Breaking News

घोटाला हो या हत्या सबके लिये है सेलेक्टिव नजर,खबर को सिर्फ खबर ही रहने दो यारा

मीडिया            May 17, 2016


प्रकाश सिंह। आजकल सड़क के ‘चिंटू’ से लेकर संसद में बैठे ‘छिल्टू’ तक, सोशल मीडिया से लेकर सीएम जैसे कद्दावर नेता भी दूसरे को सर्टिफिकेट बांट रहे हैं। आजकल घोटाला हो या हत्या, दोनों ही सेलेक्टिव लोगों द्वारा सेलेक्टिव नजर से देखा जा रहा है फिर अपनी-अपनी विचारधारा के आधार पर अपने राजनीतिक आकांओं को खुश करने के लिए चिंटू टाइप के कार्यकर्ता चंपी करने में लग जाते हैं। फिर शुरू होता है सर्टिफिकेट देने का सिलसिला… उदाहरण से समझिए बिहार के सीवान में एक पत्रकार की गोली मार कर हत्या होती है… बेहद दुखद समाचार है। इसकी मैं या कोई भी सभ्य समाज हितैषी सिर्फ कड़ी निंदा ही नहीं उचित कार्रवाई की मांग भी करेगा। लेकिन अभी एक दिन पहले बगल के राज्य के चतरा में भी पत्रकार की हत्या होती है। सिलेक्टिव कीचड़ वाले कमलधारी अपने मुताबिक बिहार चुनते हैं बगल वाला भूल जाते हैं। ये सेलेक्टिव सोच केवल यहीं नहीं है खबरों को तय करने का अधिकार ये दूसरों से भी छिनकर खुद ही तय करना चाहते हैं। अब जरा दूसरे मोहल्ले में भी आपको घुमाता हूं ये लाइलाज बीमारी कीचड़ में सने कमल में ही नहीं है, दूसरे छिल्टू भी उसी राह पर हैं। उधर ये तय है कि अब नीतीश की नई सरकार के नए कार्यकाल में अपराधियों के हौसले बुलंद हुए हैं। अपराध में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। केवल पत्रकार ही नहीं इंजीनियर समेत कई सनसनीखेज हत्या हुई है। सबसे अहम ये है कि उन पीड़ितों का सबसे बुरा हाल है क्योंकि कोई भी अपराधी कानून के नाम से डरना तो दूर मखौल उड़ाता दिख रहा है। अपराध के शिकार बिहार के पीड़ित परिवारों का दर्द एबीपी न्यूज ने पूरी पड़ताल करके दिखाया। इस दर्द को दिखाए जाने को स्वघोषित ईमानदार केजरीवाल ने राजनीति से जोड़ा है। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि एबीपी न्यूज मोदी विरोधी ताकतों को खत्म करना चाहता है। अब केजरीवाल आप खुद बताएं कि आप इन अपराधियों के साथ हैं या पीड़ित परिवारों के साथ। मेरे एक पत्रकार मित्र हैं अभिषेक। उन्होंने फेसबुक पर केजरीवाल और नीतीश कुमार पर एक पोस्ट किया है। अभिषेक कहते हैं कि केजरीवाल राजनीति में कीचड़ होते जा रहे हैं। पत्थर फेंका तो फिर आपकी खैर नहीं। निजी खुन्नस निकालने वाले बस नेतई करते रह जाते हैं। नीतीश कुमार कभी भाजपा के साथ थे और उसके सबसे बड़े राजनीतिक शत्रु हैं लेकिन क्या आपने कभी नीतीश कुमार को स्तर से नीचे जाकर बात करते हुए सुना है? नेता और स्टेट्समैन में फर्क होता है। कुमार स्टेट्समैन की दिशा में आगे कदम बढ़ा रहे हैं।’ खैर आरोप लगाना फिर भाग जाना आपकी फितरत है, क्योंकि इससे आपको कवरेज मिलता है। केजरीवाल को टीवी पर दिखने की बीमारी बॉलिवुड स्टार्स से भी ज्यादा है। दोनों में अंतर सिर्फ इतना है कि बॉलिवुड में लोग खास तरह का विडियो लीक करते हैं, ये बस मुंह से ‘जुगाली’ करते हैं और साफ दूसरे को करना पड़ता है। खैर… आजकल निष्पक्ष पत्रकारों पर बड़ा ही संकट है। एबीपी न्यूज ने जब ‘ऑपरेशन दामाद’ चलाया जो कि रॉवर्ट वाड्रा समेत कांग्रेस ने कहा कि हम मोदी के कहने से खबर चला रहे हैं। जब 6 हजार करोड़ कालाधन दिल्ली से कैसे बाहर गया। ये खबर चलाए तो बीजेपी वाले आरोप लगाते हैं कि हम एंटी मोदी हैं। रोहित वेमुल्ला, अखलाक समेत हम सिर्फ खबर दिखाए तो राष्ट्रवाद के ठेकेदारों ने सर्टिफिकेट बांटना शुरू कर दिया। खैर… हमें इससे फर्क नहीं पड़ता है। आपका मुंह आप पान खाएं या ‘गोबर’ ये मेरे गांव में कहावत है। मीडिया पर हमला भी आजकल खुद के ब्रैंड को मजबूत करने का जरिया है। आरोप लगाओ भाग जाओ। मुंह से बोलना है कोई तथ्य तो देना नहीं है। खैर केजरीवाल और कीचड़ उछालने वाले कमल के सेवकों को जानने वाले खूब जानते हैं उन्हें नेता नहीं ब्रैंड बनने का चस्का लग गया है। भाषाई ‘पाजामा’ तो इन चिंटूओं का पहले से ही उतरा है। चाहे कीचड़ वाले कमल हों या कीचड़ में सना झाड़ू। मैंने पत्रकारिता में ब्रैंडिंग का एक पेपर दिया था। खुद की ब्रैंडिंग के लिए उसमें बताए सारे नियम दोनों ही कीचड़ में सने ‘छिल्टू’ उपयोग करते हैं। राजनीति के नाम पर चलाई जा रही यह प्रक्रिया सिर्फ सत्ता युद्ध है। त्याग, बलिदान और सेवा पर आधारित राजनीति कब जाति, धर्म और ब्रैंडिंग पर निर्भर हो गई, पता ही न चला। सियासत की ये गंदगी नीचे कार्यकर्ताओं समेत समर्थकों पिछले दो तीन सालों से बेहद तेजी से बढ़ा है। पत्रकार को लिखने के बाद उसके वरिष्ठ संपादित करते हैं लेकिन कार्यकर्ताओं और अब इन बड़े नेताओं को तथ्यहीन बातें लिखकर भाग जाने की फितरत को क्या कहेंगे। ये खबर, क्राइम को सिर्फ अब अपने चश्मे से देखते हैं। खबर को सिर्फ खबर ही रहने दो यारा… लेखक युवा पत्रकार हैं और हिंदी न्यूज चैनल ‘एबीपी न्यूज’ में कार्यरत हैं।


इस खबर को शेयर करें


Comments