सके। अगर नहीं, तो समझिये कि ज़ुकरबर्ग ने आज़ादी का मंच नहीं, धंधा खड़ा किया है जो आने वाले दिनों में लोगों को मानसिक ग़ुलाम बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। पढ़िये ब्लॉक रहने के दौरान मीडिया विजिल के लिए क्या लिखा आशुतोष ने– फेसबुक ने मुझे 24 घण्टे के लिए ब्लाक कर दिया है , और स्थायी रूप से ब्लाक करने की धमकी दी है । हमारा अकाउंट दृश्यमान है , लेकिन हम न तो कुछ पोस्ट कर सकते हैं , न किसी और की दीवार पर कोई टिप्पणी कर सकते हैं . मैंने बजरिए Nirendra Nagar एक पोस्ट शेअर की थी , जिसमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने की एक घृणित साइबर साजिश का भंडाफोड़ किया गया था। वह पोस्ट अब भी नागर जी की दीवार पर होगी। मुम्बई का एक मुसलमान आँख पर पट्टी बांध कर सड़क किनारे खड़ा हुआ था। उसने निकट एक तख्ती लगा रखी थी , जिस पर लिखा था – मैं मुसलमान हूँ , मुझे आप पर भरोसा है । अगर आप भी मुझ पर भरोसा करते हों तो गले मिलिए।यह एक सच्ची घटना है । लोग दिन भर उससे मिलते रहे और खबर बनी। किसी ने इसी घटना के फोटोग्राफ उठाए । और आखिर में एक फोटो जोड़ दिया , जिसमें दिखाया गया था कि आखिरकार वह मुसलमान कमर में बंधे बम से गले मिलनेवाले को उड़ा देता है। (नीचे देखिये, धमाके वाली तस्वीर जोड़कर कैसे अर्थ का अनर्थ किया गया है ! ) fb-post यह हरकत अधिक दुखदायी इसलिए है कि विश्वास का सन्देश देने वाले एक प्रयोग को इस रूप में पेश किया जा रहा था कि और ज़्यादा नफ़रत फैले। नागरजी की पोस्ट में इसी घिनौनी साजिश का भंडाफोड़ किया गया था। मैंने इसी पोस्ट को शेअर किया था। यह शालीन और सन्तुलित भाषा में लिखी गई पोस्ट थी। पहले तो कम्युनिटी स्टैंडर्ड के ख़िलाफ़ बता कर फेसबुक ने इस पोस्ट को हटा दिया। लेकिन उन्होंने मुझसे न तो कोई स्पष्टीकरण माँगा , न स्वयं दिया। इस बात की शिकायत करते हुए मैंने उसी पोस्ट को दुबारा शेअर किया। फेसबुक ने उसे दुबारा हटा दिया। और 24 घण्टे के लिए ब्लाक कर दिया। और अबकी मुझे सख्त चेतावनी दी है कि अगर मैंने दुबारा ऐसी गलती की , तो वे मुझे हमेशा के लिए ब्लॉक कर देंगे।लेकिन मेरे इस पोस्ट में गलती क्या है , यह नहीं बता रहे। ध्यान रहे कि मेरे अलावा भी बहुत से लोगों ने उसे शेअर किया है।जिसे फेसबुक ने भी नहीं हटाया है। जाहिर है कि फेसबुक की हमन से कोई ख़ास नाराज़गी है। हमने अपनी तरफ से फेसबुक को समूचे घटनाक्रम की जानकारी दी है . लेकिन न तो फेसबुक ने हम पर लगा ब्लॉक हटाया है , न ही उसने हमें कोई उत्तर दिया है. कुछ दोस्तो ने इस जानकारी को फेसबुक पर शेअर किया है . लेकिन कुछ दोस्तों ने यह भी कहा है कि जब वे हमें टैग करते हैं तब पोस्ट प्रकाशित नहीं हो पाती . यह एक चिंताजनक परिस्थिति है .क्या सोशल मीडिया की स्वतन्त्रता भी नियंत्रित की जा रही है ? क्या कारण है कि साम्प्रदायिक नफरत फैलाने वाले हज़ारो -लाखों पृष्ठ शिकायतों केबावजूद सक्रिय रहते हैं , जबकि प्रगतिशील विचारों के पन्ने और पोस्ट तत्काल और ताबड़तोड़ ब्लाक किए जा रहे हैं ? कनुप्रिया की दीवार पर ऋषभ दुबे ने कहा है कि साम्प्रदायिक कंटेंट की शिकायत पर ब्लाक किया गया ठलुआ क्लब नाम का पेज मोदी सरकार के आते ही अचानक फिर से सक्रिय हो गया . ध्यान रहे , ठलुआ क्लब वही पेज है , जिसने विकृत पोस्ट डाली थी , जिसका भंडाफोड़ नीरेंद्र नागर ने किया था , जिसे हमने शेअर किया , जिसके चलते हमें ब्लाक किया गया . ऋषभ दुबे ने यह भी बताया है कि वसीम सर का ' इंडियन मुस्लिम ' पेज भी नई सरकार के आते ही प्रतिबंधित कर दिया गया था . अगर इन खबरों में तनिक भी सच्चाई है , तो इसका मतलब यह है कि सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की कोई भीषण दुरभिसन्धि जारी है , जिसका फेसबुक की ओर से अपेक्षित प्रतिरोध नहीं किया जा रहा है। हो सकता है , हमारी और पोस्टें भी हटा दी जाए। हो सकता है , हमें ब्लॉक कर दिया जाए। ऐसा हो तो आप लोग हम सब की इस साँझा लड़ाई को उसी शिद्दत से आगे बढ़ाते रहिएगा। और हो सके तो मेरे साथ घटी इस घटना के बारे में फेसबुक के साथियों को बताइए। आवाज़ उठाई जानी चाहिए। सोशल मीडिया हमारे पास प्रतिरोध का एक सुगम जरिया है। लेकिन अब लग रहा है कि फासिस्ट ताकतें इस माध्यम को भी अपने चंगुल में कस लेने की कोशिश में जुटी हुई हैं, और कामयाब हो रही हैं। मैं इस समय फेसबुक पर कुछ भी शेअर नहीं कर पा रहा हूँ।लाइक और मैसेज तक नहीं कर पा रहा हूँ। इसलिए हमने मीडिया विज़िल के जरिए आपसे बात करने का रास्ता चुना। मीडिया विजिल


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