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पेमेरा की पाक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सलाह,न चलें उनके नक्श-ए-कदम पर

मीडिया            Apr 10, 2016


शाहनवनाज़ मलिक। पाकिस्तान के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को रेग्यूलेट करने वाली संस्था यानी ''पेमरा'' न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित जाने वाले कंटेंट को लेकर सतर्क दिखती है। पेमरा अक्सर नई गाइडलाइंस जारी करके बताती है कि ख़बरों को किस तरह प्रसारित किया जाना है। किन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना और किसे हीरो नहीं बनाना है। पिछले साल पेमरा ने लश्कर प्रमुख हाफिज़ सईद के विचार और उनके कार्यक्रमों के प्रसारण पर पाबंदी लगाई थी। इस बार मुमताज़ क़ादरी की फांसी के फौरन बाद पेमरा ने गाइडलाइन जारी की कि पूर्व गवर्नर सलमान तासिर के हत्यारे को शहीद बताने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। ईस्टर के मौके पर जब लाहौर के पार्क में बड़ा धमाका हुआ, तब पेमरा ने फिर एक गाइडलाइन जारी की। इस बार उसने कहा कि ''पाकिस्तानी टीवी चैनल अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मानकों को ध्यान में रखते हुए कवरेज करें ना कि भारतीय टीवी चैनलों के नक्शे कदम पर चलें।'' भारतीय टीवी चैनलों के लिए पेमरा की गाइडलाइन शर्म से गड़ जाने के लिए काफी है। यह सोचने का वक्त है कि उनकी भेड़चाल पर तंज़ ब्रिटेन या अमेरिकी नियामकों ने नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की संस्था पेमरा ने किया है। यह सोचने का वक्त इसलिए भी है क्योंकि हाल के कुछ सालों में भारतीय मीडिया हर तरह के एथिक्स को कचरे में डालकर प्रसारण कर रहा है। फिलहाल भारतीय मीडिया किसी के ख़िलाफ़ कुछ भी प्रसारित कर सकता है और उसकी जवाबदेही तय करने वाला कोई नहीं है। कमोवेश हर दिन दिखाई जाने वाली ख़बरों में झूठे भ्रामक तथ्य और पूर्वाग्रह का अंबार है। कभी-कभी कोई हारा हुई पीड़ित न्याय के लिए दरवाज़ा खटखटाता है लेकिन भारतीय चैनलों की मोटी चमड़ी पर उसका असर नहीं दिखाई देता। बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। दो दिन पहले एक प्लेन हाईजैकिंग की ख़बर ही देखिए। मंगलवार की दोपहर में सभी भारतीय न्यूज़ चैनलों ने अचानक एक ब्रेकिंग न्यूज़ चलाई गई। ख़बर थी कि मिस्र का एक हवाई जहाज़ हाइजैक हो गया है। मिस्र के नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने हाइजैकिंग की पुष्टि की। विमान साइप्रस के एक एयरपोर्ट खड़ा दिखा। टीवी पर दिखाए जा रहे वीडियो में यात्री विमान से बाहर निकल रहे थे। मगर भारतीय न्यूज़ चैनलों के एंकरों और रिपोर्टरों ने सिर्फ इन तथ्यों को रिपोर्ट करने की बजाय लंबी-लंबी फेंकना शुरू कर दिया। कमोवेश सभी स्क्रीन पर 'विश्लेषण' शुरू हो गया। रिपोर्टरों ने पहले 'आतंकी' के बारे में जानकारी दी की वह इस्लामिक स्टेट से जुड़ा हो सकता है। किसी ने उसे फिदायीन बताया तो कहीं चलाया गया कि उसने अपने शरीर पर विस्फोटक बांध रखा है। चूंकि ख़बर को खींचना था और तथ्य थे नहीं तो दिमाग पर थोड़ा ज़ोर और डाला। फिर बताया जाने लगा कि इस्लामिक स्टेट के आतंकी कैसे होते हैं, वो क्या कर सकते हैं