डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
डॉ. धर्मवीर भारती भारतीय पत्रकारिता के शिखर पुरूषों में से हैं। इससे बढकर वे साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी पत्रकारिता में उन्होंने 'धर्मयुग' जैसी सांस्कृतिक पत्रिका को स्थापित किया और ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक शीर्ष पर बनाए रखा। मुझे याद है 1981-82 के वे साल, जब विज्ञापन दाता धर्मयुग में विज्ञापन बुक करने के लिए लम्बी लाइन में लगते थे। हाल यह था कि दीपावली विशेषांक में तो साल भर पहले ही विज्ञापन बुक हो जाते थे।
'धर्मयुग' के लिए उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर कर रखा था। यहाँ तक कि अपनी साहित्य सेवा भी। वे 'धर्मयुग' ही ओढते, बिछाते, खाते, पहनते थे। उनका हर पल 'धर्मयुगमय' था।
साहित्यकार और सम्पादक होने के बावजूद डॉ. धर्मवीर भारती की छवि एक सैडिस्ट (डअऊखडढ) की ही रही। उन्होंने अपने किसी भी जूनियर को कभी आगे नहीं आने दिया। वे ऐसे हालात पैदा कर देते थे कि सम्पादकीय सहयोगी तो क्या, क्लेरिकल स्टॉफ तक उनसे खौंप खाता था। पत्रकारिता की प्रतिष्ठा से ज्यादा उन्हें बैनेट, कोलमैन एण्ड कम्पनी के पैसों की चिन्ता होती थी। श्री योगेन्द्रकुमार लल्ला, श्री सुरेन्द्रप्रताप सिंह, श्री उदयन शर्मा, श्री कन्हैयालाल नंदन, श्री रवीन्द्र कालिया, श्री मनमोहनसरल, श्री गणेश मंत्री, श्री विश्वनाथ सचदेव, श्री सतीश वर्मा... आदि दर्जनों नाम है, जो बेहद कामयाब सम्पादक साबित हुए, लेकिन इन सभी को प्रताडित करने का कोई मौका शायद ही श्री भारतीजी ने छोडा हो। श्री रवीन्द्र कालिया ने तो धर्मयुग छोडने के बाद 'काला रजिस्टर' नामक उपन्यास भी लिखा था, जिसमें 'हाजिरी रजिस्टर' पर लेट आने वालों के दस्तखत को लेकर प्रताडित किए जाते थे।डॉ. धर्मवीर भारती की पहली पत्नी सुश्री कांता भारती ने तलाक के बाद वैवाहिक जीवन की मुश्किलों पर एक उपन्यास 'रेत की मछली' भी लिखा है। माना जाता है कि यह उनकी पीडाओं और अनुभूतियों की प्रस्तुति है।
25 दिसम्बर 1926 को जन्मे डॉ. धर्मवीर भारती ने कवि, लेखक, नाटककार और सामाजिक चिंतक के रूप में ख्याति पाई। 'गुनाहों का देवता' उनका क्लासिक उपन्यास है। उन्हीं की रचना 'सूरज का सातवाँ घोडा' पर श्याम बेनेगल ने फिल्म बनाई थी, जिसे 1992 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। महाभारत युद्ध के बाद की घटनाओं पर उनका नाटक 'अंधा युग' दुनियाभर में मंचित हो चुका है।
20 साल की उम्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. हिन्दी में सबसे अधिक नम्बर लाने वाले धर्मवीर भारती को 'चिन्तामणि घोष' अवार्ड मिला था। उन्हें पद्मश्री, भारत भारती सम्मान, संगीत नाटक अकादमी के अलावा केडिया न्यास का एक लाख रुपए का पुरस्कार भी मिला था। केडिया न्यास के संयोजकों पर लोगों ने शंकर गुहा नियोगी की हत्या में षडयंत्रकारी होने का आरोप भी लगाया था, लेकिन भारतीजी ने उसे नकार दिया और पुरस्कार ग्रहण किया।
डॉ. धर्मवीर भारती की उल्लेखनीय कृतियों में देशान्तर, ठण्डा लोहा, सपना अभी भी, कनुप्रिया, टूटा पहिया, उपलब्धि, उत्तर नहीं हक्तँ, उदास तुम, तुम्हारे चरण, प्रार्थना की कडी... आदि प्रमुख है।श्री जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के दिनों में उनकी कविता 'मुनादी' ने धूम मचाई थी। 1971 के भारत-पाक युद्ध में वे खुद मोर्चे पर रिपोर्टिंग के लिए गए थे.
धर्मयुग में प्रधान सम्पादक रहने वाले डॉ. भारती धर्मयुग से रिटायर होने के बाद कलानगर स्थित 'साहित्य रहवास' नामक भवन में ही रहते थे। दैनिक भास्कर में आने के बाद मैं उनसे मिलेन उनके घर गया था, तब उनका बेटा किंशुक अमेरिका में नौकरी कर रहा था। उनकी बिटिया प्रत्रा ने कुछ समय इलेस्ट्रेडेड वीकली ऑफ इण्डिया में सब एडिटर का काम किया था और विवाह के बाद बांद्रा में ही रह रही थीं। इतने बरस बाद भी डॉ. भारती ने मुझे याद रखा था और घर पर ही सस्नेह भोजन कराया था।
दिल के धोखा देने से सितम्बर 1997 में लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। एक अज्ञात सी मौत थी वह। जनाजे में बामुश्किल 20-25 लोग थे, लेकिन शमशान घाट पर हजारों लोग वहाँ आए थे- और उनमें से ज्यादातर वे थे जो जनाने में शामिल अमिताभ बच्चन को देखना चाहते थे। 1960 में धर्मयुग में आने के बाद 1997 तक वे कभी भी इलाहाबाद नहीं गए। 37 साल बाद अंततः 1997 में उनकी अस्थियाँ ही इलाहाबाद संगम में विसर्जित की गई।
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