क्या नहीं कर सकते हैं, इस हाइजैकिंग की वजह क्या है। अगर प्लेन हाइजैकिंग को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी भी तथ्य की आधिकारिक सूचना नहीं आई थी। बावजूद इसके सभी रिपोर्टरों ने अल बगदादी, अल जवाहिरी, मसूद अज़हर तक को लपेटना शुरू कर दिया। वो इस ख़बर के साथ लंबा 'खेल' पाते कि इससे पहले इस मामले ने यू-टर्न ले लिया। पता चला कि प्लेन हाइजैक नहीं हुआ है। कहीं कोई इस्लामिक स्टेट का आतंकी नहीं है और ना ही उसके शरीर पर विस्फोटक बंधा हुआ है। मिस्र के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया कि पकड़े गए शख़्स सैफ़ अलदीन आतंकवादी नहीं बल्कि एक मूर्ख हैं। उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं है और वह अपनी पूर्व पत्नी से मिलना चाहते थे। भारतीय चैनलों तक ये ख़बर देर से पहुंची थी और 6 घंटे तक मिस्र से लेकर साइप्रस तक अफरा-तफरी का माहौल बना रहा। मगर जब भारतीय चैनलों ने ख़बर चलाना शुरू किया तो घंटों से इसे कवर कर रहे सभी एजेंसी के पत्रकारों को पीछे छोड़ दिया। कहीं से कोई आधिकारिक बयान नहीं लिया, बस स्क्रीन पर इस्लामिक स्टेट की कढ़ाही चढ़ाकर जलेबी छानते रहे। मौके पर मौजूद रिपोर्टरों के ट्वीट देखने के बाद कुछ जानकारी अपनी तरफ से जोड़ते हुए भारतीय दर्शकों तक पहुंचाते रहे। मामले ने जब यू-टर्न लिया तो कमोबेश सारे धुरंधर एक्सपर्ट स्क्रीन से गायब हो गए। दर्शकों तक झूठी जानकारी देने के बाद सीना चौड़ा करके दूसरी ख़बर में जुट गए। जहां तक मेरी जानकारी है कि भारतीय मीडिया में काम करने वाला कोई भी पत्रकार किसी बड़े जेहादी समूह या इस्लामिक स्टेट जैसे संगठन को ग्राउंड पर कवर नहीं करता है। इसके बावजूद सभी आला दर्जे के विशेषज्ञ हैं। ज़मीन का अंदाज़ा नहीं है लेकिन आए दिन 'विशेषज्ञों' के साथ इसपर बहस करते हैं कि इस्लामिक स्टेट का इलाज क्या है? सभी चैनलों और डिजिटल माध्यमों पर इससे जुड़ी ख़बरें थोक के भाव चलाई-पढ़ाई जाती हैं। अपनी कुंठाओं को शांत करने के लिए इन ख़बरों में अपने मन से कुछ भी जोड़ा जाता है। सभी जानते हैं कि उनसे पूछने कोई नहीं आएगा क्योंकि कुएं में भंग पड़ी हुई है जबकि इन ख़बरों का हमारी ज़िंदगी से कुछ भी लेना-देना नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि टीवी पर इस्लामिक स्टेट और जेहादी संगठनों की ख़बरें चलाकर भारतीय मीडिया पूरे समाज को ''इस्लामोफोबिक'' बना रहा है। टीवी और डिजिटल माध्यमों की वजह से बड़ी तादाद में लोग इसपर बहस करने लगे हैं। वो इस नतीजे पर पहुंचने लगे हैं कि आतंक का इस्लाम से लेना-देना है। वो अपने आसपास रहने या गुज़रने वाले मुसलमानों को बुरा, हिंसक मानने लगे हैं। वो सामान्य नागरिक से कब झुंड में बदल जाएंगे, इसका कोई दिन तय नहीं है। दिल्ली के बेगमपुर इलाक़े में मदरसे के तीन लड़कों पर हुआ हमला हिंसक होती भीड़ की तरफ इशारा करता है। उन्हें सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि वो मुस्लिम थे। हमलावरों ने ''भारत माता की जय'' वाली सतही बहस टीवी पर ज़रूर देखी होगी, ऐसा मेरा दावा है। टीवी चैनलों को पत्रकारों को अपने इन कर्मों के बारे में एक बार ज़रूर सोचना चाहिए। मीडिया विजिल


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